नेपाल से आए मानव मिलन के 150 कार्यकर्ता अपने देश लौटे
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Agra, Uttar Pradesh, India. जैन स्थानक राजा की मंडी में जैन मुनि राष्ट्र संत नेपाल केसरी डॉक्टर मणिभद्र ने कहा कि एक मूर्तिकार एक टेढ़े-मेढ़े पत्थर के टुकड़े में से एक छैनी से अतिरिक्त पत्थर को निकाल देता है और वो पत्थर एक मूर्ति में रूप में बदल कर विशेष और पूज्यनीय बन जाती है। उसी प्रकार अगर हम अपने जीवन से शेष निकाल देंगे तो विशेष बन जाएंगे और जीवन सुगंधित बन जायेगा।
बुधवार को उत्तराध्ययन सूत्र की मूल वाचनी के दूसरे सूत्र “परिषह” की व्याख्या करते हुए डॉक्टर मणिभद्र ने बताया कि साधना काल में साधक के जीवन में अनेक “परिषह” आते हैं।”परिषह” का मतलब दुख और कष्ट माना जाता हैं लेकिन साधना के मार्ग पर चलते हुए कई बाधाएं आती हैं। इस पर विजय प्राप्त करने के लिए सुख और दुख दोनों को समान भाव से स्वीकार करना होगा।
जीवन में आप निंदा और दुःख को सहन भी कर सकते हैं लेकिन सम्मान और सुख को पचाना आसान नहीं है। जो साधक साधना के मार्ग पर चलते हैं वो जिस प्रकार दुख को स्वीकार करते हैं उसी प्रकार सुख से भी प्रभावित नहीं होते हैं। जैसे भगवान राम को जब राज्य मिला और बाद में उन्हें वनवास मिला, दोनों ही परिस्थितियों को उन्होंने समान भाव से स्वीकार किया।
जैन मुनि ने कहा हम अक्सर दूसरों की निंदा और बुराई करते हैं और चाहते हैं कि वह बदल जाए लेकिन कभी स्वयं को बदलने का प्रयास नहीं करते। अगर आप अपने आप को बदलेंगे अपने आप को अच्छा बनाएंगे तो सारा संसार आपके लिए अच्छा होगा। इसके बाद डॉक्टर मणिभद्र ने एक नेपाली भजन भी गाया। नेपाल से आए 150 से अधिक मानव मिलन के कार्यकर्ताओं का बुधवार को आगरा में अंतिम दिवस था, इसके बाद सभी अपने देश को रवाना हो गए।
बुधवार की धर्म सभा में प्रवचन में समय से आने वालों को पुरस्कृत किया गया। प्रवचन में नरेश चप्लावत, राजेश सकलेचा, संजय सुराना, विवेक कुमार जैन, नरेंद्र सिंह जैन, अतिन जैन, राजीव चप्लावत, नरेश बरार, सचिन जैन आदि भक्तजन उपस्थित थे।