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कुछ ऐसे हैं श्रीमान, उन्हें चाहिए सिर्फ सम्मान, भाड़ में जाए फिल्म फेस्टिवल और गोदान

लेख

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, Bharat, India. मैं किसी साहित्यकार की मानहानि नहीं कर रहा हूँ। कर भी नहीं सकता हूँ। साहित्यकार समाज को आइना दिखाते हैं। अब सवाल यह है कि उन्हें आइना कौन दिखाए? तो सोचा थोड़ा मैं ही साहिस कर लूँ क्योंकि कोई और तो बोलेगा नहीं। बोलेगा तो साहित्यकार उसकी बखिया उधेड़ देंगे।

मैं बात कर रहा हूँ 5वें ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल की, जो डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के खंदारी परिसर स्थित जेपी सभागार में चल रहा है। इसमें ऐसे लोगों की भरमार है जो सिर्फ सम्मान लेने आ रहे हैं। सम्मान हो जाए, फिर भाड़ में जाए फिल्म फेस्टिवल और सूरज तिवारी। झांकने तक नहीं आ रहे हैं। इनमें साहित्यकार नम्बर एक पर आते हैं।

3 नवम्बर, 2023 को उद्घाटन समारोह में कई साहित्यकारों को देखकर मैं चौंक गया था। वे दो बजे ही आ गए थे। साहित्यकारों की मुस्कराहट आश्चर्यित कर रह थी। फिल्म फेस्टिवल के प्रति इतना प्रेम? बाद में पता चला कि इन सबका सम्मान होना है। सम्मान होना है तो सजधकर आना बनता है। दो बजे का समय और बज गए रात्रि के आठ। तब जाकर सम्मान हुआ। इसके बाद भी सब जमे रहे। हिले तक नहीं। हिलते तो सम्मान से वंचित रह जाते।

4 नवम्बर को  फिल्म फेस्टिनल का दूसरा दिन आया। वही स्थान जेपी सभागार। मैं करीब 12 बजे पहुंच गया। एक भी साहित्यकार के दर्शन नहीं हुए। भारत के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर आधारित फिल्म गोदान का प्रदर्शन होना था। यह पहले से घोषित था। फिर भी एक भी साहित्यकार फिल्म देखने नहीं आया। श्री संजय गुप्त तीन बजे के आसपास दिखाई दिए। फिर वे चले गए। मैं चार बजे तक कार्यक्रम स्थल पर रहा। सम्मानित साहित्यकारों को देखने के लिए आँखें तरस गईं। दूसरे दिन पूर्व घोषित फिल्म गोदान का प्रदर्शन किया गया। साहित्यकार होते तो सार्थक सवाल होते। हम और हमारे जैसे अज्ञानियों का ज्ञान बढ़ता, जिससे वंचित रह गए। अब इसकी भरपाई कौन करेगा?

मैंने इस बारे में फेस्टिवल के कर्ताधर्ता सूरज तिवारी से पूछा। फिर उन्होंने वॉट्सअप दिखाते हुए जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली। इस कहानी को नहीं लिख रहा हूँ क्योंकि कई लोग निर्वस्त्र हो सकते हैं।

फिल्म फेस्टिवल के पहले दिन फिल्मों में अभिनय करने वाले कुछ लोग दिखाई दिए लेकिन सक्रिय नहीं थे। कुछ तो सभागार में आने के स्थान पर बाहर चाय सुड़कते हुए बतिया रहे थे। जिन्हें फिल्म में काम करने का अवसर मिलता है, भले ही कुछ सेकेंड्स का हो, उन्हें तो लगातार तीन दिन उपस्थित होना ही चाहिए। 10 देशों की फिल्में देखनी चाहिए ताकि कुछ नया सीख सकें।

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Dr. Bhanu Pratap Singh