Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -19: निंदकों और दुनियादारों की चिंता मत करो

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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अगर आपको सच्चा परमार्थ मिल गया है, आपको राधास्वामी दयाल में पूरा विश्वास आ गया है और आप थोड़ी बहुत सी प्रीत और प्रतीत अपने गुरु से करने लगते हैं तो फिर निंदकों और दुनियादारों की चिंता मत कीजिए, क्योंकि जो कुछ भी वह कहते हैं वह कीचड़ से सनी होती है। उसमें उनका अपना स्वार्थ और मतलब होता है। वह समझ नहीं सकते कि भक्ति की रीत कैसी है। यह बात नहीं है कि भक्ति नहीं सिखाई है या भक्ति की रीत उन लोगों ने नहीं पढ़ी है जिन्होंने की रामायण पढ़ी है या जो कथा कहलाते हैं। वह भक्त नहीं हैं तो क्या है, भक्तों की रीत तो समझते हैं लेकिन दिशा बिगड़ी हुई है। मंदिरों- मूर्तियों और तीर्थों की तरफ ध्यान ज्यादा है तो फिर आजकल तो ऐसा युग आ गया है कि जिसमें परमार्थ की कोई अहमियत ही नहीं है। ज्यादातर नवयुवक और युवतियां ऐसे पैदा हो गए हैं कि जो मालिक को नहीं मानते और ना उनका डर तथा खौफ रह गया है, उसकी वजह से फिर क्या होता है- वह करतूतें होती है जो हो रही हैं आजकल। बच्चे आजकल के अनसमझ हैं या कि इस तरह से उनको साम्यवाद जहर की तरह घोट कर दिया गया है कि वह सौम्यवाद को भूल गए हैं, समन्वयवाद बात को भूल गए हैं।

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तुम्हारे पास अपार शक्ति होते हुए, तुम्हारे पास राधास्वामी दयाल की खबर होते हुए, तुमको अपने उद्धार का रास्ता मालूम होते हुए भी उस रास्ते से विलग होना शोभा नहीं देता। कितनी बड़ी नियमत हम लोगों की मिली हुई है, रक्षा कवच हम लोगों को मिला हुआ है, रक्षा का साया हमको मिला हुआ है, फिर हम उस साये को छोड़कर क्यों इधर-उधर घूमते हैं। यह अच्छी तरह जान लो कि तुम सुरक्षित हो बशर्ते कि तुम उस सुरक्षा कवच के अंदर रहो बाहर नहीं। तुम्हारे सामने लक्ष्मण रेखा भी है। तुम लोग समझ लो उस लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करने दिया जाएगा। समझना चाहिए कि बेईमानी और मनमानी आधुनिकता मंजूर नहीं है। आधुनिकता आती है विचारों से, आधुनिकता आती है दृष्टिकोण से, आधुनिकता आती है दूसरों के साथ रहम दिली दिखाने से। वास्तविकता यहां की संकीर्णता से निकल भागना है, सत्संग में लगना है और इसी काम के लिए कुल मालिक राधास्वामी दयाल आए हैं और अपनी चरन सरन में ले रहे हैं। धीरे-धीरे सबका उद्धार करने को कहा है। जगत का उद्धार मांगा है तो जगत का उद्धार होगा लेकिन जीव को अपना आचरण सुधारना होगा।