हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university) रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami) नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 8 अप्रैल 2000 को ऋषि आश्रम परिसर, पटियाला (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- मैं हिन्दुओं, सिखों और अन्य सब लोगों से जो विशिष्ट मानवता में विश्वास रखते हैं, यह पुरजोर अपील करना चाहता हूं कि समय रहते हुए राधास्वामी मत को जो प्रेम का मत है, ग्रहण कीजिए। राधास्वामी मत शहर आगरे में स्थापित हुआ और इसकी स्थापना कुल मालिक ने स्वयं की।
जातियों का भारतीयकरण हो गया
यह देश सहिष्णुता का देश रहा है। इस देश की परंपरा में सम्प्रदायवाद की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। अगर इतिहास पर दृष्टि डाली जाए तो यहां पर हजारों जातियां आई और उन सबका भारतीयकरण हो गया। अब कोई कहे कि वह असली क्षत्रिय है या ब्राह्मण है आ वैश्य है तो ऐसा कदापि नहीं है। अब अगर कोई है तो वह हिन्दुस्तानी है।
समन्वय केवल राधास्वामी मत ही कर सकता है
मैं जहां-जहां पंजाब में गया, मैंने झंकृत धुन सनी है। मैं कहना चाहता हूं कि अब समय गया है जब आप सम्प्रदायवाद से हटकर केवल समन्वयवाद की ओर मुड़ सकते हैं। यह समन्वय केवल राधास्वामी मत ही कर सकता है। इसलिए आज की आवश्यकता और पुकार यह है कि गुरु को ढूंढो जैसा ग्रंथ में लिखा है। तुम्हें सच्चे ग्रंथ में दिए हुए आदेश के अनुसार वक्त गुरु की तलाश (खोज) करनी चाहिए।
प्रेम राधास्वामी मतानुसार करना चाहिए
मैं हिन्दुओं, सिखों और अन्य सब लोगों से जो विशिष्ट मानवता में विश्वास रखते हैं, यह पुरजोर अपील करना चाहता हूं कि समय रहते हुए राधास्वामी मत को जो प्रेम का मत है, ग्रहण कीजिए। राधास्वामी मत शहर आगरे में स्थापित हुआ और इसकी स्थापना कुल मालिक ने स्वयं की। कुल मालिक गुरु रूप में प्रकट हुए- पिता रूप में स्वामी जी महाराज और पुत्र रूप में हजूर महाराज, प्रीतम रूप में स्वामी जी महाराज और प्रेमी रूप में हजूर महाराज, स्वामी रूप में स्वामी जी महाराज और राधा रूप में हजूर महाराज। इस मत का मूल सिद्धांत प्रेम है और प्रेम राधास्वामी मतानुसार करना चाहिए।
मालिक ने स्वयं नर रूप में अवतार धारण किया
संत मत के अलावा जो प्रेम की पुरानी परंपरा थी, उसमें मोह के बंधन थे, उपासना नहीं थी। यहां सिखाया जाता है कि निराकार मालिक से प्रेम कैसे किया जाए- इसके लिए निराकार मालिक ने स्वयं नर रूप में अवतार धारण किया। इसलिए जो नर देह में विराजमान वक्त गुरु से प्रेम किया जाता है, वही निरकार मालिक से प्रेम माना जाता है। यह असली बात है क्योंकि स्वयं राधास्वामी दयाल ने गुरु रूप धारण किया है और यहां पर गुरु और शिष्य की परंपरा जारी है।
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