Dadaji maharaj in agra

राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -32: सुबह उठकर इस काम में चूक नहीं होनी चाहिए

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हमारा ध्यान मालिक के चरनों में लगना चाहिए। यह सब अभ्यास से आएगा, सत्संग में बैठने से आएगा, प्रेमी अभ्यासियों की सलाह और उनकी कैसी दिनचर्या है वह जानने और उनकी सोहबत करने से आएगा। सोहबत प्रेमी अभ्यासी की करनी है, तब कुछ समझ में आएगा और संत मिल जाएं, साध मिल जाएं उच्चकोटि के अभ्यासी मिल जाएं, जो भी भाव आपको पहले-पहले आए आप उनको कैसे पहचानेंगे, पहचान तो वह आप अपनी देंगे, पहचान देते हैं, आप नहीं पहचानना चाहते तो यह आपकी हठधर्मी है। जब वह पहचान बख्शते हैं, तो फिर क्या चीज रोकती है, वह बुद्धि रोकती है, अहंकार रोकता है। देखिए लोभ मोह यह सब जल्दी नष्ट हो सकते हैं थोड़ी सी चढ़ाई में, क्रोध त्रिकुटी तक जाता है, काम और अहंकार झीना सुन्न तक जाता है। वहां जाकर उसकी समाप्ति होती है। इसलिए उसके ऊपर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। दृष्टि से तो एक जानवर भी यह समझता है कि हमको नुकसान करेगा कि नहीं और फिर वह खुद आपको रास्ता दे देगा, तब फिर मनुष्य की दृष्टि को मनुष्य ना समझे, इसी को अज्ञानता कहते हैं। यह अज्ञान है, भरम -भूल है, भयंकर भूल है। इसको आज ही मिटाइए और मूल तत्व को समझिए। रोज सुबह उठकर राधास्वामी नाम का सुमिरन अंदर ही अंदर कीजिए, इसमें चूक नहीं होनी चाहिए।

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आप सतगुरु से परमार्थी प्रश्न क्यों नहीं पूछते? सैकड़ों लोग कहते रहते हैं कि हमको कोई विशेष बात करनी है लेकिन कोई इक्का-दुक्का ही परमार्थ के बावत बात करता होगा। सत्संग में भी आदमी जमीन, जायदाद, उसकी स्त्री, उसका पुरुष या उसके बच्चे बस यही रगड़े की बातें करते हैं। बहुत से लोग यहां यह समझ कर भी चले जाते हैं कि जहां पहुंचकर उनकी दुनिया की समस्या का हल निकल आएगा। यहां तो सिर्फ उसी का भला होगा इसका उद्देश्य परमार्थ का है, जो इस दुनिया को छोड़ कर अपने निजधाम में जाने का फिक्र करता है, जिसको सोच है, जिसको खोज है कि उसको मालिक के धाम में जाने का रास्ता मिले उसके लिए संतमत है, राधास्वामी मत है और वही टिकेगा भी, ठहरेगा भी, समझेगा भी और बताए अनुसार करनी भी करेगा। मैं बहुत अनुरोध के साथ कहता हूं कि रोज सुबह उठकर राधास्वामी नाम का सुमिरन किए बिना खाट से मत उठाइए और इसमें आपका तकिया साथ देगा। जितना बड़ा मित्र आपका तकिया है उतना और कोई नहीं है। आप उससे कहेंगे कि हम को 7:00 बजे उठा दो वह आपको 6:30 बजे उठा देगा। यह बात अलग है कि आप आलस करके पड़े रहें। वो बोल तो नहीं सकता लेकिन जगाता है क्योंकि इस वक्त आप सोते हैं थोड़ी बहुत सुरत चढ़ती है और उसका सबसे ज्यादा असर उस तकिए पर होता है। तो फिर किसी परमार्थी अभ्यासी के तकिए में कितना असर होगा सोचिए। जो हमेशा मगन रहता है, मालिक में लौ लगाए रहता है और कहीं मालिक खुद हो तो उनकी कार- आमद चीज पर हम मत्था टेकते हैं, उनकी पलंग, चौकी, पालना हर जगह मत्था टेकते हैं क्योंकि उनके इस्तेमाल की चीजों में पवित्रता मौजूद है। मत्थे टेकेंगे तो हमारे अंदर भी शुद्धता आएगी, कुछ पवित्रता आएगी।