veer gokula jat statue

‘हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट’ की प्रतिमा का अनावरण आज आगरा के महापौर नवीन जैन करेंगे

साहित्य

Agra, Uttar Pradesh, India. देश और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले वीर गोकुला जाट की प्रतिमा आगरा किले के पास शाहजहां गार्डन के द्वार पर स्थापित है। प्रतिमा का अनावरण एक अक्टूबर, 2022 को अपराह्न एक बजे किया जाएगा। आगरा के महापौर नवीन जैन ने प्रतिमा की स्थापना की है। वही प्रतिमा का अनावरण करेंगे। जाट समाज की मांग पर यह प्रतिमा बनवाई गई है। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ‘चपौटा’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट’ पुस्तक भी उपलब्ध रहेगी।

 

बता दें कि वीर गोकुल सिंह को वीर गोकुल जाट के नाम से जाना जाता है। वीर गोकुल सिंह ने 16वीं सदी में आतताई औरंगजेब की धर्मांधतापूर्ण नीति के खिलाफ सशस्त्र किसान क्रांति की। इतिहास की यह पहली किसान क्रांति है। धर्मनगरी मथुरा के मंदिर अगर सुरक्षित हैं, तो वह वीर गोकुला जाट के शौर्य का परिणाम है।

 

भारत के इतिहास में हमें अधिकांशतः मुगल काल के बारे में पढ़ाया जाता है। पाठ्य पुस्तकें बाबर, अकबर, शाहजहां और औरंगजेब की शान से भरी हुई हैं। आततायी, क्रूर, कट्टर और हिन्दुओं को शत्रु मानने वाले औरंगजेब के बारे में ऐसी-ऐसी बातें गढ़ी गई हैं कि आश्चर्य होता है। जैसे कि औरंगजेब अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुरान की नकल करता था और टोपियां सीता था। औरंगजेब को तो ‘जिन्दा पीर’ तक बताया गया है। औरंगजेब ने मंदिरों को ध्वस्त किया। काशी विश्वनाथ मंदिर और केशवराय मंदिर मथुरा ध्वस्त करके मस्जिद बनाई। औरंगजेब ने सत्ता प्राप्ति के लिए हर तरह की क्रूरता की। अपने भाई मुरादबख्श, दारा शिकोह और शाह शुजा को मरवा दिया। इतना ही नहीं, अपने अब्बू बादशाह शाहजहां को आगरा किले के मुसम्मन बुर्ज में सन 1658 से 1666 तक कैद रखा। यहीं उसकी मृत्यु हुई। उसने हिन्दुओं पर जजिया कर लगाया। हिन्दुओं को जबरिया मुस्लिम बनाया। सिक्कों पर कलमा खुदवाया। इस तरह के घटनाक्रमों के बारे में बहुत मामूली जानकारी दी गई है।

 

औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को केशवराय मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। हिन्दुओं के गुरुकल बंद करा दिए। हिन्दुओं पर जजिया लगा दिया। कर वसूली के लिए अतिशय अत्याचार होने लगे। महिलाओं की आबरू लूटी जाने लगी। जब तिलपत के जमींदार वीर गोकुल सिंह ने 20 हजार किसानों की सेना बनाई। सिहोरा गांव (मथुरा) में मथुरा के फौजदार अब्दुन्नवी का वध किया। सादाबाद छावनी को तहस-नहस कर दिया। पांच माह तक इस तरह के युद्ध होते रहे। इससे घबराए फौजदार शफ शिफन खां ने गोकुल सिंह को संधि प्रस्ताव भेजा कि क्षमा मांग ले। गोकुल सिंह ने इनकार कर दिया। इससे बौखलाया औरंगजेब भारी फौज के साथ 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से चलकर मथुरा आया। उसने दाऊ जी का मंदिर तोड़ने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। उसने चमत्कार को नमस्कार किया और पांच गांव दाऊ जी मंदिर के नाम कर दिए। 4 दिसम्बर, 1669 को मुगल फौज ने जाटों की तीन गढ़िया नष्ट कर दीं। हिन्दू महिलाओं ने अपनी आबरू बचाने के लिए जौहर किया। इस जौहर का इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं है।

 

दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में औरंगबेज की फौज और वीर गोकुल सिंह की सेना के मध्य युद्ध हुआ। तीन दिन तक युद्ध चला। 4000 मुगल सिपाही और 5000 किसान सैनिक मारे गए। तिलपत गढ़ी की कच्ची दीवारें तोप के गोलों के आगे ध्वस्त हो गईं। वीर गोकुला, उनके चाचा उदय सिंह और 7000 किसान सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया। आगरा किला में गोकुल सिंह के समक्ष शर्त रखी गई कि मुसलमान बन जाओ तो जान बख्श दी जाएगी। गोकुल सिंह के इनकार कर 1 जनवरी, 1670 को आगरा की पुरानी कोतवाली (सुभाष बाजार, आगरा) के सामने चबूतरे पर गोकुल सिंह की अंग-अंग काटकर हत्या कर दी गई। उदय सिंह की खाल खिंचवा ली गई। इसके तत्काल बाद मथुरा का केशवराय मंदिर ध्वस्त करके मस्जिद खड़ी कर दी गई। अगर वह मुस्लिम बन जाते तो जीवित रहते और जमींदारी भी वापस मिल जाती।

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गोकुल सिंह के बलिदान के बाद मथुरा के माथुर वैश्यों पर औरंगजेब ने कहर बरपाया। इसका कारण यह था कि देशभक्त माथुर वैश्य गोकुल सिंह को आर्थिक मदद देते थे। माथुर वैश्यों को मथुरा से पलायन करना पड़ा। यमुना के बीहड़ों में रहने लगे। 150 साल तक निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हुए। आगरा पर अंग्रेजों ने कब्जा किया तो माथुर वैश्य बीहड़ों से निकलकर गांवों और कस्बों में आए।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंह चपौटा ने वीर गोकुल सिंह की इस महागाथा को उपन्यास शैली में रेखांकित किया है। वीर गोकुल सिंह के साथ इतिहासकारों ने अन्याय किया। गोकुल सिंह के लिए एक पंक्ति तक नहीं लिखी। यह काम इसलिए किया कि वीर गोकुल सिंह ने औरगंजेब के छक्के छुड़ा दिए थे। औरंगजेब की झूठी शान बनाए रखने के लिए वीर गोकुल सिंह का नाम किताबों से तो गायब कर दिया लेकिन आम जनता के मस्तिष्क पटल से गायब नहीं कर सके। किंवदंतियों में गोकुल सिंह आज भी जीवित हैं और सदा रहेंगे। वीर गोकुल सिंह जैसा दिलेर संसार में नहीं हुआ है। अगर गोकुल सिंह सिख धर्म में जन्मे होते तो उनकी स्वर्ण प्रतिमाएं लग गई होतीं।

इस पुस्तक में कई रहस्योद्घाटन भी किए गए हैं। वीर गोकुल सिंह का आगरा में वास्तविक बलिदान स्थल खोजा गया है। गोकुल सिंह के वंशज आज भी गांव में रहते हैं। गोकुल सिंह की बहन भँवरी कौर के बलिदान का रोमांचक वर्णन है। तिलपत युद्ध का रोमांचक खाका खींचा गया है। यह पुस्तक आपके रोम-रोम को रोमांचित कर देगी। वीर गोकुल सिंह के बलिदान पर आप नतमस्तक हो जाएंगे। देश, समाज और हिन्दू धर्म की सेवा करनी है तो पुस्तक पढ़िए और अपने मित्रों को उपहार में दीजिए। यह पुस्तक श्री आनंद शर्मा और श्री प्रदीप जैन के सहयोग से प्रकाशित हो सकी है।

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Dr. Bhanu Pratap Singh