Dadaji maharaj hazuri bhawan

राधास्वामी मत के अधिष्ठाता दादाजी महाराज के बारे में 15 अनसुनी बातें, 29 वर्ष की आयु से संभाल रहे कमान

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE लेख साक्षात्कार

डॉ. भानु प्रताप सिंह

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज Dadaji maharaj) का आज 91वां जन्मदिवस (Happy Birth Day of Dadaji maharaj) है। 27 जुलाई, 1930 को जन्मे दादाजी महाराज पिछले 62 साल से राधास्वामी सत्संग (Radhasoami satsang) की कमान संभाल रहे हैं। देश-विदेश में उनके करोड़ों अनुयायी हैं। उन्होंने राधास्वामी मत को नई दिशा दी है। वे सिर्फ भक्ति योग के मर्मज्ञ नहीं, बल्कि समाज सुधारक (Social Reformer) भी हैं। उन्होंने राधास्वामी मत के अनुयायियों (Followers of Radhasoami Faith) के लिए विवाह (Marriage) की नई पद्धति दी है। इसमें न दहेज है और न ही कोई बाह्य दिखावा। गौरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। शाकाहार (Vegetarian) उनका मूलमंत्र है। मृत्युभोज का निषेध किया है। दादाजी छोटा परिवार-सुखी परिवार (Family planning) के भी हिमायती हैं। पीपलमंडी, आगरा स्थति हजूरी भवन (Hazuri bhawan, peepal mandi, Agra)) से दादाजी महाराज अपने करोड़ों अनुयायियों को प्रेम का संदेश देते हैं। दादाजी महाराज आगरा विश्वविद्यालय (Vice chancellor of Agra university) के दो बार कुलपति रहे हैं, जो अपने आप में रिकॉर्ड है। आइए जानते हैं, दादाजी महाराज के बारे में 10 अनसुनी बातें।

1.प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर (Prof Agam Prasad mathur dadaji maharaj ) ने परंपरागत रूप से होने वाले विवाहों में विसंगतियों, दिखावा और अनावश्यक व्यय से होने वाली समस्याओं को निकटता से देखा। मंत्रों के प्रति अनभिज्ञता को देखा। इसे देखते हुए उन्होंने नई विवाह पद्धति की शुरुआत की। इसका शुभारंभ भी अपनी पुत्री के विवाह से किया। इसमें किसी भी प्रकार के दिखावे या तड़क-भड़क का पूर्ण निषेध है। नई पद्धति में राधास्वामी मत के निवर्तमान आचार्यों की पवित्र समाध पर वर तथा वधू पक्ष वर्तमान आचार्य की अध्यक्षता में आयोजित विवाह सत्संग में उपस्थित होते हैं। परंपरागत पाठ के बाद समस्त सत्संग समाज के समक्ष विवाह प्रस्ताव पढ़ा जाता है। इसके बाद कन्या पक्ष की ओर से आग्रह किया जाता है कि वर उनकी कन्या को पत्नी के रूप में वरण करना स्वीकार करें। वर द्वारा अपनी लिखित एवं मौखिक स्वीकृति दी जाती है। इसके बाद जयमाल की रस्म होती है। वर-वधु पवित्र समाध और वर्तमान आचार्य के समक्ष माथा टेकते हैं। अंगूठियों का आदान-प्रदान करते हैं। गठबंधन किया जाता है। सप्तपदी की रस्म पूरी कर वर, कन्या की मांग में सिदूंर भरता है।

2.मांग में सिंदूर भरने के बाद वर-वधू का शपथ समारोह होता है। सर्वप्रथम वर द्वारा कन्या को वधू रूप में स्वीकारने और सफल दाम्पत्य निर्वाह की प्रतिज्ञा ली जाती है। फिर कन्या द्वारा वर को पति के रूप में स्वीकार करने की घोषणा की जाती है। फिर वर-कन्या अब पति-पत्नी के रूप में संयुक्त रूप से पारिवारिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति जागरूक रहने और उनके सफल निर्वाह की शपथ लेते हैं। अंत में वर्तमान आचार्य द्वारा नवदंपति के दांपत्य जीवन में प्रवेश की आधिकारिक घोषणा करते हैं। उपदेश देते हैं। इसके साथ ही पाणिग्रहण संस्कार की प्रक्रिया पूरी होती है।

3.इस विवाह पद्धति में सजावट, बैंडबाजा, दावत और उपहार के रूप में अनावश्यक खर्चों पर पूरी तरह से रोक है। विवाह के बाद मिष्ठान्न वितरण भी सत्संग समाज की ओर से किया जाता है। आवश्यक और दोनों पक्षों की सहमति से संयुक्त प्रीतिभोज सत्संग पद्धति से आयोजित होता है। इस पद्धति से दादाजी महाराज की अध्यक्षता में प्रतिवर्ष दर्जनों विवाह आय़ोजित हो रहे हैं, जिससे समय, शक्ति और धन के अपव्यय पर पूर्ण विराम लग गया है।

4.प्रोफेसर माथुर ने अंतरजातीय विवाह को भी प्रोत्साहित किया है। इससे जातिभेद और वर्गभेद को समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने अपने द्वितीय पुत्र का अंतरजातीय विवाह करके सत्संग समाज को यह संदेश दिया है। हिन्दू समाज में विधवा महिलाओं को तिरस्कार की नजर से देखा जाता है। प्रो. माथुर ने विधवा विवाह को समर्थन किया है। उनका मानना है कि विधवा विवाह भी नारी सशक्तिकरण की ओर एक ठोस कदम है। विधवा स्त्री से चूड़ी, बिन्दी, रंग और गंध छीनकर उसे कुरूप बनाना अन्याय और असंगत है। सत्संग समाज में विधवा को पूर्ण श्रृंगार को अनुमन्य किया गया है। विधवा स्त्री सभी मांगलिक कार्यों में उपस्थित रह सकती है।

5.समाज सुधार की दिशा में प्रोफेसर माथुर ने संयुक्त परिवार को अपनाने का आह्वान किया है। हजूरी भवन में अनेक संयुक्त परिवार पल्लवित हो रहे हैं। इसी तरह सत्संग समाज में मृत्युभोज या त्रयोदशी पर पूर्ण प्रतिबंध है। परिजन की मृत्यु के बाद अनाथाश्रम, कुष्ठ आश्रम, महिला आश्रम, विधवा आश्रम, वृद्धाश्रम में दान की बात कही है।

6.प्रोफेसर माथुर ने अपने 70वें जन्मदिवस पर शाकाहार आंदोलन शुरू किया। उन्होंने कहा कि अंडा भी नहीं खाना है। जो शाकाहारी नहीं है, उसके साथ कोई व्यवहार न रखा जाए। शाकाहार से विश्व का तनाव दूर हो सकता है। इसी तरह शराब के सेवन पर रोक है। दादाजी महाराज ने हर हाल में गाय की रक्षा करने की बात कही है। गोवध पर रोक होनी ही चाहिए। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा है कि वे छोटा परिवार की अवधारणा को सार्थक करें। यह सरकार के परिवार नियोजन अभियान की ओर एक सकारात्मक कदम है।

7. दादाजी महाराज का आलेख ‘मेरा आगरा’ सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला आलेख है। इसमें आगरा की प्राचीन, अर्वाचीन झलक, इतिहास, संस्कृति, धर्म, रहवास, स्वतंत्रता की लड़ाई, वर्तमान दशा आदि का रोचक वर्णन है। आलेख के अंत में दादाजी ने कहा है- कौन लौटाएगा मेरा आगरा, राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार, उच्चतम न्यायालय?

8.दादाजी महाराज ने 1998 में परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज का शताब्दी भंडारा कराया। दादाजी महाराज ने 2003 में परम पुरुष पूरन धनी स्वामी जी महाराज का 125वां भंडारा कराया। दादाजी महाराज ने 2004 में परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज का 175वां जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया। हजूरी भवन की रौनक देखते ही बनती थी।

9.1960 में  परम पुरुष पूरन धनी कुँवर जी महाराज की समाध का निर्माण, कुँवर जी महाराज के कमरे का पुनर्निर्माण, 1980 में भंडारगृह का पुनर्निर्माण,1982 में आनंद घर का पुनर्निर्माण, 1998 में परम पुरुष पूरन धनी लालाजी महाराज की समाध का सौंदर्यीकरण और प्रेमबिलास प्रांगण का सौंदर्यीकरण कराया। 2003-4 में हजूरी भवन से जुड़े भवनों का पुनर्निर्माण, 2004 में हजूरी गली, सतसंगियों के लिए प्रवास सुविधा का विकास, 2005 में परम पुरुष पूरन धनी कुँवर जी महाराज के कमरे का सौंदर्यीकरण कराया।

10. राधास्वामी मत में गुरु परंपरा जारी है।  स्वामीजी महाराज – हजूर महाराज को लालाजी महाराज और लालाजी महाराज को कुंवरजी महाराज और कुंवरजी महाराज द्वारा दादाजी महाराज (प्रो. अगम प्रसाद माथुर) द्वारा गुरु नामित किया गया, जो वर्तमान में गुरु और राधास्वामी सत्संग के प्रमुख हैं।

11. प्रो. अगम प्रसाद माथुर का व्यक्तित्व इतना जटिल और इतना बहुआयामी है, कि वे एक पहेली हैं, और उनके संपूर्ण व्यक्तित्व की समझ समझ से बाहर है। यह पाया जाता है कि कुछ लोग उन्हें हल्के में लेते हैं, कुछ उनके आलोचक हैं, कुछ उनकी प्रशंसा करते हैं, कुछ उनकी चापलूसी करते हैं, और लाखों लोग उन्हें देवता के रूप में पूजते हैं। देखने वाले को लगता है कि वह एक सांसारिक व्यक्ति है। वह जीवन की एक सुंदर शैली के साथ एक जन्मजात अभिजात्य वर्ग है। वह उच्च शिक्षित, सुसंस्कृत और संस्कारी है। उसके निर्णय और निर्णय सभी प्रभावों से स्वतंत्र होते हैं और वह कभी भी सच्चाई से समझौता नहीं करता है। वह लोगों से दोस्ती करते हैं और दोस्ती को महत्व देता है। हर किसी से व्यापक संपर्क है। वे स्वयं एक नेता और पथ प्रदर्शक हैं। वह नवीनतम ज्ञान से परिचित हैं और शिक्षा, समाज, राजनीति, इतिहास, ललित कला, संस्कृति, दर्शन, धर्म, विज्ञान आदि से संबंधित समस्याओं से अच्छी तरह वाकिफ हैं।

12. वे एक कवि भी हैं, और उन्होंने हिन्दी और उर्दू में उच्च साहित्यिक योग्यता की कविता की रचना की है। वे एक अच्छा संवादी और एक एक्सटेम्पोर वक्ता है और विभिन्न विषयों पर आसानी से बोलते हैं। वह अपने दर्शकों को मंत्रमुग्ध और मोहित कर लेते हैं जो ध्यान से सुनता है। उन्होंने न केवल एक विद्वान और इतिहास के प्रोफेसर के रूप में बल्कि इसके दुभाषिया के रूप में भी खुद को प्रतिष्ठित किया है। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति की हैसियत से सबसे सफल प्रशासक के रूप में अपनी पहचान बनाई है।

13. प्रो. अगम प्रसाद माथुर, राधास्वामी सत्संग के प्रमुख हैं। अपने विश्वास के मूल सिद्धांतों को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने में हर समय लगे रहते हैं। उन्होंने आस्था के दायरे को विहंगम किया है और उसे एक नया आयाम दिया है। गुरुओं के मूल सिद्धांतों को बनाए रखते हुए, उन्होंने जरूरत पड़ने पर इसमें बदलाव किए हैं। उन्होंने अधिक जीवन और जोश का संचार किया है और गुरुओं और मानव जाति के प्रेम और सेवा पर जोर दिया है। वह जो उपदेश देते हैं उसमें एक चुंबकीय शक्ति होती है। इसलिए, यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि उन्होंने भारत और विदेशों के लाखों लोगों को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से आकर्षित किया है, जो उनके भक्त बन गए हैं।

14. उनतीस वर्ष की आयु में उन्होंने राधास्वामी सत्संग के क्षेत्र को संगठित करने, सुदृढ़ करने और व्यापक बनाने की जिम्मेदारी संभाली। उनका एकमात्र मिशन लोगों को विश्वास के मूल सिद्धांतों पर ज्ञान देना, प्रेम और त्याग की भावना, गुरु के प्रति सेवा और भक्ति और उनके चरणों में पूर्ण समर्पण, मानव जाति के अंतिम अच्छे के लिए जागृत करना है।

15. डॉ. अगम प्रसाद माथुर इस परंपरा की पंक्ति में हैं और आध्यात्मिक या रहस्यवादी तत्व ने उनके पूरे जीवन को नियंत्रित किया है। यह वह तत्व है जो उनके जीवन को अर्थ और महत्व देता है, जो वे कमल की तरह जीते हैं, और मेरे विचार में, उनके व्यक्तित्व की एक पूरी तस्वीर पेश करते हैं।