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भाजपा नेता केके भारद्वाज ने कहा-चीन, भारत का बड़ा व्यापारिक साझेदार

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भाजपा ब्रजक्षेत्र मीडिया सम्पर्क प्रमुख केके भारद्वाज ने कहा- भारत सरकार चीन पर निर्भरता कम करने के लिए कोई ठोस एवं दीर्घकालिक रणनीति बनाए

Agra (Uttar Pradesh, India)। भाजपा ब्रजक्षेत्र मीडिया सम्पर्क प्रमुख केके भारद्वाज ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि लद्दाख में नियंत्रण रेखा पर गलवान घाटी में चीन की धोखेबाजी से हमारे 20 भारतीय जवान शहीद हो गए,  अब विश्व समुदाय ने स्वीकार कर लिया है कि चीन ने शरारतपूर्ण हरकत की है। चीन भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में है। ऐसे समय पर राहुल गांधी जोश-जोश में मोदी सरकार को कोसने के चक्कर में देश के साथ आत्मघाती व्यवहार कर रहे हैं।

जब पूरा देश चीन की चुनौती का सामना करने को एकजुट हो रहा है तब राहुल चीन के मनमाफिक बात कर उसे खुश कर रहे हैं। बेसिर पैर के आरोप लगाकर जिस तरह उन्होंने राफेल मामले में, सर्जिकल और एयर स्ट्राइक के समय गैर जिम्मेदाराना व्यवहार किया था, वही रुख अपना रहे हैं। वे भूल रहे हैं, कि 1962 में चीन ने हड़पी भारत की भूमि को वापस लेने की कोशिश नेहरू से लेकर गांधी परिवार तक कांग्रेस ने कभी नहीं की। आज चीन फिर से भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश कर रहा है। हर भारतीय सेना और सरकार के साथ चीन की ललकार का प्रतिकार करने के लिए एकजुट है। सिर्फ गांधी परिवार चीन से सांठगांठ कर 1962 की तरह देश को कमजोर करने में लगा है।

एक ओर चीन अभी भी शरारत कर एलएसी पर यथास्थिति कायम करने को लेकर बनी सहमति पर अमल करने से इन्कार कर रहा है। विस्तारवादी नीति के तहत भारतीय क्षेत्र पर अतिक्रमण की कोशिश करने अपने सैनिकों का जमावड़ा बढ़ा रहा है। उसके जवाब में भारत को भी ऐसा ही करना पड़ रहा है। माना जा रहा कि चीन गलवन घाटी में सामरिक बढ़त हासिल करने के लिए भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की फिराक में है।

भारत ने काराकोरम हाईवे के बेहद करीब दौलत बेग ओल्डी हवाई पट्टी को न केवल आधुनिक बना दिया है, बल्कि उसे हर मौसम में इस्तेमाल होने वाले सड़क मार्ग से भी जोड़ रहा है। यही चीन की चिंता का कारण है। चीन इसके बावजूद एलएसी पर यथास्थिति बदलने की कोशिश कर रहा कि 1962 में हथियाया गया इलाका अभी भी उसके कब्जे में है। इसके अलावा उसके पास गुलाम कश्मीर का वह हिस्सा भी है जिसे पाकिस्तान ने उसे सौंप दिया था। चीन सीमा विवाद सुलझाने की बात तो करता है, लेकिन उसका इरादा इसे सुलझाने का बिल्कुल भी नहीं जान पड़ता।

चीन भारत का एक बड़ा व्यापारिक साझेदार तो है ही, देश में उसका अच्छा-खासा निवेश भी है । आधारभूत ढांचे के निर्माण से लेकर बड़े स्टार्टअप में चीनी कंपनियों ने निवेश कर रखा है। इसके अलावा तमाम भारतीय उद्योग कच्चे माल, उपकरणों के लिए उस पर निर्भर हैं। चीन को जवाब देने के मामले में यह बात बार-बार उठ रही है कि हमें उस पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी, लेकिन इसे समझने की जरूरत है कि यह काम रातोंरात नहीं हो सकता। भारतीय उद्योग जगत जिस तरह चीन पर निर्भर है, उसे देखते हुए यदि जल्दबाजी में कोई कदम उठा लिया जाता है तो उसके क्या परिणाम होंगे।

वास्तव में आवश्यकता इसकी है कि भारत सरकार चीन पर निर्भरता कम करने के लिए कोई ठोस एवं दीर्घकालिक रणनीति बनाए। इस मामले में भारतीय उद्योग जगत को भारतीय उद्योगों और स्टार्टअप को अपने पैरों पर खड़ा होने के साथ ही चीनी कंपनियों और निवेशकों के विकल्प तलाशने होंगे। आज चीन से ऐसा बहुत सामान आ रहा है जिनके निर्माण की क्षमता भारत के पास है। घरेलू जरूरत की वस्तुएं, बिजली की झालर, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां चीन से क्यों मंगाई जाएं? चीन की ललकार का प्रतिकार करने के लिए हर भारतीय को तैयार रहना होगा। चीन हमसे आगे क्यों निकल गया? यह विचार करना ही होगा।

भारत के उत्थान में समर्पण और अनुशासन का परिचय हम भारतीयों को भी देना होगा। हम देश के लोकतंत्र पर गर्व करते हैं। लोकतंत्र हमें स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन स्वच्छंदता नहीं। आत्मनिर्भर भारत अभियान चीन का मुकाबला करने में सहायक होगा। हमें अपना मिजाज बदल कर चीन के बगैर अपनी सभी जरूरतों को पूरा करना होगा।