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चर्चा दिल्ली बार्डर की, यहां हर खेत पर हलकान है मुंशी प्रेमचंद का ‘हल्कू’

NATIONAL POLITICS PRESS RELEASE REGIONAL

Mathura, Uttar Pradesh, India.  दिल्ली बॉर्डर पर बैठे आंदोलनकारी किसानों की सर्द रातें कैसे कट रही हैं, इस पर देश भर में चर्चा है। किसानों की दुश्वारियों की बात हो रही है। सरकार कह रही है कि असली किसान अपने खेत में हैं।  यह मान भी लिया जाए कि जो खेत में हैं वही असली किसान हैं तो बॉर्डर पर जमे किसानों से भी कहीं ज्यादा अभागे हैं। इनकी दुश्वारियों की कहीं चर्चा तक नहीं हो रही। गर्म कपड़ों और बंद कमरों में बैठकर किसानों की वकालत करने वाले कृषि विशेषज्ञों के पास भी इतनी फुरसत नहीं कि वह इन किसानों के साथ एक रात बिताएं और अपने ज्ञान को हकीकत के करीब लेकर आएं। आज मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ का मुख्य किरदार हल्कू हर खेत पर सर्द रातों में हलकान है।


 सर्द रातों में आप को जितने नौजवान किसान गांव में मिलेंगे उससे ज्यादा खेतों की रखवाली करते हुए मिल जाएंगे। आवारा और जंगली जानवरों से अपनी फसल को बचाने के जतन कर रहे इन नौजवान किसानों की पीड़ा को शायद ही कभी स्वर मिल पाए। परिवार का भरण-पोषण करने के लिए रातभर खेत पर जागते हैं और सुबह मजूदरी की तलाश में निकलते हैं। गांव के बुजुर्ग किसान इन सर्द रातों को सहन नहीं कर सकेंगे, इसलिए खेतों की रखवाली का जिम्मा भी नौजवानों के कंधे पर है। रात में जाग कर रखली कर रहे किसानों के बीच बिताई गयी एक रात अच्छे खासे कृषि विशेषज्ञों की राय बदलने का माद्दा रखती है, लेकिन इनके बीच जाने की जरूरत किसे है।


मथुरा में राया क्षेत्र के गांव चिमला के जंगलों में रात में कुछ नौजवान किसान आग जलाकर बैठे हैं। उनमें से एक देवेंद्र उपाध्याय कहते हैं जंगली और आवार जानवरों से फसल को बचाने के लिए यहां बैठे हैं। जब हाथ पांव सुन्न पड़ने लगते हैं तो आग जला लेते हैं। आसपास के खेतों की रखली कर रहे किसान कुछ पल एक साथ बैठ कर बातें कर लेते हैं जिससे मन हल्का हो जाता है।

इसी समूह में शामिल एक अन्य नवयुवक दिगम्बर कहते हैं सरकार को क्या पता किसान की पीड़ा। एक रात हमारे साथ बिताएं तो पता चले खेती किसानी क्या होती है। वहीं राजेश निराश भाव से इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं। वह कहते हैं कौन खेती करना चाहेगा। दूसरा ढंग का कोई काम मिल भी नहीं रहा है। घर बैठ भी नहीं सकते, परिवार की जिम्मेदारी है। रोज के खर्चे हैं। इतना सब कुछ करने के बाद भी फसल घर पहुंच जाये तो गनीमत। कुछ जानकार लग रहे दवेन्द्र उपाध्याय फिर बोल पडते हैं। फसल का उचित मूल्य मिल जाये तब कुछ बात बने। एमएसपी सरकार कितना भी घोषित कर दे, किसान की फसल तो ओनेपौने ही बिक जाती है। अब ऐसे कब तक चलेगा, सरकार को कुछ तो करना ही होगा। जब उनसे पूछा गया कि गोशालाएं खोली गई हैं तो आवार गोवंश खेतों में क्यों है, देवेन्द्र कहते हैं इसका जवाब तो वह दे सकते हैं जो यह कह रहे हैं कि गोशालाएं खोली गई हैं।