dadaji maharaj birthday

राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -33: बच्चों से क्या पूछें और क्या नहीं

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(33)

अपने बच्चों से यह न पूछें कि उन्होंने कितना कमाया, क्या किया, यह सब सवाल मत कीजिए। उनसे यह पूछे कि कितना राधास्वामी नाम लिया, सुमिरन किया, ध्यान किया, भजन में बैठे। बच्चे रोजगार के लिए विभिन्न शहरों में जाते हैं वहां वो करतूतें जो काल की हैं, जारी हैं। वहां सत्संगी बच्चों को भी रहना पड़ता है। ऐसी जगह पर यह कितना जरूरी है कि बच्चों को यह हिदायत दी जाए कि तुम रोज कम से कम राधास्वामी नाम का सुमिरन तो करो, पाठ तो करो, मालिक को याद तो करो, तब रक्षा बनी रहेगी। यह हिदायतें भी दी जानी चाहिए कि कुछ दिन जमकर सत्संग करना चाहिए। यहां से कोई खाली नहीं जाता उसी तरह से जैसे सुदामा की झोली भर दी थी और वह रास्ते पर कहता आया कि मुझे क्या मिला, लेकिन वह जब वो देने पर आए तो देते चले गए, तब रुक्मणी ने हाथ पकड़ लिया तो भगवंत जब राजी होता है तो खूब देता है। और क्या है हमारे पास

लेने को सतनाम है देने को अनदान

करने को है दीनता डूबन को अभिमान

इसलिए ऐसा कोई काम न किया जाए जिससे मालिक अप्रसन्न हो –

गुरु राजी तो कर्ता राजी, काल करम की चले न बाजी

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हमारा ध्यान मालिक के चरनों में लगना चाहिए। यह सब अभ्यास से आएगा, सत्संग में बैठने से आएगा, प्रेमी अभ्यासियों की सलाह और उनकी कैसी दिनचर्या है वह जानने और उनकी सोहबत करने से आएगा। सोहबत प्रेमी अभ्यासी की करनी है, तब कुछ समझ में आएगा और संत मिल जाएं, साध मिल जाएं उच्चकोटि के अभ्यासी मिल जाएं, जो भी भाव आपको पहले-पहले आए आप उनको कैसे पहचानेंगे, पहचान तो वह आप अपनी देंगे, पहचान देते हैं, आप नहीं पहचानना चाहते तो यह आपकी हठधर्मी है। जब वह पहचान बख्शते हैं, तो फिर क्या चीज रोकती है, वह बुद्धि रोकती है, अहंकार रोकता है। देखिए लोभ मोह यह सब जल्दी नष्ट हो सकते हैं थोड़ी सी चढ़ाई में, क्रोध त्रिकुटी तक जाता है, काम और अहंकार झीना सुन्न तक जाता है। वहां जाकर उसकी समाप्ति होती है। इसलिए उसके ऊपर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। दृष्टि से तो एक जानवर भी यह समझता है कि हमको नुकसान करेगा कि नहीं और फिर वह खुद आपको रास्ता दे देगा, तब फिर मनुष्य की दृष्टि को मनुष्य ना समझे, इसी को अज्ञानता कहते हैं। यह अज्ञान है, भरम -भूल है, भयंकर भूल है। इसको आज ही मिटाइए और मूल तत्व को समझिए। रोज सुबह उठकर राधास्वामी नाम का सुमिरन अंदर ही अंदर कीजिए, इसमें चूक नहीं होनी चाहिए।