केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दावोस में चल रहे एक सम्मेलन के दौरान गेहूं और चीनी के निर्यात को सीमित करने की भारत सरकार की नीति का बचाव किया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि घरेलू माँग को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाना ज़रूरी था.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की सालाना बैठक के दौरान वैश्विक कारोबार को लेकर एक सेशन में गोयल ने कहा कि इस मसले पर बहुत सी अफ़वाहें फैल रही हैं. गोयल ने वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन (डब्ल्यूटीओ) के चीफ़ से भी अलग से मुलाकात की.
गोयल ने कहा कि भारत कभी भी अनाज का निर्यातक नहीं रहा था और हरित क्रांति के शुरू होने से पहले तक तो आयात ही करता था.
उन्होंने कहा, “बीते कई सालों से हम सिर्फ़ घरेलू उपभोग के लिहाज से उत्पादन कर रहे थे और केवल दो साल पहले ही हमने अतिरिक्त पैदावार को निर्यात करना शुरू किया है, वो भी बेहद सामान्य मात्रा में.”
“हमारा अधिकांश गेहूं गरीब देशों को निर्यात होता है. दुर्भाग्य से बीते साल जलवायु की समस्या हुई और इस वजह से गेहूं का उत्पादन तेज़ी से घटा और हमें अपने खाद्य सुरक्षा रिज़र्व से गेहूं निकालना पड़ा.”
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “हमें उन बिचौलियों पर भी ध्यान देना है जो भारत से गेहूं लेकर गरीब देशों को ऊंचे दामों पर बेचते हैं. अगर डब्ल्यूटीओ के नियम इजाज़त दें तो हम अभी भी संकटग्रस्त देशों की मदद करने को तैयार हैं.”
रूस से तेल खरीदने के फैसले को लेकर गोयल ने कहा कि सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि भारत रूस से जितना तेल आयात करता है वो यूरोप की तुलना में एक छोटा सा हिस्सा है. ये किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं करता है.
-एजेंसियां
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