आज के ही दिन उर्दू शायर दाग़ देहलवी ने छोड़ दी थी दुनिया

आज के ही दिन उर्दू शायर दाग़ देहलवी ने छोड़ दी थी दुनिया

साहित्य


25 May 1831 को दिल्‍ली में जन्‍मे दाग़ देहलवी का 17 मार्च 1905 को हैदराबाद में इंतकाल हुआ था। नवाब मिर्जा खाँ ‘दाग़’ , उर्दू के प्रसिद्ध कवि थे। इनके पिता शम्सुद्दीन खाँ नवाब लोहारू के भाई थे। जब दाग़ पाँच-छह वर्ष के थे तभी इनके पिता मर गए। इनकी माता ने बहादुर शाह “ज़फर” के पुत्र मिर्जा फखरू से विवाह कर लिया, तब यह भी दिल्ली में लाल किले में रहने लगे। यहाँ दाग़ को हर प्रकार की अच्छी शिक्षा मिली। यहाँ ये कविता करने लगे और जौक़ को गुरु बनाया। सन् 1856 में मिर्जा फखरू की भी मृत्यु हो गई।
सन् 1890 ई. में दाग़ हैदराबाद गए और निज़ाम के कविता गुरु नियत हो गए। इन्हें यहाँ धन तथा सम्मान दोनों मिला और यहीं सन् 1905 ई. में फालिज से इनकी मृत्यु हुई।
अपने भीतर के शायर के लिए उन्होंने दाग नाम चुना था और देहलवी यानी दिल्लीवाला को उन्होंने अपना तखल्लुस बनाया। पर दाग़ नाम शायद उन्हें रास न आया। उनका जीवन भी उनके नाम की तरह ही दर्द, जख्म और बेदखली की बानगी से भरा रहा। साल 1856 में मिर्जा फखरू की मौत होने के दूसरे ही साल बलवा शुरू हो गया. मजबूरन दाग ने दिल्ली छोड़ दिया, वह रामपुर चले गए लेकिन मन से कभी दिल्ली को भूल नहीं पाए। स्थान परिवर्तन का यह गम उन्हें जिंदगी भर सालता रहा।
दाग़ देहलवी 1857 की तबाहियों से गुजरे थे। दिल्ली के गली-मोहल्लों में लाशों का नज़ारा उन्होंने देखा था। उनकी शायरी में दर्द और नयेपन के मिश्रण का ऐसा घोल है, जिसे पढ़ने के बाद लंबे समय तक उसमें खोए रहने का मन करता है। उनकी शायरी में दिल्ली की तहजीब नजर आती है। छोटी उम्र में पिता को खोने का दर्द, मां की दूसरी शादी, जिस दिल्ली से उन्हें बेहद लगाव, उसी दिल्ली से उनकी रूखसत, और जिस प्यार को उन्होंने गले लगाना चाहा उस प्यार से भी रुसवाई… दाग की ज़िंदगी और उनकी शायरी दोनों ही ऐसे फलसफों से भरी है।
आज दाग़ देहलवी को दुनिया से रुखसत हुए भले ही करीब 25 साल गुजर गए हों पर उनकी शायरी आज भी गुनगुनाई जाती है-
ब’अद मुद्दत के ये ऐ ‘दाग़’ समझ में आया।
वही दाना है कहा जिस ने न माना दिल का।।
-Legend News

Dr. Bhanu Pratap Singh