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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -63: पवित्र स्थानों पर क्या करना चाहिए?

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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पवित्र स्थानों की कितनी महिमा है और उन स्थानों पर जाकर क्या करना चाहिए? वहां मूर्ति की तरह मत्था टेका और चले आए, ऐसे नहीं मत्था टेका जाता है। मन और चित्त को जोड़िए, फिर सहूलियत से चरनों में मत्था टेकिए। जो इबादत की जगह है वहां पर प्रेम के शहंशाह विराजते हैं। वहां पर हमको बहुत अदब से जाना चाहिए। वहां शोरगुल का क्या काम है? ऐसी जगह पर नियम अपने आप बनते हैं और नियम बने हुए हैं। उन नियमों का पालन कीजिए। अभ्यास करिए और फिर जो प्रीत और प्रतीत अंतर में आपको मिले, उसको मानिए, समझिए व विचारिए। नजदीकी वो है जो सुरत से होती है। यहां पर सुरत को जगाने की बात है, जो सोई है, जो मन के अधीन हो रही है, जो माया के जाल में फंसी है, उसको निकालने के लिए राधास्वामी दयाल आए हैं और उसको पूरा करने के लिए भक्ति ही बताई है, दीनता ही सिखाई है। एक सत्संगी की पहचान दीनता से होनी चाहिए।

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मालिक का एक उसूल है, जो कसूरवार होते हैं उनको चरनों में रखते हैं और चरन रस पिला-पिला कर ठीक करते हैं। जो निकृष्ट हैं वह भी यही रहते हैं। जो ऊंचे हैं वह भी रहते हैं। ऊंचों से कोई परेशानी नहीं, उनको तो प्यार देंगे ही, उनसे तो प्यार करते ही हैं और उनसे जो प्यार किया जाता है उसका प्रभाव सब पर पड़ता है। प्यार प्यारे से किया आता है और उसका हकदार वही होता है जो राधास्वामी मत के उसूलों के अनुसार अपनी जिंदगी का निर्वाह करता है। एक सत्संगी को हर परिस्थिति में मालिक की मौज की तरफ निहारना चाहिए और मौज से मुआफकत करनी चाहिए। जो कुछ भी मौज से होता है, वह हमारे हक में होता है।