dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -39: जिसको आप समझते हैं सीधा वह है उल्टा

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(39)

जिसको आप सीधा समझते हैं वह उल्टा है। उल्टे सब चल रहे हैं और उसी में खुश हैं। उनको जब सुल्टा चलाने की कोशिश की जाए यानी वह सुरत जो मन के कहने में नीचे उतरती चली आई है, उसको जुक्ति बताकर ध्यान की या उसको शब्द का भेद देकर अंतर में खींचा जाता है तो उस वक्त थोड़ी सी तकलीफ तो होती है लेकिन उस समय जब वह तकलीफ होती है आप समझ नहीं सकते। उसी समय दस गुना- बीस गुना दया भी होती है और वही दया रक्षा और संभाल करती है। मालिक को जब किसी जीव का कारज बनाना होता है तो वह चाहता है कि इसी जिंदगी में इतना काम बन जाए उतना ही अच्छा है। वो भी अपने भक्तों को बार-बार जन्म देना नहीं चाहते। यह तो बार-बार आपके मन और कर्म, माया और काल करते हैं जो कि चौरासी लाख योनियों में आपको भरमाना चाहते हैं और मालिक आए हैं आप को निकालने के लिए। उन्होंने सीधा रास्ता बताया कि उनके स्वरूप का ध्यान कीजिए, उनसे प्रीत जगाइए, उनका संग कीजिए, उन्हीं का जो संग है वही सतसंग है, इसलिए सतसंग में सतसंगियों की तरह बर्ताव होना चाहिए। यह प्रीत का रिश्ता है, प्रतीत का रिश्ता है, किसी मजबूरी की वजह से रिश्ता नहीं है बल्कि खसूसियत की वजह से रिश्ता है। आपको मिलाया है सतसंग में मालिक ने तो बड़ी भारी दया उन्होंने की है, उसका शुकराना अदा नहीं हो सकता। अब सतसंग में जाकर वहां पर दुनियादारी के खेल तमाशे करना या उन्हीं चाल-ढाल में बरतना, जिसमें कि मन धोखे देकर आप को बांधे हुए था, अब यहां मुनासिब नहीं है।


(38)

सब काम दुनिया के छोड़कर एक संग दरबार में आने का इरादा करते हो तुम्हारा यह प्यार खाली नहीं जाएगा, क्योंकि एक तरह की लगन, एक तरह की खटक, एक तरह की धार का आना-जाना बन गया है तो वह खींचे बिना नहीं रह सकता और वह खिंचे बिना भी नहीं रह सकता। जो ऐसा परमार्थी है और आने से मजबूर हो जाता है कभी-कभी, दुनिया की परिस्थितियों के कारण, अड़ंगों के कारण तो वह अंतर में बहुत दुखी रहता है, क्योंकि दुनिया और दुनिया के भोग, विलास और कार्य जो कि कर्तव्य के रूप में इसको करने पड़ते हैं, उनको यह कर्तव्य बतौर करता है लेकिन उसकी लगन बराबर संत सतगुरु के संग में लगी रहती है और यही आवश्यक है, यही खिंचाव है अगर यही खिंचाव बना रहा तो प्रीत बढ़ती चली जाएगी और प्रीत बढ़ती चली जाएगी तो मालिक खुश होकर प्रेम भी बख्शते चले जाएंगे और एक दिन अपने धाम में बासा भी देंगे।