जन्‍मदिन: प्रसिद्ध साहित्यकार, विद्वान और शिक्षा शास्त्री अमरनाथ झा

जन्‍मदिन: प्रसिद्ध साहित्यकार, विद्वान और शिक्षा शास्त्री अमरनाथ झा

साहित्य


प्रसिद्ध साहित्यकार, विद्वान और शिक्षा शास्त्री अमरनाथ झा का आज जन्‍मदिन है। 25 फरवरी 1897 को बिहार के मधुबनी जिले में जन्‍मे अमरनाथ झा की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश ही रही। उनका निधन 02 सितंबर 1955 को हुआ था। वे हिन्दी के प्रबल समर्थकों में से एक थे। हिन्दी को सम्माननीय स्तर तक ले जाने और उसे राजभाषा बनाने के लिए अमरनाथ झा ने बहुमूल्य योगदान दिया था। उन्हें एक कुशल वक्ता के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कई पुस्तकों की रचना भी की। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 1954 में ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया था।
उनके पिता डॉ. गंगानाथ झा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान् थे। अमरनाथ झा की शिक्षा इलाहाबाद में हुई। एमए की परीक्षा में वे ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में सर्वप्रथम रहे थे। उनकी योग्यता देखकर एमए पास करने से पहले ही उन्हें ‘प्रांतीय शिक्षा विभाग’ में अध्यापक नियुक्त कर लिया गया था।
शिक्षा सम्बंधित प्रमुख तथ्य
अमरनाथ झा ने सन् 1903 से 1906 तक कर्नलगंज स्कूल में पढ़ाई की। सन् 1913 में स्कूल लिविंग परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण और अंग्रेज़ी, संस्कृत एवं हिंदी में विशेष योग्यता प्राप्त की। फिर 1913 से 1919 तक आप म्योर सेंटर कॉलेज प्रयाग में शिक्षा ग्रहण करते रहे। इन्हीं दिनों 1915 में इंटरमीडिएट में विश्वविद्यालय में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया। फिर 1917 में बीए की परीक्षा एवं 1919 में एमए की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। सन् 1917 में म्योर कॉलेज में 20 वर्ष की अवस्था में ही अंग्रेज़ी के प्रोफ़ेसर हुए। सन् 1929 में विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के प्रोफेसर हुए। 1921 में प्रयाग म्युनिसिपलिटी के सीनियर वाइस चेयरमैन हुए। उसी वर्ष पब्लिक लाइब्रेरी के मंत्री हुए। आप पोएट्री सोसाइटी, लंदन के उपसभापति रहे और रॉयल सोसाइटी ऑफ लिटरेचर के फेलो भी रहे। 1938 से 1947 तक प्रयाग विश्वविद्यालय के उपकुलपति थे। 1948 में अमरनाथ झा ‘पब्लिक सर्विस कमीशन’ के चेयरमैन हुए।
उच्च पदों की प्राप्ति
अमरनाथ झा की नियुक्त 1922 ई. में अंग्रेज़ी अध्यापक के रूप में ‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय’ में हुई। यहाँ वे प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहने के बाद वर्ष 1938 में विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बने और वर्ष 1946 तक इस पद पर बने रहे। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय ने बहुत उन्नति की और उसकी गणना देश के उच्च कोटि के शिक्षा संस्थानों मे होने लगी। बाद में उन्होंने एक वर्ष ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ के वाइस चांसलर का पदभार सम्भाला तथा उत्तर प्रदेश और बिहार के ‘लोक लेवा आयोग’ के अध्यक्ष रहे।
एक किस्सा कुछ ऐसा भी
अमरनाथ झा शायर मिजाज के व्यक्ति भी थे. उस वक्त के एक मशहूर शायर गुजरे हैं फ़िराक़ गोरखपुरी. शेर-ओ-शायरी की दुनिया में फ़िराक़ गोरखपुरी एक बहुत ही जाना-पहचाना नाम है. यह उस वक्त की बात है, जब अमरनाथ झा और फ़िराक़ गोरखपुरी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का हिस्सा हुआ करते थे. दोनों ही विद्वान व्यक्ति थे.
एक दिन अमरनाथ झा स्टेज से लगातार एक के बाद एक शेर की बौछार कर रहे थे. इनका मूड उस दिन बड़ा ही शायराना था. एक शेर सुनाकर खत्म करते नहीं थे कि चाहने वाले अगले शेर की फरमाइश कर बैठते. उस वक्त स्टेज पर फ़िराक़ गोरखपुरी भी मौजूद थे. अमरनाथ झा को मिल रही वाहवाही देखकर फ़िराक़ गोरखपुरी मुस्करा रहे थे, लेकिन उनकी मुस्कराहट तब गायब हो गई जब कमजोर शेरों पर भी अमरनाथ झा को दाद मिलने लगी. अमरनाथ झा जैसे ही अपनी जगह पर आकर बैठे, तो फ़िराक़ गोरखपुरी अपनी जगह से उठे और बोले: “तो कव्वाली खत्म हुई, अब शेर सुनिए.” उनका इतना कहना था कि अमरनाथ के चाहने वालों के बीच सन्नाटा पसर गया. किसी ने फौरन कह दिया कि कुछ भी हो, अमरनाथ झा आपसे हर मामले में बेहतर हैं. इस पर फ़िराक़ गोरखपुरी ने भी पलटवार करते हुए कह दिया कि अमरनाथ मेरे भी बहुत अच्छे दोस्त हैं और मैं यह बात अच्छी तरह जानता हूं कि इन्हें अपनी झूठी तारीफ़ें सुनना बिल्कुल भी पसंद नहीं है. फ़िराक़ गोरखपुरी की इस हाजिर जवाबी पर अमरनाथ झा हंसने लगे और इस तरह जो माहौल थोड़ा तल्ख हो गया था, वह फिर से खुशगवार हो गया.
शिक्षाविद के साथ-साथ आला दर्जे के साहित्यकार
अमरनाथ झा शिक्षा के स्तंभ तो थे ही, साथ ही एक आला दर्जे के साहित्यकार भी थे और इसी के साथ एक आला दर्जे के भाषाविद भी. इनकी न सिर्फ हिंदी पर जबरदस्त पकड़ थी बल्कि संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी का भी इन्हें बहुत अच्छा ज्ञान था. इन्होंने इन भाषाओं में कई महत्त्वपूर्ण किताबें भी लिखीं.‘शेक्सपियर कॉमेडी’ से लेकर ‘हिंदी साहित्य संग्रह’ और ‘पद्म पराग’ तक और ‘लिटरेरी स्टोरीज’ से लेकर ‘संस्कृत गद्य रत्नाकर’ तक इन्होंने कई प्रसिद्ध किताबें लिखकर आला दर्जे के साहित्यकारों में अपना नाम दर्ज करा लिया. समकालीन साहित्यकारों ने भी इनकी साहित्यिक सेवा को खूब सराहा है.
-एजेंसियां

Dr. Bhanu Pratap Singh