कोरोना चैम्पिन का संदेश: घबराएं नहीं, इलाज कराएं, परिवार के सहयोग से मिलती है बीमारी से लड़ने की ताकत

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Noida (Uttar Pradesh, India)  “कोरोना से बचने के लिए हर जरूरी एहतियात बरतें, यदि  उसके बाद भी हो जाए तो इतना  न घबराएं कि उसका असर घर-परिवार के साथ खुद को  प्रभावित कर सके , बेशक यह बीमारी गंभीर है पर सतर्क रहने और समय पर इलाज कराने पर पूरी तरह से ठीक  हो जाती है। इसकेैम्पिन अलावा एक बात और कोरोना संक्रमित होने का यह मतलब कतई नहीं कि आप किसी बीमारी से स्थाई रूप से घिर गये हैं।“

यह कहना है एक निजी टीवी चैनल से जुड़े आलोक कृष्ण दीक्षित का, जो पिछले दिनों कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गये थे। आलोक और उनकी 10 वर्षीय बेटी को कोरोना का संक्रमण हो गया था। 14 दिन के कोरेंटाइन और इलाज के बाद दोनों एक दम स्वस्थ हैं। आलोक का कहना है कि वह कोरोना को मात देकर पूरी तरह से स्वस्थ हैं, इस लिए वह प्लाज्मा देने के लिए भी तैयार हैं। गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (जिम्स) के निदेशक ने उनसे प्लाज्मा देने की बात कही, जिस पर उन्होंने सहमति व्यक्त की थी। वह कहते हैं  कि प्लाज्मा देने पर उन्हें खुशी होगी। आलोक समाज को एक संदेश देना चाहते हैं, कि कोरोना संक्रमित होने पर लोग दूरी बना लेते हैं। दो गज की दूरी तो ठीक है पर भावनात्मक दूरी नहीं बनानी चाहिये। स्वस्थ होने पर तो कतई नहीं। जिसको कोरोना हुआ है वह अछूत नहीं है, यह किसी को भी हो सकता है। उन्होंने कहा जब कोरोना संक्रमण होने की उन्हें जानकारी मिली तो उन्होंने उन सभी लोगों को सतर्क कर दिया जो उनके संपर्क में आये थे। उन्होंने उन्हें जांच कराने की सलाह दी, साथ ही होम कोरेंटाइन होने को कहा। उन्होंने कहा कि बीमारी के दौरान परिवार के सदस्यों और दोस्तों का पूरा साथ रहा, जो उनकी ताकत बना।

अब तो लोग सलाह भी मांगने लगे

“आलोक भाई कल से खांसी हो रही है, हल्का जुकाम भी है, क्या यह कोरोना तो नहीं।“ पिछले कुछ दिनों से इस तरह के फोन लगातार उनके पास आ रहे हैं। लोगों को लगता है कि कोरोना होने के बाद शायद मैं डाक्टर की तरह उन्हें कोई इलाज बता दूं, या यह आश्वस्त कर दूं कि यह कोरोना के लक्षण नहीं हैं। उन्होंने कहा इस सबका एक ही जवाब देते हैं  डाक्टर को दिखाओ और जांच करा लो।

संक्रमण होने से स्वस्थ होने तक की कहानी आलोक की  जुबानी

“हमारी आम सी चलने वाली जिंदगी में कोरोना नाम के तूफान की दस्तक 25 मई 2020 को हुई, जब मेरे घर के सामने रहने वाले और इत्तेफाक से मेरे सहकर्मी ने फोन पर बताया कि उसका कोरोना टेस्ट पॉजिटिव है और उसने अपने संपर्क में आने वाले लोगों में उन्होंने मेरा नाम बता दिया है..इसके तुरंत बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी ऑफिस से फोन आ गया कि आपको क्वेरेंटाइन सेंटर ले जाया जाएगा। हम जाने की तैयारी में जुट गए। मेरा, पत्नी और बेटी, तीनों के अलग-अलग बैग बनाए गये और दो-तीन जोड़ी कपड़े और रोजमर्रा का सामान रखा। उस वक्त थोड़ी घबराहट भी थी | नियत समय पर एंबुलेंस आ गई। खाली सड़कों पर दौड़ते हुए एंबुलेंस मेरे घर से करीब 30 किमी दूर क्वेरेंटाइन सेंटर पंहुच गयी। यह एक जिमखाना क्लब था,,, अगले दिन मेरे पूरे परिवार का कोरोना टेस्ट हुआ और हमसे कहा गया कि  रिपोर्ट आने में दो दिन लगेंगे। लगातार इंतजार करने के बाद आखिरकार 30 मई को हमें सीएमओ ऑफिस से फोन आया और बताया गया कि  मैं और मेरी बेटी कोरोना पॉजिटिव हैं, पत्नी की रिपोर्ट निगेटिव है। पत्नी को घर भेज दिया गया। इसके बाद मुझे और मेरी बेटी को एंबुलेंस से सरकारी अस्पताल (जिम्स) पंहुचाया गया।“

 उन्होंने बताया “यहां मेरे जैसे कई और लोग भी थे, जिनके इलाज में डॉक्टर और अस्पताल स्टाफ भीषण गर्मी मे पीपीई  किट पहन कर जुटे हुए थे। अस्पताल में हमें दवा के साथ हलका और स्वास्थ्य  वर्धक खाना दिया जाता था। समय-समय पर सारे टेस्ट किए जाते थे। हर दिन हमारी हालत में कितना सुधार हो रहा है इसको भी मॉनिटर किया जाता था और इन सब से इतर अस्पताल के डॉक्टर से लेकर स्टाफ का व्यवहार सरल और मित्रतापूर्ण रहा, जिसने इस मानसिक कष्ट से उबरने में विशेष सहायता की। अंतत: हमारी रिपोर्ट नेगिटिव आ गई और सात जून को मैं और मेरी बेटी घर वापस आ गये।“ अब पत्नी सहित तीनों स्वस्थ हैं।