डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. 3 मई, 2024 को अपराह्न एक बजे भारतीय जनता पार्टी के आगरा लोकसभा क्षेत्र के केंद्रीय चुनाव कार्यालय पहुंचा। व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण मिला, इसलिए चला गया। राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी की प्रेसवार्ता का आमंत्रण मिला था। एमजी रोड पर भगत हलवाई के बाहर ही द्वार बना हुआ है। लोगों को भ्रम हो रहा है कि यही चुनाव कार्यालय है। चुनाव कार्यालय तो पुराने टोरंट कार्यालय में है। यहीं पर आगरा से भाजपा प्रत्याशी प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल के चुनाव संबंधी गतिविधियां संचालित हो रही हैं।
प्रवेश करते ही कुछ पत्रकार साथी मिल गए। कुछ कंधे पर भारी बैग लटकाए थे। कुछ के हाथ में चैनल की सूचना देने वाली माइक आईडी थी। डिजिटल और अखबार वालों के हाथ में कुछ नहीं होता है, इसलिए उन्हें अपनी पहचान स्वयं बतानी पड़ती है। लोकंतंत्र में सबसे बड़ा उत्सव चुनाव होता है। अगर चुनाव लोकसभा का हो तो उत्सव महोत्सव में बदल जाता है। इसी कारण लोकसभा चुनाव 2024 में अनेक पत्रकारों की भी पौबारह हो जाती है।
कार्यालय प्रभारी की भूमिका में चिरपरिचित ओम प्रकाश चलनी वाले हैं। उन्होंने मुस्कराते हुए स्वागत किया। अब तक वे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के 38 बार कार्यालय प्रभारी रह चुके हैं। यह भी एक विश्व रिकॉर्ड होगा। इस आशय का एक पोस्टर भी प्रदर्शित है। उनके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोड़ीदार होर्डिंग है। जोड़ी के दोनों और प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल के होर्डिंग लगे हैं। उनके बराबर कुर्सी पर मुरारीलाल अग्रवाल पेंट, निर्मला दीक्षित और एकता जैन विराजमान हैं। सामने मेज पर लाई-चना रखे हुए हैं। मुझे देखा तो खाने का आग्रह करने लगे। मैं घर से भोजन करके गया था। इसलिए उनकी बात रखने के लिए एक लाई मुंह में रख ली।
अंदर से पार्षद शरद चौहान आते दिखाई दिए। मैंने उनके साथ अमर उजाला में काम किया हैं। पत्रकार से नेता बने हैं। वे अन्य नेताओं की तरह दुष्ट नहीं बन पाए हैं। पीछे-पीछे सुनील कर्मचंदानी और रोहित कत्याल आ गए। प्रेस वालों की आवभगत और प्रेसवार्ताओं के लिए यही जिम्मेदार हैं। सुनील कर्मचंदानी ने पत्रकार अनुज उपाध्याय को देखा तो कहा कि बड़े दिनों बाद दिए। इस पर अनुज ने तपाक से उत्तर दिया- ‘जिन्हें प्रसाद चाहिए, वही रोज आते हैं।’ आप प्रसाद का तात्पर्य तो समझ ही गए होंगे। सुनील कर्मचंदानी ने अपने व्यवहार से अने पत्रकारों को वश में कर रखा है।
एक बजकर बीस मिनट हो गए। पत्रकारों की संख्या बढ़ने लगी। लगा नहीं कि कोई प्रेसवार्ता होने वाली है। असल में जिन्हें प्रेसवार्ता संबोधित करनी थी, वे आए ही नहीं थे। 1 बजकर 28 मिनट पर त्रिलोक त्यागी दलबल के साथ प्रकट हुए। उनके साथ Kr नेता और कार्यकर्ता था। सबके गले में हरित दुपट्टा था, जो लोकदल की पहचान है। सुनील कर्मचंदानी ने कुर्सियां लगाईं और पत्रकारों से बैठने का आग्रह किया। पहली पंक्ति में कुछ पत्रकार पहले से बैठे थे। दूसरी पंक्ति में पत्रकारों को घुसेड़ा गया। घुसेड़ा इसलिए लिख रहा हूँ कि पैर रखने की जगह नहीं थी। तीसरी पंक्ति में लोकदल के कार्यकर्ता विराजमान थे। उनसे पीछे बैठने की कहने की हिम्मत कोई नहीं कर पा रहा था। जो पत्रकार अत्यधिक विलम्ब से आए, वे त्रिलोक त्यागी के सामने नहीं बैठ पाए।
मंच पर लोकदल के नेता विराजमान हो गए। भारतीय जनता पार्टी की ओर से कोई भी नहीं था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार महानगर अध्यक्ष भानु महाजन को रहना था, लेकिन उन्हें विलम्ब हो रहा था। इस पर सुनील कर्मचंदानी ने दिगम्बर सिंह धाकरे से आग्रह किया कि साथ बैठ जाएं। उनके लिए अलग से कुर्सी नहीं लगाई गई थी। इसलिए दो नेताओं के बीच में जैसे-तैसे बैठ गए। उनके गले में भाजपा का दुपट्टा डाल दिया गया। मथुरा वाले रविकांत गर्ग को त्रिलोक त्यागी के बराबर में स्थान दिया गया।
बातचीत शुरू ही हो पाई थी कि लोकसभा प्रभारी सुनील टंडन आ गए। उन्हें देखकर दिगम्बर सिंह धाकरे फुर्ती के साथ उठे और अपने स्थान पर बैठाया। वे गोपनीय कक्ष में फिर से प्रवेश कर गए। इस कक्ष पर लिखा हुआ है- गोपनीय कक्ष..प्रवेश वर्जित। मैंने झांककर देखा तो इसमें कुर्सियां और टेबल हैं। एक टेबल पर नमकीन भी दिखाई दी।
कुछ पत्रकार पहले बाइट की बात करने लगे। त्रिलोक त्यागी ने पहले बात करनी चाही। पूछा कि अखबार वाले आ गए हैं क्या तो अनुज उपाध्याय ने कहा कि नहीं आए हैं। इस पर हिंदुस्तान से नीरज शर्मा ने कहा कि आ गए हैं। बातचीत होने लगी। सीटीवी से विजय बघेल ने कुछ सवाल किए। नीरज शर्मा ने सवाल किया। मैं वीडियो बना रहा था। बीच में गड़बड़ी आ गई। एक सवाल कर ही दिया कि आप भाजपा के आगे नतमस्तक हो गए हैं? त्रिलोक त्यागी ने सवाल का सीधा जवाब देने के स्थान पर कहा- हम तो आपके सामने भी नतमस्तक हैं। माइक आईडी वालों को बाइट की जल्दी थी। उन्होंने आईडी लगा दी। वही बातें फिर से दोहराई गईं। किसी ने कोई सवाल नहीं किया। बाद में रविकांत गर्ग की बाइट ली गई। उनसे मैंने हेमा मालिनी के बारे में सवाल किया तो मंझे हुए नेता की तरह चुप्पी साध ली। त्रिलोक त्यागी ने कहा कि आपके मुँह से कुछ निकलवाना चाहते हैं तो रविकांत गर्ग ने उत्तर दिया कि 50 साल से नेतागीरी कर रहा हूँ।
पत्रकार आए हैं तो भोजन की बात भी होती है। भोजन का समय भी हो रहा था। इसलिए तलघर में पत्रकार भोजन के लिए प्रस्थान कर गए। कई नेता भी भोजनार्थ पहुंच गए। मेरी भेंट वहां भाजपा नेता विजय भदौरिया से हुई। वे बहुत जल्दी में थे। भोजन करने के स्थान पर गटक रहे थे। उन्हें आगरा उत्तर विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है। नाट्यकर्मी उमाशंकर मिश्र भी भोजन कर रहे थे। पहले ही लिख चुका हूँ कि मैं भोजन घर से करके गया था। एल्केलाइन पानी भी साथ लेकर गया था।
तलघर से निकलकर ऊपर आया तो लोकदल नेता कप्तान सिंह चाहर से सामना हुआ। मैं उनके बराबर बैठ गया। उनके पास ही किसान नेता दिलीप (शायद शर्मा) ने ताना मारते हुए कहा- आपने राजकुमार चाहर के कहने पर धरना समाप्त होने की खबर प्रकाशित कर दी, जबकि धरना जारी था। आप सीनियर पत्रकार हैं। मैंने कहा- कोई मिसफीडिंग हो गई है तो उसे सुधारा जा सकता है, आप खंडन कर सकते थे। वे तैश में लग रहे थे। फिर उन्हें कप्तान सिंह चाहर ने समझाया कि आपको अपनी बात कहना चाहिए थी। वहीं पर दिगम्बर सिंह धाकरे आ गए। उन्होंने मेरी ईमानदारी के बारे में एक बात कही तो मैं फूलकर कुप्पा हो गया, यह जानते हुए भी कि प्रशंसा व्यक्ति को बर्बाद कर देती है। यहां बता दूँ कि इस चुनाव में दिगम्बर सिंह धाकरे खासे पावरफुल हैं। वे महापौर का चुनाव लड़ चुके हैं इसलिए हर चुनावी तिड़कम से वाकिफ हैं। मुस्कराते हुए सबसे काम लेने में भी माहिर हैं।
मैं चलने को ही था कि मनोज बघेल मिल गए। वे दीवारों पर स्टिकर चिपकाकर आ रहे थे। उनसे डॉ. यादवेंद्र शर्मा ने कहा कि झंडे भी लगवाओ। कार्यकर्ता लगातार आ रहे थे और जा रहे थे। सबको कोई न कोई काम ही था।
कार्यालय के कक्षों पर कुशाभाऊ ठाकरे मंत्रणा कक्ष, विजया राजे सिंधिया मंत्रणा कक्ष, अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रणा कक्ष, वीर सावरकर मंत्रणा कक्ष लिखा हुआ था। कुछ लोग फोन करके लोगों को वोट देने की अपील करते दिखाई दिए।
मैं फिर से ओम प्रकाश चलनी वाले के पास आ गया। इस बार लाई चना के साथ मूँगफली भी रखी हुई थीं। मैंने कुछ मूँगफली उठा लीं और खाने लगा। वहीं पर पार्षद गौरव शर्मा के पिताश्री विराजमान थे। वे सबकी खबर ले रहे थे। मुझे लगा कि सब पर नजर रख रहे थे। जो भी आता, वह मूँगफली उठाकर खाने लगता। सबका मुँह चल रहा था। चलनीवाले ने बताया कि यह उत्तर प्रदेश का इकतौला चुनाव कार्यालय है, जहां सबका मुँह चलता रहता है। मूँगफली चीज ही ऐसी है कि कोई खाने से मना नहीं कर सकता है।
मैंने देखा कि सूचियों का आदान-प्रदान हो रहा है। बस्ते बनाने की प्रक्रिया चल रही है। कार्यकर्ताओं की ओर से स्टिकर और झंडों की मांग आ रही है। इस मांग को तत्काल पूरा किया जा रहा है। कार्यालय के केंद्र में ओम प्रकाश चलनीवाले हैं। वे कार्यालय प्रभारी का काम करने में सिद्धहस्त हो चुके हैं। उनके सामने एक बोर्ड लगा हुआ है, जिस पर आज के कार्यक्रम अंकित किए जाते हैं।
अंत में, मैं मूँगफली चबाता हुए कार्यालय से बाहर आ गया। सोचा लगे हाथ शिशिर भगत से मिल लूं। उनके प्रतिष्ठान पर गया तो पता चला कि वे आगरा से बाहर हैं।
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