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अकबर ने बसाया था ‘नगर चैन’, राधास्वामी मत के गुरु प्रो. अगम प्रसाद माथुर की पुस्तक ‘मेरे विचार खंड-2’ में कई रहस्यों का खुलासा

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-अनेक दुर्लभ विचारों वाली यह पुस्तक शोधार्थियों के साथ-साथ आम जन के लिए भी उपयोगी
Agra, Uttar Pradesh, India. राधास्वामी मत के अधिष्ठाता और आगरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज) सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक गुरु नहीं हैं। उन्होंने समाज के हर क्षेत्र में चिंतन-मनन किया है। हर विषय पर उनका गहरा शोध है और तीक्ष्ण दृष्टि है। तभी तो वे हर विषय पर धाराप्रवाह सम्भाषण कर पाते हैं। फिर चाहे वह धर्म, दर्शन, अध्यात्म, विज्ञान, शिक्षा, साहित्य, इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति, ललितकला, संस्कृति, पुरातत्व, मानवाधिकार, संगणक, न्याय, शिक्षक, शिक्षार्थी, आर्थिक समस्याएं, न्यायिक प्रक्रिया, स्वास्थ्य, भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति, पर्यटन, आगरा के स्मारक हों या युवा, बुजुर्ग, महिलाओं से संबंधित विषय। प्रत्येक विषय पर मौलिक चिन्तन स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। इसी तरह के तमाम विषयों पर केन्द्रित प्रो. अगम प्रसाद माथुर की एक और पुस्तक प्रकाशित हुई है- ‘मेरे विचार खंड-2’।

इस पुस्तक में राष्ट्र सेवा, विश्व शांति जैसे विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है। सभी विचार बहुआयामी हैं। लेखक की दूरदृष्टि वाले चिन्तन का सहज अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि 10-15 साल पहले प्रकट किए गए विचार आज भी प्रासंगिक हैं। मेरे विचार प्रथम खंड की तरह ही दिव्तीय खंड भी विविधता में एकता को समाहित किए हुए है और संग्रहणीय है। यह पुस्तक संदर्भ ग्रंथ की तरह उपयोगी है। अनेक दुर्लभ विचारों वाली यह पुस्तक शोधार्थियों के साथ-साथ आम जन के लिए भी उपयोगी है।

आगरा के मुगलकालीन स्मारकों पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन इस पुस्तक में पाठकों को आगरा किला फतेहपुर सीकरी, अकबर का मकबरा, एत्माद-उद्-दौला और ताजमहल के बारे में सर्वथा नवीन जानकारी मिलेगी। जैसे अकबर ने ग्वालियर रोड पर ‘नगर चैन’ की स्थापना की थी और आगरा किला के पुनरुद्धार के बाद नगर चैन को नष्ट कर दिया गया था। इस तरह पुस्तक पर्यटकों के लिए भी उपयोगी है। स्मारकों के बारे में प्रमाणित जानकारी पुस्तक में है। अगर कोई मेरे विचार खंड-2 पुस्तक पढ़कर स्मारक में प्रवेश करेगा तो उसे गाइड कपोल-कल्पित कहानी सुनाकर भ्रमित नहीं कर पाएगा।

 राधास्वामी मत किस तरह से आध्यात्मिक चेतना का स्वरूप है, इस बारे में भी पुस्तक में विस्तार से वर्णन है। अत्यंत सरल शब्दों में राधास्वामी मत की विवेचना की गई है। राधास्वामी मत के अनुयायी सतसंगियों से एक गुरु के रूप में दादाजी महाराज की क्या अपेक्षाएं हैं, यह भी पुस्तक में बताया गया है।

27 जुलाई, 1930  को जन्मे प्रो. अगम प्रसाद माथुर राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य हैं। उनके देश-विदेश में करोड़ों अनुयायी हैं। उन्हें मध्यकालीन भक्ति परंपराओं का अद्भुत ज्ञान है। वे आगरा विवि के दो बार कुलपति रहे हैं, जो रिकॉर्ड है। गद्य और पद्य में उनकी रचनाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि मिली है। प्रो. माथुर दर्जनों पुस्तकें लिख चुके हैं। वास्तव में वे धर्म, दर्शन, अध्यात्म, समाज और संस्कृति के पोषक और सुधारक हैं। वे भारतीय संस्कृति के संवाहक हैं। यही कारण है कि राधास्वामी मत का आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा पिछले 150 वर्षों से श्रद्धा, भक्ति और सेवा का अपूर्व संगम बना हुआ है।

पुस्तक का नामः मेरे विचार खंड-2

लेखकः प्रो. अगम प्रसाद माथुर

प्रकाशकः Xact Books, दिल्ली एवं राधास्वामी सतसंग हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा।

मूल्यः 795 रुपये।