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राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -21: हमारा कोई विरोधी नहीं

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE लेख

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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तुम लोग जानते नहीं हो कि कितनी कैफियत है राधास्वामी नाम की। मैं तो उनसे भी कहता हूं जिनको कि पूरा -पूरा विश्वास नहीं है। अरे नाम लेकर देखो अगर दृढ़ता न आए तो कहना। एक बात और, सतसंगियों में विरोध का भाव कभी नहीं आना चाहिए। हमारा कोई विरोधी नहीं है। इसलिए लड़ाई झगड़ा, व्यर्थ के वाद-विवाद से बचकर रहना चाहिए। इतना समय जो इन चीजों में खर्च किया जाए वह क्यों न पोथी पढ़ने में, अपने मन और इंद्रियों को रोकने का अभ्यास करने में, ध्यान करने में, शब्द का श्रवण करने में और नहीं तो अपने गुरु की किसी बात के ऊपर बातचीत कर सकते हो। कौन ऐसा है कि जिसको अपने-अपने अनुभव नहीं हुए हैं। कुछ न कुछ तो खिंचाव होगा, बिना खिंचे कोई नहीं आता। दुनिया और दुनियादारी में सिवाय धोखे के और असफलता के कुछ नहीं रखा है। जो सफलताएं मिलती हैं वह भी स्थाई नहीं होती। अंत समय पर कोई चीज, न तुम्हारी विद्या, ना तुम्हारा हुनर, न तुम्हारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण काम आएगा, अगर कोई काम आएगा तो मालिक आएगा। काल कर्म से तुमको बचाकर अपनी गोद में मालिक ले जाएंगे। इसका विश्वास कर सकते हो तो मेरी बात को मान लो, अगर आप प्रीत बढ़ाएंगे तो मालिक आपको प्रेम की दात बख्शेंगे।

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मोटी सी बात यह है कि प्रीत और प्रतीत लगानी चाहिए दृढ़ता के साथ। कोई रिश्ता बना लीजिए वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन प्रीत लगाइए पक्की। लेकिन जो दुविधा में रहता है कि कभी यह-कभी वो, कभी यहां- कभी वहां, कभी इधर- कभी उधर तो कभी किसी जगह पर ठहराऊ नहीं रहते, क्योंकि वह बुद्धिबिलास करता है और यहां भक्ति में बुद्धिबिलास नहीं है। लेकिन यह लोगों का ख्याल है कि भक्ति निष्क्रिय बनाती है, मैं कहता हूँ कि भक्ति और सक्रिय बनाती है, लेकिन भक्ति किसकी करनी चाहिए यह महत्वपूर्ण है, अपने समकालीन गुरु की भक्ति कीजिए जो कि आपको सच्चा ज्ञान दे सके, उपदेश दे सके, आज की परिस्थिति में यह बता सके कि यह करो या मत करो, जो निर्देश दे सके। इसलिए राधास्वामी मत में समकालीन गुरु का महत्व है कि वह जैसा समय जैसी परिस्थिति देखेंगे और जितनी आपकी क्षमता होगी उसको भी वह तौलते हैं, उसके अनुसार वह आपके दुनियादारी के कामों में भी मददगार हैं और आपके परमार्थी कल्याण का तो उन्होंने ठेका लिया है। एक दिन सबका उद्धार होगा यह तो निश्चय जानिए लेकिन जो कुछ भी कर्जा देना है, कर्जा तो उतारना है, जो काल का कर्जा है, कर्म है, लेकिन उसके लिए कह दिया गया है कि सूली का कांटा करके उतार देंगे, यह कह दिया है कि मन भर का एक छँटाक कर देंगे, कहीं-कहीं एक रत्ती भी कह दिया है। लेकिन मानना अपने गुरु को है, भक्ति मार्ग को दीनता को अपनाना है पहले। अगर आप दृढ़ता कर लें और राधास्वामी नाम का सुमिरन करें और अपने गुरु को पूरे तौर पर मान लें तो आप अपना और अपने पूरे कुटुंब-परिवार का कल्याण करा सकते हैं।