मां नर्मदा के यह मानस पुत्र नर्मदा परिक्रमावासी अमृतलाल वेगड़ अपनी यशस्वी और ऊर्जस्वी लेखनी के साथ आज से दो साल पहले 6 जुलाई 2018 को खामोश हो गए। नर्मदा नदी को उन्होंने रोम रोम से प्यार किया। उनकी आत्मा में नर्मदा की कलकल छलछल धारा बहती थीं। उनकी लेखनी से निकल कर नर्मदा ने भी जाने कितने पाठकों का मन भिगोया और जाने कितनों को नर्मदा की परिक्रमा के लिए प्रेरित किया।
‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ ‘अमृतस्य नर्मदा’, ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ ‘नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो’.. उनकी पुस्तकों के शीर्षक बोलते थे कि नर्मदा नदी से किस कदर प्यार है उन्हें।
नर्मदा परिक्रमावासी अमृतलाल वेगड़ का 6 जुलाई शुक्रवार 10.15 बजे जबलपुर में निधन हो गया।
अमृतलाल वेगड़ का जन्म 3 अक्टूबर 1928 में जबलपुर में हुआ। 1948 से 1953 तक शांति निकेतन में उन्होंने कला का अध्ययन किया। वेगड़ जी ने खंडों में नर्मदा की पूरी परिक्रमा की। उन्होंने नर्मदा पदयात्रा वृत्तांत की तीन पुस्तकें लिखीं, जो हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला अंग्रेजी और संस्कृत में प्रकाशित हुई हैं।
वे गुजराती और हिन्दी में साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं महापडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार जैसे अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हुए थे। अमृतलाल वेगड़ ने नर्मदा और सहायक नदियों की 4000 किमी. से भी अधिक की पदयात्रा की। वे पहली बार वर्ष 1977 में 50 वर्ष की अवस्था में नर्मदा की पदयात्रा में निकले और 82 वर्ष की आयु तक इसे जारी रखा। ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ उनकी प्रसिद्ध
पुस्तक है। ‘अमृतस्य नर्मदा’ और ‘तीरे-तीरे नर्मदा’ तीन पुस्तकें हैं। चौथी ‘नर्मदा तुम कितनी सुंदर हो’ वर्ष 2015 में प्रकाशित हुई।
-एजेंसी
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