1 जनवरी, 1670 को क्रूर मुगल बादशाह औरंगजेब ने अंग-अंग कटवाकर वीर गोकुला जाट को आगरा की पुरानी कोतवाली के सामने इसलिए शहीद कर दिया कि इस्लाम धर्म स्वीकार नही्ं किया। वीर गोकुल सिंह के चाचा उदय सिंह की खाल खिंचवा ली। 7000 किसान सैनिकों के साथ क्रूरता की। जिसने पाखाना साफ करने से मना कर दिया, उसकी हत्या कर दी गई। ऐसे वीर गोकुला जाट को श्रद्धांजलि तभी सार्थक होगी जब उनके अमर बलिदान के बारे में वर्तमान और भावी पीढ़ी को जानकारी हो सके। इसी निमित्त हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट पुस्तक की रचना उपन्यास शैली में की गई है। इस पुस्तक को आप आज ही ऑनलाइन इस लिंक पर क्लिक करके मँगा सकते हैं।
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‘हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट’ पर शोधपरक पुस्तक, देखें 9 वीडियो
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डॉ. भानु प्रताप सिंह ‘चपौटा’
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प्रबंधन विषय में शोध करने वाले देश में प्रथम
उत्तर प्रदेश सरकार के क्षेत्रीय अभिलेखागार में पुस्तकें सूचीबद्ध
हिन्दी में कार्य के लिए भारत सरकार की संस्था द सर्वे ऑफ इंडिया ने देश में 9वां स्थान दिया
पुस्तक की भूमिका
भारत के इतिहास में हमें अधिकांशतः मुगल काल के बारे में पढ़ाया जाता है। पाठ्य पुस्तकें बाबर, अकबर, शाहजहां और औरंगजेब की शान से भरी हुई हैं। अकबर को महान के रूप में प्रख्यापित किया गया है। अकबर ने जो हिन्दुओं के उत्पीड़न वाले काम किए हैं, उनके बारे में नहीं पढ़ाया जाता है। इसी तरह से आततायी, क्रूर, कट्टर और हिन्दुओं को शत्रु मानने वाले औरंगजेब के बारे में ऐसी-ऐसी बातें गढ़ी गई हैं कि आश्चर्य होता है। जैसे कि औरंगजेब अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुरान की नकल करता था और टोपियां सीता था। औरंगजेब को तो ‘जिन्दा पीर’ तक बताया गया है।
औरंगजेब ने मंदिरों को ध्वस्त किया। काशी विश्वनाथ मंदिर और केशवराय मंदिर मथुरा ध्वस्त करके मस्जिद बनाई। औरंगजेब ने सत्ता प्राप्ति के लिए हर तरह की क्रूरता की। अपने भाई मुरादबख्श, दारा शिकोह और शाह शुजा को मरवा दिया। इतना ही नहीं, अपने अब्बू बादशाह शाहजहां को आगरा किले के मुसम्मन बुर्ज में सन 1658 से 1666 तक कैद रखा। यहीं उसकी मृत्यु हुई। उसने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। हिन्दुओं को जबरिया मुस्लिम बनाया। सिक्कों पर कलमा खुदवाया। इस तरह के घटनाक्रमों के बारे में बहुत मामूली जानकारी दी गई है।
इसी कट्टर मुस्लिम बादशाह औरंगजेब ने वीर गोकुल सिंह यानी गोकुला जाट की हत्या अंग-अंग कटवाकर की। इसके तत्काल बाद केशवराय मंदिर (श्रीकृष्ण जन्मस्थान, मथुरा) को तुड़वाकर मस्जिद खड़ी कर दी, जिसे ईदगाह कहा जाता है। यह घटना एक जनवरी, सन 1670 को आगरा में पुरानी कोतवाली के चबूतरे पर हुई। औरगंजेब केशवराय मंदिर को तब तक नहीं तुड़वा पाता जब तक कि वीर गोकुल सिंह जाट जीवित रहते। इसलिए पहले श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर के रक्षक वीर गोकुल सिंह की हत्या क्रूरता से कराई। गोकुल सिंह के चाचा उदय सिंह की खाल खिंचवा ली। वह भी इसलिए कि गोकुल सिंह और उदय सिंह ने हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया था। अगर वह मुस्लिम बन जाते तो जीवित रहते और जमींदारी भी वापस मिल जाती। वीर गोकुल सिंह ने मुगल शासन के खिलाफ किसान क्रांति का अलख जगाया। इसका भी कारण था। मुगल सिपाही लगान वसूली के नाम पर अत्याचार कर रहे थे। हिन्दुओं की बहन बेटियों के साथ खुलेआम दुष्कर्म कर रहे थे। लगान न देने पर हिन्दुओं के पशुओं को खोल ले जाते, बहन-बेटियों को उठा ले जाते। हिन्दुओं के लिए पूजनीय गाय का मांस खाते। हिन्दुओं को धर्मपरिवर्तन के लिए मजबूर करते। वीर गोकुल सिंह के बलिदान का बदला जाट वीरों ने ताजमहल लूटकर, अकबर का मकबरा (सिकंदरा) में भूसा भरवा कर और अकबर की कब्र खोदकर हड्डियों को जलाकर लिया। इसके निशान आज भी मौजूद हैं।
यह पुस्तक ऐसे ही वीर गोकुल सिंह के बलिदान की महागाथा है। ऐसा वीर गोकुल सिंह जिसके साथ इतिहासकारों ने अन्याय किया। गोकुल सिंह के लिए एक पंक्ति तक नहीं लिखी। यह काम इसलिए किया कि वीर गोकुल सिंह ने औरगंजेब के छक्के छुड़ा दिए थे। औरंगजेब की झूठी शान बनाए रखने के लिए वीर गोकुल सिंह का नाम किताबों से तो गायब कर दिया लेकिन आम जनता के मस्तिष्क पटल से गायब नहीं कर सके। किंवदंतियों में गोकुल सिंह आज भी जीवित हैं और सदा रहेंगे। वीर गोकुल सिंह जैसा दिलेर संसार में नहीं हुआ है। अगर गोकुल सिंह सिख धर्म में जन्मे होते तो उनकी स्वर्ण प्रतिमाएं लग गई होतीं।
इस पुस्तक में कई रहस्योद्घाटन भी किए गए हैं। वीर गोकुल सिंह का आगरा में वास्तविक बलिदान स्थल खोजा गया है। गोकुल सिंह के वंशज आज भी गांव में रहते हैं। गोकुल सिंह की बहन भँवरी कौर के बलिदान का रोमांचक वर्णन है। तिलपत युद्ध का रोमांचक खाका खींचा गया है।
वीर गोकुला जाट की यह अमर गाथा योगयोगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव भाद्रपद अष्टमी यानी जन्माष्टमी (30-8-2021) को लिखनी शुरू की और महाराणा प्रताप की जयंती ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया ( 2-6-2022) को पूर्ण हुई।
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