Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -29: Radhasoami मत में मांस खाने की मनाही क्यों?

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके अंदर तामसी अंग न पैदा होने पावें, राधास्वामी  मत में गोश्त खाने की और शराब पीने की मनाही इसलिए है क्योंकि वह फितूर पैदा करते हैं और इनसे अकाज हो सकता है, सोहबत बुरी पड़ सकती है और बिगाड़ हो सकता है और इनसे उद्धार में विघ्न हो सकता है। हिंसा और अहिंसा की बात तो बहुत लोग करते हैं। फरमाया है कि किसी पशु को बिना बात क्यों मारना, उसके अंदर भी जान है, उसके अंदर भी अंश है मालिक का, तो तुम कौन होते हो उसको काटने जा मारने वाले। यह भी कहा है कि अगर अच्छी चीज खाओगे तो वृत्ति अच्छी होगी तो गोश्त तो बहुत गंदी चीज हुई, किसी मरे हुए जीव का, बकरे का, सुअर का मांस खाना, वैसे परहेज करते हैं, यानी किसी की मुर्दनी में भी जाते हैं तो आकर नहाते हैं लेकिन मृत जीव को खाने में कोई परहेज नहीं करते हैं। इसी तरह से शराब, भांग और नशे की चीजों का असर क्या होता है- इनसे भी दिमाग में फितूर पैदा होता है, वहो तुमको अभ्यास के काबिल नहीं रखेगा, वो तुमको भोगों की तरह खींचेगा। जब अवगुणहारी विषयभोगी और जानवर वृत्ति के लोग अधिक पैदा हो जाते हैं तो वह वातावरण को अशुद्ध कर देते हैं। पशु भी, जो कि खूंखार जानवर है, वह भी आप पर आक्रमण नहीं करता जब तक कि वह भूखा न हो या आप उस को छेड़ें नहीं, लेकिन यह कैसे मनुष्य, याह तो पशु है जिनको किसी की हत्या करने में भी परहेज नहीं है। मालिक की दया ऐसे जीव से हट जाती है और फिर उसका रक्षक कोई नहीं होता। इसलिए ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए और सतगुरु को प्रसन्न रखना चाहिए, उनकी प्रसन्नता से हमें फायदा है और उनकी अप्रसन्नता से भारी नुकसान है। इस बात में वो राजी हैं उसको करने में तुम्हारा कोई बिगाड़ नहीं हो सकता है।

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संत जो बचन जिस समय भी फरमाते हैं वह हर समय के लिए सही होता है क्योंकि संत अपनी देखी कहते हैं। संत सत्त देश से आते हैं और उनका एक उद्देश्य केवल जीवों के उद्धार के अलावा और कोई नहीं है। वह जिस किसी तरह से भी चाहें जीव के उद्धार के निमित्त कार्रवाई करते हैं, चाहे देखने में वह बच्चों का खेल मालूम पड़े, रर उनका उद्देश्य फर्क है कि, वह प्यार करके. बच्चों की तरह उसको खिलौने लाकर, उनका मन बहला कर, उसको अपनी गोद में बैठा कर, उसके ऊपर दया का हाथ रखकर, प्यार की बोली बोलकर उसका उद्धार करते हैं। जरूरत पड़े तो थोड़ी बहुत गढ़त कर देते हैं। वह मां का काम भी करते हैं और पिता का काम भी करते हैं और उस्ताद का काम भी करते हैं और सच्ची सोहबत यानी सामाजिक व्यवहार भी दिखा देते हैं। इसलिए कहा है कि संत दयाल गृहस्थी में रहते हैं। रोजमर्रा की जो तकलीफें साधारण आदमी को होती हैं वह भी धारण करते हैं, ऊपरी चिंता भी दिखा देते हैं लेकिन काल और माया उनसे डरते हैं और उनके हुक्म से घबराते हैं और उनके जीवों के रास्ते में रुकावट पैदा नहीं करते बल्कि उनकी मदद को तैयार रहते हैं। तो संत सतगुरु का मुकाबला किसी से कैसे हो सकता है। उनका उद्देश्य जीव का सच्चा कल्याण करना है। वो आए ङी इसीलिए हैं, इसलिए राधास्वामी दयाल के बचनों को पढ़ना और गौर से उनको समझना हर सत्संगी का कर्तव्य हो जाता है। जब उन्होंने फरमाया कि बानी का रोजमर्रा बिला नागा पाठ करो तो करो, जब उन्होंने कहा कि रोज गुरु स्वरूप का ध्यान करो तो करो, उन्होंने कहा कि राधास्वामी नाम का सुमिरन चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते करो तो करो। जब वो चाहते हैं आओ और जरा रहो हमारे पास तो आओ और फिर रहो न उनके पास, जितना सिखाना चाहते हैं वह सिखा देंगे।