– अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर संस्कृति सभागार में हुआ कार्यक्रम
– डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के महिला प्रकोष्ठ और भारतीय जन नाट्य संघ ने संयुक्त रूप से किया कार्यक्रम
आगरा। जितेन्द्र रघुवंशी के हर नाटक, हर लेखन और चिंतन में स्त्री के प्रति उनके भाव बताते थे कि स्त्रियां इस समाज की नींव हैं। वह जितने अच्छे अध्यापक थे, उतने ही अच्छे इंसान थे। हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी हर भूमिका को बखूबी निभाया है। इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के 30 सालों से ज्यादा समय तक राष्ट्रीय महासचिव रहे। इस दौरान उन्होंने पूरे भारत में रंगमंच को एक नया मुकाम दिया।
यह विचार बिमटेक के पूर्व निदेशक प्रो. हरिवंश चतुर्वेदी ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए। मौका था अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या में डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के महिला प्रकोष्ठ और भारतीय जन नाट्य संघ के संयुक्त तत्वावाधान में संस्कृति भवन सभागार में आयोजित डॉ. जितेंद्र रघुवंशी स्मृति समारोह का।
मुख्य अतिथि प्रो. हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि आगरा के हर क्षेत्र के व्यक्ति का नाता डॉ. जितेंद्र रघुवंशी से रहा। भारत के सांस्कृतिक आंदोलन में उनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। बुद्धिजीवी तो बहुत होते हैं, लेकिन सामाजिक बुद्धजीवी वो होते हैं जो समाज के हर रूप से जुड़ता है। जिसकी चेतना प्रगतिशील होती है। ऐसे थे डॉ. जितेंद्र रघुवंशी। हमारा देश आर्थिक प्रगति कर रहा है लेकिन सांस्कृतिक प्रगति नहीं हो पा रही है। हमें आधुनिकता और परंपरा का समन्वय करना है। हम महिलाओं के जीवन और अधिकारों के बारे में क्या सोचते हैं। महिलाएं हर प्रोफेशन में काम कर रही हैं, जो स्थान है वो नहीं मिला है। इस बात की मांग होनी चाहिए कि महिलाओं की बराबरी की सहभागिता का आर्थिक मूल्यांकन हो। हर जगह बराबर की हिस्सेदारी मिले। विकसित देश तभी बनेगा जब महिलाओं को बराबर का स्थान दे पाएंगे।
कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि उपस्थित विश्वविद्यालय के महिला प्रकोष्ठ की समन्वयक प्रोफेसर विनीता सिंह ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, डॉ. जितेंद्र रघुवंशी ने विश्वविद्यालय की सांस्कृतिक गतिविधियों को नया रूप दिया। यूथ फेस्ट की नींव भी उन्होंने ही रखी थी। वो सभी को बहुत इज्जत देते थे।
प्रो. ज्योत्सना रघुवंशी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. जितेंद्र रघुवंशी के जीवन के विषय में भी बताया। उन्होंने पुरानी यादों पर पड़े पर्दे को हटाते हुए कहा कि, उनकी पहली फिल्म ‘गर्म हवा’ को देखने के लिए उनके सारे दोस्त इकट्ठा हुए थे। बहुत उत्साह था। उन्होंने कहा कि वो समझते थे कि स्त्रियां दोहरी, तिहरी जिम्मेदारी निभाती हैं। वो महसूस करते थे। वो अपने साथ की हर महिला के जीवन में आने वाली हर समस्या के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाते थे। उनके जाने के 10 साल बाद भी उनके दोस्त, उनके शिष्य उनको याद करते हैं।
डिंपी मिश्रा ने अपनी प्रस्तुति दी,
इस अवसर पर डॉ. जितेंद्र रघुवंशी की रचनाओं में स्त्री और उससे जुड़े प्रश्नों को फिल्म अभिनेता डिंपी मिश्रा (आईआईसीएस नई दिल्ली के अध्यापक) ने बखूबी प्रस्तुत किया। उनकी टीम के सदस्यों ने मानसरोवर कविता सुनाई। गरिमा मिश्रा ने ‘मेहनत माई ‘की कहानी का अंश सुनाया। आकांक्षी खन्ना ने एक गीत सुनाया-“महकने दो पखुंड़ियां प्यार की, चहकने दो, एक पखुंडी कहती हमसे जीवन मुस्काने का नाम।”
डिंपी मिश्रा ने अनवार मियां की कहानी सुनाई। ‘बर्फ के आंसू’ कहानी आशना और आकाश ने प्रस्तुत की। अंत में बड़ा सफर है, मुश्किल रस्ता, अभी तो मंजिल बाकी है, पढ़ना लिखना सीख गए हम, यही नहीं बस काफी है गीत सुनाया।
संयोजक भावना रघुवंशी ने आभार व्यक्त किया। डॉ. सुषमा सिंह, आभा चतुर्वेदी, रमेश पंडित, हरिनारायण, अनिल जैन, प्रमोद सारस्वत, विश्वनिधि मिश्रा, उमेश अमल, डॉ. जेएन टंडन, नरेश पारस, डॉ. महेश धाकड़ आदि उपस्थित रहे। व्यवस्थाएं मानस रघुवंशी, तनिमा रघुवंशी ने संभालीं।
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