हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university) रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami) नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 31 मार्च, 2000 को अग्रसेन भवन, हिसार (हरियाणा, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- जहां अभ्यास जारी है वहां सुरत ठुमका भरकर शब्द को पकड़ती, नाचती तथा खेलती हुई अधर में चढ़ती जाती है। उससे एक धुन झंकृत होती है। इससे वहां का सारा वातावरण शांत और सुखद हो जाता है।
हजूरी संदेश लेकर आया हूं
सच्चे खोजी और दर्दी जो दुनिया से दुखी और बेकल हैं, तड़प रहे हैं, जिन्हें शांति नहीं मिलती और चित्त में उदासीनता बराबर कायम रहती है, उनको मैं शांति दिलाने, हृदय में प्रेम पैदा कराने, उदासीनता समाप्त कराने, बदरंग से सतरंग कराने और प्रेम रंग में रंगने का हजूरी संदेश लेकर आया हूं।
जहां दुनिया की सारी आवाजें मंद पड़ जाती हैं
यहां पर प्रेम और प्रेमियों की कोई कमी नहीं है। निरंतर अभ्यास जारी है और जहां अभ्यास जारी है वहां सुरत ठुमका भरकर शब्द को पकड़ती, नाचती तथा खेलती हुई अधर में चढ़ती जाती है। उससे एक धुन झंकृत होती है। इससे वहां का सारा वातावरण शांत और सुखद हो जाता है। ऐसी झंकार के सामने दुनिया की सारी आवाजें मंद पड़ जाती हैं।
सब खेल आवाज का
दरअसल सब खेल आवाज का है। संसार में जोर और आजमाइश की आवाज हो रही है। लोग विरोध में चीख-चिल्ला कर विरोध और अदावत फैला रहे हैं, जिसने दुनिया के सारे वातावरण को विषैला कर दिया है। फिर भी ऐसे लोग अपने आप को इंसान कहते हैं। एक भी विशेषता उनमें इंसानियत की दिखाई नहीं देती। रूप इंसान का भले ही हो लेकिन हैवानियत है। यह सब माइक आवाज के प्रभाव के कारण है।
आज की दुनिया थकी हुई और सुस्त क्यों
यहां आवाज चुपके-चुपके और आँख के इशारे से भी की जाती है। इससे धीरे-धीरे एक दूसरे के प्रति दुर्भाव, चालाकी, कूटनीति ईर्ष्या और बदले की भावना पैदा होती है। इस प्रकार की रस्साकशी में एक अजीब किस्म की गर्मी पैदा हो जाती है। उस गर्मी के कारण मन में जो कुछ भी शांत स्वभाव के लक्षण हैं वह भी खुश्क हो जाते हैं टूट जाते हैं। इंसान इन तमाम बातों को सोच कर थक जाता है। इसीलिए आज की दुनिया थकी हुई और सुस्त नजर आती है, लेकिन अनेक वैज्ञानिक दावा ठोक रहे हैं कि उन्होंने जीवों के भोगने के लिए विज्ञान के आविष्कार करके बहुत सुख सुविधाएं इकट्ठा करा दी हैं। (क्रमशः)
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