Dadaji maharaj agra

दादाजी महाराज से सुनिए राधास्वामी मत में अभ्यास यानी ध्यान का रहस्य, भाग-2

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय )  Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 24 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज भवन परिसर, सेन्ट एंसल्स स्कूल के पास, सुभाषनगर, भीलवाड़ा (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- जरा दुनियावी हरकतों से हटकर कम से कम दो घंटे अपने परमार्थी काम में लगाइए।

वह तो गुरु रूप में आए हैं, और अपने चरन तुम्हें देते हैं लेकिन तुम चरनों पर मत्था टेकने के बाद भी असली तौर पर अपने अंतर में सुरत यानी चित्त को चरनों मे नहीं लगाते। मत्था टेकने कहीं भी जाते हो, वहां पर मत्था टेकते हो, बस मत्था टेका और चल दिए। हमारे यहां ऐसा रस्मी परमार्थ नहीं है। आपको हर काम में चित्त को चरनों में लगाने का अभ्यास करना है।

मेरा कहना है कि जरा दुनियावी हरकतों से हटकर कम से कम दो घंटे अपने परमार्थी काम में लगाइए। बस खाना खाने के दो या तीन घंटे बाद ही इसको करिए। तब धीरे-धीरे राधास्वामी मत के सतसंगी को दौज के एक चन्द्रमा को तोड़ने में कुछ देर नहीं लगती। यह वैसे ही जैसे धनुष टूटता है और समझ लो कि धनुष टूटा हुआ है। अब सवाल है मूल चन्द्रमा के दर्शन का, तो चन्द्रमा तो तुम्हारे सामने है- देखो।

याद रखो कि हर सतसंगी की गुरु पूर्णिमा रोज होती है। हर सतसंगी के अंतर में वह चन्द्रमा रोज खिलता है, रोज उसकी किरणें आती हैं और उसी के प्रताप से जितना दुख या संताप है, वह आप से आप खत्म होगा यानी सुरत मन से न्यारी होगी, चरनों में लगेगी और फिर वास्तव में एक दिन उस मूल चन्द्रमा के दर्शन भी करोगे और फिर सतपुरुष राधास्वामी रूपी सूरज के अलौकिक प्रकाश में हमेशा के लिए समा जाओगे। यह काम करना है और इसे दुरुस्ती से तुरंत कर डालो।(क्रमशः)

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग, आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)