pramod gautam

22 अप्रैल 2023 से लग रहा है प्रलयंकारी गुरु-चाण्डाल योग, विश्व में होगी उथल-पुथल, तीन राशि के जातक बरतें सावधानी

Horoscope

वर्ष 2023 में लगभग 6 माह के लिए 22 अप्रैल 2023 से ब्रह्माण्ड में गोचरीय परवर्तित चाल में ब्रह्माण्ड का अति शुभ ग्रह देवगुरू बृहस्पति 01 वर्ष बाद वर्तमान की अपनी स्वराशि मीन से गोचरीय परिवर्तन के दौरान मेष राशि पर स्थित हो जायेंगे, जो कि मेष राशि में वर्तमान में स्थित चाण्डाल छाया ग्रह राहु के साथ लगभग 6 माह तक एक साथ युति में रहेंगे। इसे वैदिक हिन्दू ज्योतिष की भाषा में गुरु-चाण्डाल योग कहा जाता है। शास्त्रों में इसे अशुभकारी माना गया है। वर्ष 2019 में भी 05 नवंबर से गुरु-चाण्डाल योग आरम्भ हुआ था जो कि लगभग 1 वर्ष तक रहा था, जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण विश्व में कोरोना जैसी विनाशकारी महामारी फैल गई थी। लाखों लोग कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण काल के गाल में चले गए थे।

 

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने गुरु-चाण्डाल योग के ब्रह्माण्ड में घटित होने के सन्दर्भ में विस्तार से जानकारी दी। वैदिक हिन्दू ज्योतिष में ब्रह्माण्ड के सबसे बड़े शुभ ग्रह गुरु को देवगुरू बृहस्पति भी कहा जाता है। ये शुभ ग्रह प्रत्येक व्यक्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण एवम सभी प्रकार के शुभ फलों को प्रदान करने वाला माना जाता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी भी राष्ट्र एवं व्यक्ति के कार्य की सफलता व असफलता के पीछे गुरु ग्रह का विशेष योगदान होता है। ब्रह्माण्ड में जब भी देवगुरू बृहस्पति ग्रह और चाण्डाल छाया ग्रह राहु की एक साथ युति होती है, उसे वैदिक हिन्दू फलित ज्योतिष में गुरु-चाण्डाल योग का अशुभकारी योग कहा जाता है। इस तरह का अशुभकारी योग जब कभी भी ब्रह्माण्ड में घटित होता है तब सम्पूर्ण विश्व में अप्रत्याशित रूप से महा-उथलपुथल होने की संभावना प्रबल हो जाती है। उथलपुथल होने का कारण कोई भी हो सकता है। वो महामारी, प्राकृतिक प्रकोप महाविनाशकारी युद्ध के रूप में हो सकती है। कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि इस प्रकार का अशुभ योग का किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में जन्म के समय निर्माण होने से ऐसे जातकों को कई प्रकार की असामान्य परेशानियों का सामना अपने व्यक्तिगत जीवन में करना पड़ता है। इसलिए ‘गुरु चांडाल योग’ के अशुभकारी प्रभाव से ज्यादातर वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्रों के जानकारों के साथ-साथ सभी व्यक्तियों में भी जो गुरु-चाण्डाल योग को थोड़ा बहुत समझते हैं उनमें भी एक अज्ञात भय होता है।

 

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि 22 अप्रैल 2023 से ब्रह्माण्ड के अति शुभ ग्रह देवगुरू ब्रहस्पति अपनी एक वर्षीय गोचरीय परवर्तित चाल में वर्तमान की अपनी स्वराशि मीन से मेष राशि पर चाण्डाल छाया ग्रह राहु से एकसाथ युति बनाकर स्थित हो जायेंगे, कुल मिलाकर यह कह सकते हैं कि इन दोनों ग्रहों की मेष राशि पर एकसाथ युति 30 अक्टूबर 2023 तक रहेगी जो कि गुरु-चाण्डाल योग नामक प्रलयंकारी अशुभ योग का निर्माण करेगी, सितम्बर 2023 तक गुरु-चाण्डाल योग का प्रभाव पूरे विश्व के लिए ज्यादा अशुभकारी साबित होने की प्रबल संभावना रहेगी। क्योंकि ये अशुभ योग सदबुद्धि के ग्रह ब्रहस्पति और चाण्डाल ग्रह राहु की एकसाथ युति के कारण बनता है, इसके परिणामस्वरूप सभी 12 राशियों को किसी न किसी मामले में नुकसानदेह रहने की प्रबल संभावना है, विशेषकर कन्या, वृष एवम वृशिक राशियों के व्यक्तियों को 22 अप्रैल 2023 से लेकर 30 अक्टूबर 2023 तक बनने वाले गुरु-चाण्डाल योग की आ अवधि के दौरान विशेष सावधानी बरतने की प्रबल आवश्यकता है विशेषकर स्वास्थ्य और किसी भी नए महत्वपूर्ण निर्णयों के मामलों को 30 अक्टूबर 2023 तक टालना ही बेहतर रहेगा। वर्ष 2023 में अप्रैल माह से बनने वाले गुरु-चाण्डाल योग की अवधि में श्री हरि विष्णु के मंत्र का कम से कम आधा घंटे तक प्रतिदिन सभी राशि के व्यक्ति अवश्य जाप करें जिससे चाण्डाल राहु नामक छाया ग्रह के विषैले प्रभावों से पूर्ण रूप से सभी व्यक्तियों का बचाव हो सके।

 

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने गुरु-चाण्डाल योग के रहस्मयी तथ्यों के सन्दर्भ में गहराई से विश्लेषण करते हुए कहा कि प्रचलित भाषा में इस योग में बनने वाले चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। वैसे इसका उपयोग विजातीय को भी किया गया है अर्थात म्लेच्छ यानि आर्य जाति से अन्य विदेशी जाति, जिनका सिद्धांत आर्य सिद्धान्तों के विपरीत हो। इसलिए इस गुरु-चाण्डाल योग को आध्यात्मिक परिपेक्ष्य में चाण्डाल और ब्राह्मण का योग कहा गया है, जिससे गुरू को अशुद्धि प्राप्त होती है, लेकिन यहां प्रचलन के अनुसार ब्राह्मण और चांडाल की संगत कहना इस योग का अपमान है। मान्यता से ज्यादातर व्यक्ति गुरु-चाण्डाल योग को संगति के उदाहरण से समझते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच चाण्डाल छाया ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुणों को खो देते हैं। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही केसर की सुगंध पर हावी हो जाती है, उसी प्रकार चाण्डाल पापी छाया ग्रह राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता ऊर्जा के तीव्र प्रभाव में अत्यंत शुभ ग्रह गुरु की सौम्य एवम सकारात्मकता वाली ऊर्जा को भी निष्क्रीय कर देता है। सामान्यत: कुल मिलाकर यह गुरु-चाण्डाल योग अच्छा नहीं माना जाता। ये योग जन्मकुंडली के जिस भाव में भी फलीभूत होता है, उस भाव के शुभ फलों की पूर्ण रूप से कमी करता है। यदि किसी व्यक्ति की मूल जन्मकुंडली में गुरु ग्रह प्रथम भाव लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चाण्डाल योग बनाता हो, तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत ही ज्यादा असामान्य संघर्ष करना पड़ता है। जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान भी उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की प्रबल आशंका बनी रहती है।

 

एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने गुरु-चाण्डाल योग के सन्दर्भ में अपने व्यक्तिगत अनुभवों में पाया कि जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में यदि चाण्डाल छाया ग्रह राहु जब-जब अंश बल में बलशाली हुआ है तब शिष्य, गुरू के कार्य को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं या गुरू के ही सिद्धांतों का ही खण्डन करते हैं और बहुत से मामलों में शिष्यों की उपस्थिति में ही गुरु का अपमान होता है और शिष्य चुप रहते हैं। यहां शिष्य ही सब कुछ हो जाना चाहते हैं, और कालान्तर में गुरु का नाम भी नहीं लेना चाहते। वैसे भी गुरु-चाण्डाल योग में राहु और बृहस्पति का सम्बन्ध होने से शिष्य का गुरू के प्रति छल और द्रोह ज्यादातर देखने में आता है। गुरु-शिष्य में विवाद बहुत मिलते हैं। गुरु की शोध सामग्री की चोरी या उसके गुप्त रूप से प्रयोग के उदाहरण भी ज्यादातर मिलते हैं, धोखा-प्रपंच इस तरह के योग की उपस्थिति होने पर खूब देखने को मिलेगा, परन्तु चाण्डाल छाया ग्रह राहु और गुरू ग्रह की एकसाथ युति में यदि गुरू ग्रह अंशबल में बलवान हुए तो गुरू अत्यधिक समर्थ सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बडे़ कार्य या शोध करवाने में भी कभी-कभी समर्थ हो जाते हैं। शिष्य भी यदि कोई ऐसा प्रयोग और अनुसंधान करते हैं, जिनके अन्तर्गत गुरु के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों में ही शोधन सम्भव हो जाए, तो वे इस सन्दर्भ में गुरु की आज्ञा लेते हैं या गुरु के आशीर्वाद से ऐसा करते हैं। यह इस योग की सर्वश्रेष्ठ स्थिति होती है और इस तरह की परिस्थितियों में एस्ट्रोलॉजर पं गौतम का मानना है कि ऐसी स्थिति में उसे गुरु-चाण्डाल योग नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि इसे “क्रांति योग” “अनुसंधान योग” का नाम दिया जा सकता है, लेकिन अधिकतर इस सीमा रेखा को पहचानना बहुत कठिन कार्य होता है, जब गुरू-चाण्डाल योग में राहु का प्रभाव कम हो जाता है और गुरू का प्रभाव बढ़ने लगता है। ये दोनों की डिग्री के अंतर से ही सम्भव है।

 

एस्ट्रोलॉजर पं प्रमोद गौतम ने बताया कि कुछ चुनिन्दा जन्मकुंडलियों में गुरु-चाण्डाल योग का एकदम उल्टा योग तब देखने को मिलता है, जब गुरु ग्रह के साथ मोक्षकारक छाया ग्रह केतु सप्तम भाव में स्थित हो और छाया ग्रह राहु प्रथम भाव में हो, इस तरह की स्थितियों में बृहस्पति ग्रह के प्रभावों को पराकाष्ठा तक पहुँचाने में मोक्षकारक छाया ग्रह केतु सर्वश्रेष्ठ साबित होता है। छाया ग्रह राहु के उलट मोक्षकारक केतु व्यक्ति में त्याग की भावनाओं को अग्रसर करते हैं, और बाद के जीवन में केतु ग्रह के सकारात्मक प्रभाव के कारण व्यक्ति में वृत्तियों का त्याग भी देखने को मिलता है। छाया ग्रह राहु के उलट मोक्षकारक छाया ग्रह केतु भोग-विलासिता से दूर बुद्धि विलास या मानसिक विलासिता यानि अंतर-रमण या सूक्ष्म शरीर से रमण करना जिसे हम आध्यात्मिक परिपेक्ष्य में रास भी कहते हैं, उसके पक्षधर हैं और इस कारण गुरु ग्रह को, मोक्षकारक छाया ग्रह केतु से युति के कारण अपने जीवन में श्रेष्ठ गुरू या श्रेष्ठ शिष्य पाने के अधिकार दिलाते हैं। इनको जीवन में श्रेय भी मिलता है और गुरू या शिष्य अपने सिद्धांत और पंथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान देते हैं। इस योग का कोई ज्योतिषीय नाम अभी तक नहीं है, परन्तु इसे ब्रह्म-विद्या योग कहें तो ज्यादा उत्तम है।

Dr. Bhanu Pratap Singh