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मैं आपका गाँव बोल रहा हूँ… जरा ध्यान से सुनिए

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मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर ये आरोप लगता रहा है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे। मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगता रहा है कि यहाँ अशिक्षा रहती है। मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्य और जाहिल गंवार होने का भी आरोप लगता रहा है।

हाँ ! मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर सुख की खोज में बड़े – बडे शहरों में चले गए। जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं  तो मैं रात भर सिसक-सिसक कर रोता हू।  फिर भी मरता नहीं। मन में एक आस लिए आज भी मेरी ये आँखें उनका इंतजार करती है कि शायद मेरे बच्चे आ जाये और हाँ! उन्हें देखने की ललक में वर्षो से सोया भी नही हूँ। लेकिन हाय ! जो जहाँ गया वो वहीं का होकर रह गया।

मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से कि क्या मेरी इस तथाकथित दुर्दशा के लिए जिम्मेदार तुम नहीं हो ? अरे !  मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था कि तुम शहर से कमा कर मुझे ला कर  दोगे ! पर हाय ! तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए।

मैंने सोचा था कि तुम्हारी कमाई से आने वाली पीढ़ी के लिए सुखद मकान, अच्छा विद्यालय, उनके खेलने के लिए बढ़िया मैदान,  आधुनिक अस्पताल, आदि -आदि बनाऊंगा ! क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम मेरी इसी कमी के कारण मुझसे दूर शहर में जा कर रह रहे हो।

सरकारी अधिकारी व राजनेता बड़े होकर बड़े – बडे शहरों में रहते हैं इसलिए ये सुविधाएं वे शहर में तो देते है पर गांव को अपने हाल पर मरने को छोड़ देते हैं। पर मुझे उनसे नही तुमसे शिकायत है कि तुमने भी मुझे भुला दिया जिसके लिए मैं आज भी जी रहा हूँ ..।

पर आज मैं बहुत खुश हूँ .. क्योंकि मेरे बच्चे  देश भर से भाग-भाग कर मेरे पास आ रहे है !! रेलगाड़ी या बस नहीं मिली तो सैकड़ों मील पैदल चलते हुए भी अपने परिवार को साथ लेकर आ रहे हैं।

जो बच्चे यह कहकर मुझे छोड़ शहर चले गए थे कि गाँव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे, वो किस आस विश्वास पर पैदल ही गाँव लौटने लगे? मुझे तो लगता है निश्चित रूप से उन्हें ये विश्वास है कि गाँव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी,भरपेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा। सच तो यही है कि गाँव कभी किसी को भूख से नहीं मरने देता। हाँ मेरे लाल आ जाओ मैं तुम्हें भूख से नहीं मरने दूँगा।

आओ मुझे फिर से सजाओ, मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ, मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ, मेरे खेतों में अनाज उगाओ, खलिहानों में बैठकर आल्हा गाओ और बिराहा गाओ, जैती गाओ, खुद भी खाओ दुनिया को खिलाओ, महुआ,पलास के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ, गोपाल बनो, मेरे नदी ताल-तलैया, बाग-बगीचे  गुलजार करो, बच्चू बाबा की पीस पीस कर प्यार भरी गालियाँ, रामजनम काका के उटपटांग डायलाग, पंडिताईन की अपनापन वाली खीज और पिटाई, अयोध्या साहू की आटे की मिठाई,  हजामत और मोची की दुकान, भड़भूजे की सोंधी महक, लईया, चना, कचरी, होरहा, उम्मी, लिट्टी और चोखा, लाटा, सतुआ, बूट, खेसारी सब आज भी तुम्हे पुकार रहे है’।

मुझे पता है वो तो आ जाएगें जिन्हे मुझसे प्यार है ! लेकिन वो? वो क्यों आएंगे ? जो शहर की चकाचौंध में विलीन हो गए। वहीं पर घर मकान बना लिए, सारे पर्व, त्योहार,संस्कार वहीं से करते हैं मुझे बुलाना तो दूर पूछते तक नहीं। लगता अब मेरा उन पर  कोई अधिकार ही नहीं बचा ?

अधिक नहीं उनसे मेरा इतना आग्रह है कि कम से कम होली दिवाली में ही सही बच्चों को लेकर आ जाते तो मेरा दर्द थोड़ा कम हो जाता। सारे संस्कारों पर तो मेरा अधिकार होता है न ! कम से कम मुण्डन, जनेऊ, विवाह,और अन्त्येष्टि तो मेरी गोद में कर लेते। मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह केवल मेरी इच्छा है, आज यह मेरी आवश्यकता भी है।

मेरे गरीब बच्चे जिनके पास खेती नहीं है जो रोजी रोटी की तलाश में मजदूरी करने मुझसे दूर चले जाते हैं तुम्हारे बार -बार यहां आने से उन्हें यहीं रोजगार मिल जाएगा, ताकि फिर कोई महामारी आने पर उन्हें सैकड़ों मील पैदल नहीं भागना पड़े।

मैं अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूँ। उन्हें शहरों की अपेक्षा उत्तम शिक्षा और संस्कार दे सकता  हूँ, मैं बहुतों को यहीं पर रोजी रोटी भी दे सकता हूँ। मैं उनका मानसिक तनाव कम कर उन्हें बीमारियों से मुक्त कर सकता हूँ। मैं उनको प्रकृति के गोद में जीने का अवसर उपलब्ध कर सकता हूँ।

मैं  तुम्हारे लिए सब कुछ कर सकता हूँ मेरे लाल! बस तू समय समय पर आया कर मेरे पास, अपने बीबी बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा।

बस तू दिखावेपन को त्याग दें। फ्रिज नहीं घड़े का पानी पी, त्योहारों समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में चाय – पानी पीने की आदत डाल, अपने मोची के जूते, और दर्जी के सिले कपड़े पर इतराने की आदत डाल, हलवाई की मिठाई, खेतों की हरी सब्जियाँ, फल फूल, गाय का दूध, बैलों की खेती पर विश्वास रख कभी संकट में नहीं पड़ेगा।

हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है तो लौट आ मेरे लाल ! मेरी गोद में आकर खेल कर देख ! सारा देश फिर सोने की चिड़िया बन जायेगा और विश्वगुरु बन कर सारे विश्व को सुख देकर मानवता की रक्षा करने में अपना देश पुनः सफल होगा।  इसी कार्य के लिए इस भूमि पर बार -बार भगवान अवतार लेते है। मेरे लाल मुझे तीर्थ मान कर अपना जीवन जीकर देख तेरे सारे संकल्प पूरे हो जायेगे! तू सुखी हो जाएगा।

वरिष्ठ पत्रकार बृज खंडेलवाल की फेसबुक दीवार से साभार