Ashwani vashishtha

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव से सबक और तीन बदलाव आवश्यक

NATIONAL POLITICS PRESS RELEASE REGIONAL लेख

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव 2021 का एक चरण मई 2021 के प्रथम सप्ताह में पूर्ण हो चुका है। जैसा कि हम जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में मतदाताओं को चार मत मत पेटिकाओं मे डालने होते हैं। पहला मत ग्राम पंचायत सदस्य, दूसरा ग्राम प्रधान, तीसरा क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं चौथा मत जिला पंचायत सदस्य के लिए !

जहां तक पहले मत की बात है तो उस पद के लिए किसी में कोई दिलचस्पी नहीं होती है क्योंकि ग्राम पंचायत सदस्य की ग्राम के विकास में कोई महत्तवपूर्ण भूमिका नहीं होती है। उनके होने न होने से कोई खास अंतर भी नहीं आता है। ग्राम प्रधान ग्राम पंचायत सदस्यों की कागजी खानापूरी अपने हिसाब से करता है। दूसरा मत ग्राम प्रधान के लिए होता है। प्रधान की ग्राम के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। तीसरा मत क्षेत्र पंचायत सदस्य के लिए डाला जाता है। विजयी सदस्य अपने में से ही एक सदस्य को क्षेत्र पंचायत प्रमुख (ब्लॉक प्रमुख) के लिए चुनते हैं।

आगरा में कुल 15 एवं पूरे उत्तर प्रदेश में 823 क्षेत्र पंचायतें हैं। इसी प्रकार आगरा में 51 एवं पूरे उत्तर प्रदेश में 3151 सदस्य जिला पंचायत के लिए चुने जाते हैं। यही सदस्य अपने में से ही एक सदस्य को जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं। इसलिए 75 ही जिला पंचायत अध्यक्ष चुने जायेंगे। सदस्यों के आधार पर बड़ी एवं छोटी जिला पंचायत की बात करें तो उत्तर प्रदेश में गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत सबसे छोटी है, जहां मात्र 5 सदस्य हैं। प्रयागराज एवं आजमगढ़ जिला पंचायतें सबसे बड़ी हैं, जहां 84-84 सदस्य चुने जाते हैं।

एक बात जो मुख्यतः गौर करने की है कि पंचायत अधिनियम लागू होने के बाद से ही ग्राम पंचायत सदस्य एवं ग्राम पंचायत प्रमुख (प्रधान ) को मतदाता चुनते हैं।न क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत की बात है तो ठीक विपरीत स्थिति है। यहां मतदाता क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं जिला पंचायत सदस्यों को तो चुनते हैं लेकिन क्षेत्रपंचायत एवं जिला पंचायत प्रमुखों को नहीं।आखिर जब ग्राम पंचायत सदस्य ग्राम प्रधान को नहीं चुनते हैं तब क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं जिला पंचायत सदस्य क्षेत्र पंचायत प्रमुख एवं जिला पंचायत प्रमुख को क्यों चुनते हैं? जब मतदाता अपने लिए चार मत डाल सकता है तब क्षेत्र पंचायत प्रमुख एवं जिला पंचायत प्रमुख के वह मतदान क्यों नहीं कर सकता है? शहरी एवं अर्धशहरी क्षेत्रों में जब मतदाता नगर पंचायत, नगर पालिका एवं नगर निगमों में सदस्यों के साथ साथ उनके अध्यक्षों एवं महापौरों के लिए भी मतदान कर सकता है, तब ग्रामीण क्षेत्रों में क्षेत्र पंचायत प्रमुखों एवं जिला पंचायत प्रमुखां के लिए क्यों नहीं कर सकता है।

अब जब सदस्यों द्वारा ही अपने में से क्षेत्र पंचायत प्रमुख एवं जिला पंचायत प्रमुख के लिए मतदान होना है पूर्व में अक्सर ही धनबल, बाहुबल एवं सरकारों द्वारा अपने पद के दुरुप्रयोग की बहुत सी घटनाऐं हुई हैं। चूंकि भाजपा की सरकार कानून को पालन सर्वाधिक करने में विश्वास रखती है और इस बार का मतदान बिना भय के होना यह बताता है कि आने वाले समय में क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत प्रमुखों के अप्रत्यक्ष चुनावों में बाहुबल धनबल का प्रयोग होना आसान नहीं होने वाला है। इस बार वर्तमान की भाजपा सरकार द्वारा पूर्व में क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत प्रमुख के चुनाव अपरोक्ष न कराकर सीधे जनता द्वारा कराने पर विचार किया गया था लेकिन बाद में चुनाव की पहले की ही तरह ही संपन्न कराये गये, क्योंकि इसमें एक माननीय न्यायालय से आदेश करा लाए कि चुनाव अप्रैल में ही समय से संपन्न कराये जायें। यदि चुनाव बदले नये प्रकार से होते तो निःसंदेह ही चुनाव निर्धारित समय पर नहीं हो पाते।

इन चुनावों में यह भी प्रचारित किया गया कि भाजपा को जनता ने नकार दिया एवं सपा को विजयी बनाया है। विचारणीय यह है कि जब चुनावों में पार्टियों का चुनाव चिह्न ही नहीं था तब नकारने एवं विजयी बनाने की बात कहां से आ गयी। वर्तमान जिला पंचायत चुनावों में पहली बार भाजपा ने अपने अधिकृत प्रत्याशी घोषित तो किये थे लेकिन उनका चुनाव चिह्न निर्दलीय था, पार्टी का नहीं। तब विजयी होने वाले सभी सदस्यों एक तरह से निर्दलीय की ही भूमिका में होंगे। इसलिए जब दूसरे दौर का मतदान शुरु होगा तब बहुत से सदस्यों की निष्ठायें बदलना आम बात हैं क्योंकि उनपर दलबदल कानून लागू नहीं होगा। ऐस में जहां उनको अच्छा लगेगा वहां वह जायेंगे।

मेरे विचार से उत्तर प्रदेश पंचायत चुनावों में तीन बदलाव आवश्यक हैं। पहला- क्षेत्र पंचायत प्रमुख एवं जिला पंचायत प्रमुख का चुनाव सीधे जनता द्वारा हो। दूसरा- कम से कम जिला पंचायत सदस्यों का चुनाव पार्टियों के चुनाव चिह्न पर होना चाहिये। इससे समय एवं पैसा दोनों की बचत होगी। तीसरा- पंचायत अधिनियम एवं शहरी निकाय दोनों में ही करना चाहिये। आरक्षित वर्ग का जो भी व्यक्ति सामान्य सीट से विजयी होता है तो उसे अगला चुनाव लड़ने पर प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। उसकी जगह उसके परिवार का अन्य व्यक्ति अथवा उसी आरक्षित वर्ग के अन्य व्यक्तियों को चुनाव लड़ने का मौका दिया जाना चाहिए। इससे आरक्षित वर्ग के अन्य व्यक्ति भी सदस्य बनकर इस व्यवस्था का लाभ ले सकेंगे। फिर एक ही व्यक्ति की बपौती नहीं रहेगी।

अश्वनी वशिष्ठ, भाजपा नेता

ताजगंज, आगरा                                                                       

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