कहाँ है कान्हा का ब्रज ? न कदम्ब, न तमाल, न करील कुंजें

कहाँ है कान्हा का ब्रज ? न कदम्ब, न तमाल, न करील कुंजें

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE साक्षात्कार

Mathura (Uttar Pradesh, India) मथुरा। कोरोना और सीमा पर चीन की हिंसात्मक गतिविधियों के मध्य भी मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ द्वारा प्रदेश स्तर पर पौधारोपण महाभियान की सराहना के साथ पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने यह पीड़ा व्यक्त की है कि बारह वन, 24 उपवन, 12 अधिवन, 12 प्रतिवन तथा 12 तपोवनों की ब्रजभूमि में आज न कदम्बखंडियाँ हैं और न यमुना तट पर तरुवर तमाल की वृक्षावलियाँ हैं जिनके सम्बन्ध में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कभी लिखा था- ‘‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’’ और न ‘वन शब्द के साथ जुड़े वृन्दावन की यह स्थिति है जिसके सम्बन्ध में सत्यनारायण ‘कवि रत्न’ ने लिखा था – ‘पहिले कौ सौ अब न तिहारौ यह वृन्दावन’

       आज वृन्दावन में ‘वृन्दा’ (तुलसी) का वन नहीं है। घर- घर में तुलसी के बिरवा नहीं हैं। कृष्ण दीवानी मीरा ने कभी लिखा था – आली, म्हाने लागे वृन्दावन नीको।

घर – घर तुलसी ठाकुर पूजा, दरसँन गोविन्द जी कौ।

और कृष्ण भक्त चन्दसखी की भी यही भावना थी-

नीकौ लगै वृन्दावन, हमें तो बड़ौ नीकौ लगै।

घर-घर में तुलसी के बिरवा, दरसँन गोविन्द जी कौ।

अष्टछाप कवियों के वर्णनों में कदम्ब, तमाल, करील कुंजों आदि के साथ छौंकरा वृक्ष के वर्णन हैं जिसके नीचे बैठकर महाप्रभु वल्लभाचार्य और वल्लभ सम्प्रदाय के आचार्य प्रवचन किया करते थे किन्तु वे वृक्ष भी नहीं रह गये है।

इस वर्ष 25 लाख 62 हजार 600 पौधे लगाये जाने का लक्ष्य है

सामाजिक वानिकी प्रभाग के प्रभागीय निदेशक रघुनाथ मिश्रा तथा क्षेत्रीय वन अधिकारी मुकेश मीणा से प्राप्त जानकारी के अनुसार विगत वर्ष मथुरा जनपद में लगभग 24 लाख पौधे लगाये गये थे और इस वर्ष 25 लाख 62 हजार 600 पौधे लगाये जाने का लक्ष्य है। इनमें कदम्ब तथा तमाल के पौधों की अपेक्षा नीम, बबूल, पापड़ी, कंजी, शीशम आदि की संख्या अधिक है।

उन्होंने बताया कि महावन-बलदेव मार्ग तथा गोवर्धन-पैंठा मार्ग पर कदम्ब के वृक्ष बहुसंख्या में हैं किन्तु अमराइयां नहीं हैं। सड़कों के चौड़ीकरण कार्य के कारण वृक्षों पर खतरा मँड़राता रहता है।

स्वतंत्रता के पश्चात् ब्रज में लगे हैं करोड़ों वृक्ष – शेष रह गये हैं बबूल – पापड़ी

स्वाधीनता के पश्चात् ब्रज क्षेत्र में करोड़ों वृक्ष लगे हैं, किन्तु कहीं कृष्ण-कन्हैया के उस ब्रज के दर्शन नहीं होते हैं जहाँ कृष्ण सखा ग्वाल -बालों के साथ गाय चराने जाते थे और राधा तथा उनकी सखियों के साथ कुंज-निकुंज में रास रचाते थे। आज न वे वन हैं न कुंज-निकुंज।

उन्होंने अन्त में कहा कि सौभाग्य से जनपद के पाँचों विधायक जिनमें दो मंत्री भी हैं, ब्रज में जन्में-पले हैं किन्तु यह विडम्बना ही है कि ब्रज को उसका प्राचीन स्वरूप नहीं मिल पा रहा है। जन चेतना की जागृति भी इस दिशा में आवश्यक है।

11 thoughts on “कहाँ है कान्हा का ब्रज ? न कदम्ब, न तमाल, न करील कुंजें

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