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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -56: साधुता के गुण क्या हैं

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हमारा भाईचारा कैसा है, हम प्रेमी कैसे हैं, हम लोगों में आपस में प्रीत और प्रतीत क्यों नहीं है, तो कैसे यकीन किया जाए कि आपको राधास्वामी दयाल के चरनों में प्रीत और प्रतीत है या आपको अपने गुरु से प्रीत है। कैसे यकीन किया जाए कि आपकी प्रीत में कोई स्वार्थ नहीं मिला हुआ है। कैसे मान लिया जाए कि आप निःस्वार्थ हैं। कैसे मान लिया जाए कि आप काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार सबको जीत चुके हैं। अगर आप जीते हुए होते तो आप की दशा कुछ और होती। साधुता के गुण होने चाहिए थे, आपके हाथ होने चाहिए थे रुई के फाहे जैसे मुलायम, आखों में नूर और माथे में चमक होनी चाहिए। एक बात और याद रखिए कभी इस भ्रम में मत पड़िए कि जो संग में लगा हुआ है वह सबसे ऊंचा है। ऐसी बात नहीं है। जो पीछे से पीछे बैठे हुए हैं क्या वह दया से वंचित रह जाएंगे। न जाति पूछते हैं मालिक, न वर्ण पूछते हैं। वह तो बस तुम्हारे हृदय में प्रेम और भक्ति को देखते हैं। उसी से दया करते हैं। जो यह समझते हैं कि वह भजन में बैठ गए और उनकी सुरत चढ़ गई वह गलती में है। जब तक प्रेम और भक्ति नहीं की, जाएगी तब तक योग का साधन नहीं बन सकता। राधास्वामी मत में सुरत-शब्द-योग जो है वह प्रेम और भक्ति के माध्यम से ही हो सकता है।

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पवित्र समाध में तो घुसने में ही डर लगना चाहिए। वह सिर्फ इबादत की जगह है। वहां जाना है तो सिर झुका कर जाओ। समाध पर मत्था टेको, कुछ देर दृष्टि से दृष्टि मिलाकर दर्शन करो। बड़े अदब और शालीनता के साथ जाना चाहिए। वहां हजूर महाराज स्वयं विराजमान हैं, यह समझ कर जाओ। मालिक को बेअदबी मंजूर नहीं है। अगर आना है, सेवा करनी है तो घाटियां चढ़नी पड़ेंगी। ऐसा मकान हजूर महाराज ने बनाया है कि बिना घाटी, बिना सीढ़ी के एक कमरे से दूसरे कमरे में नहीं जा सकते ताकि थोड़ी सी मशक्कत हो। इतने आसान दर्शन नहीं मिलते हैं। हजूरी कमरे में अभ्यास में बैठकर देखिए, कितना रस आता है। मालिक मौज करते हैं तो सुरत की हालत बदल देते हैं। वह क्या से क्या हो जाती है। उसकी रक्षा और संभाल बराबर जारी रहती है। जिस स्थान पर भी रखना चाहें वो उनकी मौज है, मर्जी है। सुरत को दर्शन मिलेगा और फिर करनी कराई जाएगी, घर पहुंचाया जाएगा। दो-तीन और हद से हद चार जन्म में पूरा उद्धार हो जाएगा। यहां कहां बैठे हो मल-मूत्र के स्थान पर। यहां से एक संग तुम सत्तलोक में और राधास्वामी धाम में पहुंचा दिए जाओगे। ऐसी बड़ी दया सिवाय हजूर महाराज के दरबाj के और कहां हो सकती है।