कंबाइंड मैरीटाइम फोर्स में भी भारत की एंट्री, हिंद महासागर में चीन की गुस्‍ताखियों पर लगेगा प्रभावी नियंत्रण

कंबाइंड मैरीटाइम फोर्स में भी भारत की एंट्री, हिंद महासागर में चीन की गुस्‍ताखियों पर लगेगा प्रभावी नियंत्रण

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रूस और भारत की गहरी दोस्ती से भले ही अमेरिका चिढ़ा हो, पर दिल्ली-वॉशिंगटन के रिश्ते भी नई ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं। भारत-अमेरिका 2+2 मीटिंग में दोनों देशों की सेनाओं के बीच सभी क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी है। उधर, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की हरकतों पर अंकुश लगाने के लिए भारत ने बड़ा फैसला किया है। बहरीन में स्थित अमेरिका की अगुआई वाले ‘महागुट’ में भारत भी शामिल हो गया है। जी हां, बहुद्देशीय समुद्री साझेदारी के तहत भारत ने कंबाइंड मैरीटाइम फोर्स (Combined Maritime Force) में एंट्री की है। अरब सागर के क्षेत्र के भीतर और बाहर समुद्री सुरक्षा और पाइरेसी रोकने के लिए यह वैश्विक फोर्स काम करती है। ऐसे समय में जब अमेरिका हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को काउंटर करने के लिए भारत की भूमिका को सबसे ज्यादा महत्व दे रहा है, 34 देशों के महागठबंधन में भारत के शामिल होने के क्या मायने हैं? और हिंद महासागर इतना अहम क्यों है कि चीन यहां अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। आइए समझते हैं।
पाकिस्तान, सऊदी भी इसके सदस्य
2+2 मीटिंग में अमेरिका ने भारत की नौसेना के साथ समुद्री सहयोग को आगे और बढ़ाने पर भी बात की है। अमेरिका ने हिंद महासागर में बहुपक्षीय सहयोग का विस्तार करने के लिए एक सहयोगी भागीदार के रूप में संयुक्त समुद्री कार्यबल (CMF) में शामिल होने के भारत के निर्णय का स्वागत किया है। इस फोर्स का मुख्यालय बहरीन में है। इसके 34 सदस्य देशों में इराक, इटली, जॉर्डन, मलेशिया, कुवैत, कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, सिंगापुर, स्पेन, UAE, तुर्की, यूके, अमेरिका भी शामिल हैं। इसका नेतृत्व अमेरिकी नेवी के वाइस एडमिरल अधिकारी करते हैं और यूके रॉयल नेवी कमोडोर सीएमएफ का डेप्युटी कमांडर होता है। हेडक्वॉर्टर में दूसरी अहम भूमिकाओं में सदस्य देशों के अधिकारी होते हैं।
कैसे काम करता है CMF
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में समुद्री मार्ग सबसे महत्वपूर्ण होता है। सीएमएफ के सदस्य देश अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत समुद्री सुरक्षा में सुधार, मुक्त व्यापार और अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए एक साथ आए हैं। CMF अपनी इच्छा से साथ आए देशों का समूह है। असेट्स के योगदान में हर देश की भागीदारी उस समय उन असेट्स की उपलब्धता और संबंधित देश की क्षमता के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है। सीएमएफ के सदस्य देश किसी राजनीतिक या सैन्य आदेश द्वारा बाध्य नहीं होते हैं। यह एक लचीला संगठन है। सदस्यों का योगदान बहरीन स्थित सीएमएफ मुख्यालय में एक लाइजन अधिकारी से लेकर युद्धपोतों या समुद्री टोही विमानों की तैनाती तक अलग-अलग हो सकता है। सीएमएफ अतिरिक्त सहायता के सिलसिले में उन युद्धपोतों को भी बुला सकता है जिन्हें सीएमएफ के लिए असाइन नहीं किया गया है। यह किसी युद्धपोत को राष्ट्रीय मिशन के साथ-साथ सीएमएफ को सहायता पहुंचाने की अनुमति देता है।
भारत के लिए अहमियत
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि भारत और अमेरिका दोनों हिंद -प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र को लेकर एक मुक्त, खुली, समावेशी और नियम आधारित समान सोच रखते हैं। हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए हमारी साझेदारी महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत बहरीन स्थित बहुपक्षीय संयुक्त समुद्री बल (सीएमएफ) में एक सहयोगी भागीदार के रूप में शामिल हुआ है। इससे पश्चिमी हिंद महासागर में क्षेत्रीय सुरक्षा में सहयोग मजबूत होगा।
जमीनी सीमा पर भारत और चीन के बीच तनातनी किसी से छिपी नहीं है। पूर्वी लद्दाख में दो साल पहले से जारी तनाव आज भी बरकरार है। LAC के साथ-साथ चीन हिंद महासागर में भी अपनी दखल बढ़ा रहा है। समुद्री इलाके में चीन ने अपने आर्थिक और सामरिक हितों को बढ़ाया है। चीन ने पैंतरेबाजी करते हुए कर्ज के जाल में श्रीलंका को कंगाल बना दिया है। वह हंबनटोटा पोर्ट और एक बड़े भूभाग पर बन रहे विशेष आर्थिक क्षेत्र को 99 साल की लीज पर ले लिया है। श्रीलंका और आसपास के क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ी है, ऐसे में भारत के दक्षिणी छोर के लिए चीनी युद्धपोत और पनडुब्बियों से खतरा पैदा हो सकता है।
हिंद महासागर पर चीन कितनी तेजी से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव जैसे भारत के पड़ोसी देशों में उसने बेस बना लिए हैं। कहने को वह व्यापारिक कारण बताता है लेकिन इसे सेना के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 60 से ज्यादा देशों में चीन के बंदरगाह हैं।
इस खतरे को समझते हुए अमेरिका और भारत ने मिलकर क्वाड (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का संगठन) को मजबूत करना शुरू कर दिया है। चीन इस पर नाराजगी जताते हुए चेतावनी भी दे चुका है। एक समय अमेरिका पाकिस्तान के साथ हुआ करता था लेकिन आज एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कमजोर करने के लिए वह भारत के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है।
हिंद महासागर क्षेत्र इतना अहम क्यों
एक्सपर्ट कहते हैं कि अपने ऊर्जा संबंधी हितों, प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बढ़ाने, कारोबारी हितों को बढ़ाने के साथ हिंद महासागर में चीनियों की संख्या बढ़ने से साफ है कि वह इस समुद्री क्षेत्र में अपनी उपस्थिति यानी चीनी नौसेना का प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इतिहास को पलट कर देखें तो एक व्यापारिक देश के तौर पर चीन समुद्री व्यापारिक मार्गों पर काफी निर्भर रहा है। हाल के समय में सभी देशों की निर्भरता समुद्री मार्गों पर बढ़ी है। चीन का जहाजी बेड़ा दुनिया के कुल जहाजी बेड़े का 15 प्रतिशत यानी सबसे बड़ा है। चीन ने नई सदी की शुरुआत में ही हिंद महासागर की उपयोगिता को भांप लिया था। माना जा रहा है कि 2050 तक चीन की ऊर्जा यानी तेल और गैस की खपत दोगुनी हो जाएगी। चीन को इतनी बड़ी जरूरत आयात के जरिए ही पूरी करनी होगी। आज के समय में चीन का करीब 80 प्रतिशत तक ऊर्जा आयात समुद्री मार्ग के जरिए ही होता है। CPEC के विकास के साथ ही चीन समुद्री सिल्क रूट पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से होकर गुजरता है। इसका रूट पश्चिम के खाड़ी देशों से हिंद महासागर क्षेत्र होते हुए चीन तक जाता है।
बहरीन में भारत की मौजूदगी महत्वपूर्ण है क्योंकि चीन पहले से उस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। चीन ने अफ्रीका के पूर्वी तट पर बंदरगाह विकसित करने में भारी भरकम निवेश किया है। उसने पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में सैनिक अड्डा बना लिया है। चीन, म्यांमार में गहरे समुद्र वाला बंदरगाह विकसित कर रहा है। पाकिस्तान के ग्वादर में भी पोर्ट बन रहा है। श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट का निर्माण चीन कर रहा है। बांग्लादेश का चटगांव बंदरगाह चीन संचालित कर रहा है। मालदीव, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे हिंद महासागर के द्वीपीय देशों में चीन का निवेश बढ़ा है।
इधर, हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को चीन के कुल निर्यात का 7-8 प्रतिशत जाता है। हिंद महासागर से होकर गुजरने वाले समुद्री रास्तों में कई ऐसे हैं जो संकरे हैं। इन इलाकों में संभावित खतरे से निपटने के लिए चीन की नौसेना की तैनाती बढ़ सकती है। वह नई रणनीति के तहत आगे काम कर रहा है। चीन के जहाज और पनडुब्बी अक्सर हिंद महासागर में देखे जाते हैं। आने वाले वर्षों में चीन की सेना इस क्षेत्र में अपने व्यापारिक हितों की बात कहते हुए मौजूदगी बढ़ा सकती है और नए तरह का खतरा पैदा हो सकता है। इस लिहाज से बहरीन में भारत की मौजूदगी अहम है। अब कह सकते हैं कि चीन की पनडुब्बियों ने हिंद महासागर में कोई हरकत करने की कोशिश की तो करारा जवाब मिलेगा। अमेरिका पहले ही कह चुका है कि चीन के दुस्साहस पर वह भारत के साथ खड़ा रहेगा।
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh