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केशव शाखा पर गुरु पूजनः डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना क्यों की, शाखा का उद्देश्य और गुरु पूजन क्या है? देखें वीडियो

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डॉ. भानु प्रताप सिंह

Agra, Uttar Pradesh, India. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) पश्चिम महानगर के शास्त्री नगर की केशव शाखा (शास्त्रीपुरम ए ब्लॉक, टंकी वाला पार्क) का गुरु पूजन कार्यक्रम अत्यंत श्रद्धा और समर्पण के साथ हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में प्रांत के योग प्रमुख भगवान सिंह ने बताया कि डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना क्यों की, गुरु पूजन क्या है और शाखा लगाने का असली उद्देश्य क्या है? उन्होंने स्वयं के कई उदाहरण देकर सरल शब्दों में संघ का महत्व समझाया। हम उनके भाषण के मुख्य अंश यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।

 

अकसर यह प्रश्न पूछा जाता है कि संघ की स्थापना किस कारण से की गई। यह जानना प्रत्येक के लिए आवश्यक है। 1920 में असहयोग आंदोलन के दौरान डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार आगे बढ़कर हिस्सा ले रहे थे। वे जेल में गए। उन्होंने जेल में देखा कि जितने भी सेनानी जेल में आए थे वे अलग-अलग समूह बनाकर बातचीत कर रहे थे। एक जाति, क्षेत्र, वर्ग के आधार पर बैठकें करते थे। कोई दूसरा जाता तो चुप हो जाते थे। यह देखर डॉ. हेडगेवर के दिमाग में आया कि जिस कारण से देश गुलाम हुआ, वह कारण आज भी मौजूद है। देश आजाद भी हो गया तो कारण बने रहेंगे। देश गुलाम इसलिए हुआ कि हिन्दू एक नहीं था, आपस में लड़ रहा था और आज भी वही स्थिति है। एक लक्ष्य देश की आजादी को लेकर यहां आए हैं लेकिन यहां अलग-अलग ग्रुप बनाकर क्यों बैठे हैं? यही स्थिति बनी रही तो देश फिर गुलाम हो जाएगा। इसलिए ऐसा संगठन होना चाहिए जो लोगों में यह भावना पैदा करे कि सारा हिन्दू समाज एक हो।

जेल से लौटने के बाद अपने साथियों, सेनानियां, बुद्धिजीवियों से चर्चा प्रारंभ की। देश फिर गुलाम न हो, इस पर मंथन शुरू किया। ऐसा संठन बने जो हिन्दुओं के एक कर सके, समरसता की भावना पैदा कर सके। इस लक्ष्य को लेकर छोटे बच्चों के साथ 1925 में नागपुर में मोहित का बाड़े में संघ की स्थापना की। कुछ लोगों ने बड़ा मजाक बनाया। लोग पागल तक कहने लगे। डॉ. हेडगेवार ने इसकी परवाह नहीं की।

 

नागपुर में शाखाएं फैल गईं तो डॉ. हेडगेवार ने सोचा कि दूसरे शहरों में भी स्थापित होनी चाहिए। इसके लिए स्वयंसेवकों को बाहर भेजना होगा, उन्हें मार्ग व्यय देना होगा। इस विचार से उन्होंने स्वयंसेवकों की बैठक की। कहा कि आपको बाहर भी जाना है और गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजन का कार्यक्रम करेंगे। स्वयंसेवकों के दिमाग में एक ही बात आई कि डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना की है, उनका पूजन करने का अवसर मिलेगा। एक स्वयंसेवक ने यह बात खड़े होकर कही तो डॉ. हेडगेवार ने कहा कि मैं गुरु नहीं हूँ। हमारा गुरु तो भगवा ध्वज है। एक स्वयंसेवक ने कहा कि यह निर्जीव वस्तु हमारा गुरु कैसे हो सकता है? डॉ. हेडगेवार ने कहा- यह चैतन्य है, हमारे धर्म का प्रतीक है, त्याग का प्रतीक है, बलिदान का प्रतीक है, हमारे साधु-संन्यासी इसी भगवा को पहनते हैं, सभी हिन्दुओं में इसके प्रति श्रद्धा है। यह हमारी प्रेरणा का स्रोत है। इससे प्रेरणा लेकर कितने ही लोगों ने बलिदान दिया है। पहले इसे गुरुदक्षिणा कहते थे, अब इसका नाम गुरु पूजन है।

 

गुरु पूजन है क्या? यह दान नहीं है। दान देने वाला व्यक्ति अपना नाम चाहता है। यह चंदा भी नहीं है क्योंकि चंदा देने वाला अपना काम चाहता है। यह पैसा इकट्ठा करने का कार्यक्रम नहीं है। गुरु पूजन समर्पण का भाव है। डॉ. हेडगेवार ने प्रत्येक व्यक्ति में समर्पण का भाव पैदा करने के लिए गुरु पूजा की पद्धति विकसित की। मन, तन, बुद्धि, समय का समर्पण होना चाहिए। बेलदारी करने वाले स्वयंसेवक भी समर्पण के भाव के कारण एक रुपया रोज एकत्रित करते हैं।

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भगवान सिंह ने एक उदाहरण देकर बताया कि शाखा में किस तरह से व्यक्ति निर्माण होता है- हमने 1992 में गोविन्द नगर (आगरा) में पहली योग शाखा शुरू की। शाखा में दो भाई आते थे। उनके पिता शराब पीते थे। घर में विरोध होता तो पिटाई करते थे। पत्नी और बच्चों को भी पीटते। मेरे पर यह समस्या आई तो मैंने योग शिविर लगाने के पर्चे क्षेत्र में बँटवाए। इसमें उनके पिताजी भी आए। एक सप्ताह बाद कहा कि यही योग शाखा में सिखाए जाते हैं, वहां आइए। धीरे-धीरे उनकी शराब की आदत अपने आप छूट गई। हमने उनसे शराब की आदत के संबंध में कोई चर्चा नहीं की। आज वह संघ के कार्यकर्ता हैं। व्यक्ति निर्माण का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता है। संघ का कार्य ईश्वरीय कार्य है। ईश्वरीय कार्य जो करेगा, उसके अंदर ईश्वर ऐसी प्रेरणा देगा कि दुर्गुण रह ही नहीं सकता है। अगर शाखा बस्ती में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आ रहा है तो उसका कोई लाभ नहीं है।

 

महानगर संघचालक डॉ. सतीश कुमार ने अध्यक्षता की। प्रारंभ में सेवा भारती के विभाग अध्यक्ष वीरेन्द्र वार्ष्णय, सेवा भारती के महानगर कोषाध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह, महानगर के योग प्रमुख राजकिशोर सिंह परमार, शास्त्री नगर के शारीरिक प्रमुख रूपेश का परिचय कराया गया। संचालन नवीन अग्रवाल ने किया। विश्वजीत सिंह ने व्यवस्था संभाली। डॉ. भानु प्रताप सिंह, डीसी शर्मा, अभय पाल सिंह, डॉ. शीलेन्द्र सिंह आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh