Bankey Bihari

वृन्दावन बॉकेबिहारी के फूल बंगले भी कोरोना काल में नहीं सजे

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE लेख

Mathura (Uttar Pradesh, India)। वृन्दावन, मथुरा। (सुनील शर्मा) कोरोना महामारी के चलते जहां भगवान के भक्त दुखी हैं वहीं भगवान भी अब मजबूर हैं भगवान का दर्शन न देना भी मजबूरी बन गया है। ज्यादातर लोगों ने अपने घरों को ही भव्य मंदिर बना लिया है और भगवान को अपने घर पर बैठकर स्मरण कर रहे हैं, ध्यान लगा रहे हैं। कोरोना वायरस की वजह से मथुरा और वृंदावन के हजारों मंदिर अभी भी बंद हैं। मथुरा में अभी सिर्फ दो ही मंदिर खुले हैं।

बृज के छोटे-बड़े सभी मंदिर अभी भी आम लोगों के लिए बंद

वृंदावन में सैकड़ों ऐसे भक्त हैं जो मंदिर की देहरी छूकर अपने दिन की शुरुआत करते हैं। 8 जून के बाद से देश में कई मंदिर खुल गए, मथुरा में भी दो ही मंदिर खुले हैं। श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर और श्री द्वारिकाधीश मंदिर।

पांच हजार से अधिक मंदिरों वाले वृंदावन के श्रीबांके बिहारी जी का मंदिर, गोविंददेव जी का मंदिर, कृष्ण-बलराम का मंदिर (इस्कॉन मंदिर), पागल बाबा मंदिर, प्रेम मंदिर, निधिवन मंदिर समेत गोकुल, बरसाना श्रीलाडली जी का मंदिर और गोवर्धन में मुकुट मुखारबिंद, रमन रेती आश्रम-महावन, बलदेव मंदिर समेत बृज के छोटे-बड़े सभी मंदिर अभी भी आम लोगों के लिए बंद हैं।

देहरी छूकर ही अपने दिन की शुरूआत करते हैं लोग

वृंदावन के बिहारी पुरा में रहने वाले मंदिर के सेवायत प्रहलाद गोस्वामी जी बताते हैं कि जो लोग अभी तक हर दिन सुबह स्नान के बाद बांकेबिहारी मंदिर दर्शन के लिए जाते थे। यह लोगों की दिनचर्या का हिस्सा है और कुछ लोग दर्शन के बाद ही पानी पीते हैं। कोरोना के चलते मंदिर बंद हो गये तो वे हर दिन देहरी को ही छूकर ही लौट जाते हैं।

बॉके बिहारी मंदिर के सेवायत गोस्वामी शेलेन्द्र गोस्वामी का कहना है कि इस दौरान जिनको भी अपने परिवार में शादी करानी है, लड़का व लड़की को पक्का करना है तो वह बिहारी जी के मुख्य द्वार की चौखट को ही बिहारी जी का आर्शीवाद मान कर रिंग सेरेमनी तथा शादी के वाद भी बहू को घर में लाने से पहले बिहारी जी की देहरी की पूजा अर्चना करते हैं।

       नियमित दर्शनाथियों का कहना है कि ऐसा कभी नही हुआ कि प्रभु बॉके बिहारी के दर्शन न मिले हों। इस संकट काल में बिहारी जी मंदिर की देहरी ही मिल जाए यही सौभाग्य की बात है।

देहरी पूजन से शुरू हो रही हैं शादियां

            वृंदावन में सैकड़ों भक्त हैं जो मंदिरों की देहरी छूकर ही अपने दिन की शुरुआत कर रहे हैं। इस वार ब्रज का प्रमुख मेला मुडिया पूनो (गुरू पूर्णिमा) जो उत्तर प्रदेश सरकार का एक राजकीय मेला घोषित है यह मेला भी कोरोना की भेंट चढ़ गया। इस मेले में गोवर्धन में एक करोड़ से ज्यादा लोग आते थे। संकरी गलियों वाले बृज क्षेत्र में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन मुश्किल हो पाता जिसे देखते हुए जिला प्रशासन ने इस मेले को ही कैंसिल कर दिया।

       ब्रज क्षेत्र के मंदिरों के बंद रहने और इक्का-दुक्का ट्रेनें व बसों के न चलने के कारण धार्मिक पर्यटन पर टिकी मथुरा-वृन्दावन की अर्थव्यवस्था जिसमें तमाम ऐसे लोग हैं जो यात्रियों परदेशियों के भरोसे ही चलते हों उनको अधिक परेशानी हो रही है। होटल खाली पड़े हैं, पोशाक बेचने वाले, प्रसाद वाले, मिठाई वाले, टैक्सी-ट्रैवल्स सबके कारोबार प्रभावित हो रहे हैं। करीब चार हजार तीर्थ पुरोहित भी बिना जिजमानों के खाली ही बैठे हैं।

फूल बंगलों पर भी कोरोना काल का असर साफ देखने को मिल रहा है

       लॉकडाउन के पहले यहां हर दिन 20 हजार श्रद्धालु आते थे, अभी बड़ी मुश्किल से एक हजार ही आ पा रहे हैं। 95 फीसदी सेवाएं कैंसिल हो रही हैं बृज क्षेत्र में सर्वाधिक भीड़ वाले मंदिर में से श्री बांकेबिहारी जी मंदिर मंदिर के सेवायत शैलेन्द्र गोस्वामी बताते हैं कि मंदिर में सिर्फ पांच सेवायत, छह भंडारी ही जा सकते हैं। बांकेबिहारी जी का दिन में आठ बार भोग लगता है उसके साथ ही दीपक, पुष्प बैठक आदि की सेवा हो रही है। आम तौर पर भक्त पहले से ही सेवा बुक करवा लिया करते थे, लेकिन अभी 95 फीसदी सेवाएं कैंसिल हो रही हैं। इसी के कारण मंदिर में प्रतिवर्ष सजने वाले फूल बंगले भी कैंसिल हुए है। फूल बंगलों पर भी कोरोना काल का असर साफ देखने को मिल रहा है।

चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्था फूल बंगलों की बहार रहती थी

       वृन्दावन के प्रसिद्ध मंदिरों में फूल बंगलों का यह क्रम चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी से श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्था (हरियाली अमावस्था) तक चलता है। इन दिनों फूल बंगलों की बड़ी जबर्दस्त बहार रहती थी, जो इस वार देखने को नहीं मिली। फूलों के यह बंगले मुख्यतः यहां के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर, राधावल्लभ मंदिर, राधारमण मंदिर एवं राधा दामोदर मंदिर आदि में श्रद्धालु, भक्तगणों द्वारा मंदिरों के गोस्वामियों के सहयोग से नित नए रूप से बनवाए जाते हैं, जिनमें कि प्रतिदिन सांयकाल ठाकुर जी मंदिर के गर्भ गृह से बाहर निकल कर जगमोहन में विराजते हैं। साथ ही वे मंदिर प्रांगण में उपस्थित हजारों श्रद्धालु भक्तों को अपने दर्शन देकर कृतार्थ करते हैं।

प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास व उनके शिष्य जंगलों से तरह-तरह के फूल बीन कर लाते थे

       इसके पीछे का भाव है कि भीषण गर्मी की झुलसाने वाली तपिश में अपने आराध्य ठाकुर जी को गर्मी के प्रकोप से बचाने एवं उन्हें पुष्प सेवा से आह्लादित कर रिझाने के लिये वृंदावन के प्रायः सभी प्रमुख मंदिरों में फूल बंगले बनते हैं परंतु फूल बंगले बनाने का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप यहां के विश्व प्रसिद्ध ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में देखने को मिलता है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में ठाकुर बांके-बिहारी महाराज की सेवा करने हेतु उनके प्राकट्यकर्ता स्वामी हरिदास व उनके शिष्य जंगलों से तरह-तरह के फूल बीन कर लाते थे, जिन्हें बिहारी जी के सम्मुख रख दिया जाता था। साथ ही हरिदास जी, बिहारी जी को रायबेल व चमेली के फूलों की माला भी पहना दिया करते थे। बाद में वे फूलों से छोटी मोटी सजावट करने लगे। इस प्रकार वृंदावन में सर्वप्रथम फूल बंगला रसिकेश्वर स्वामी हरिदास ने ठाकुर बल्लभाचार्य महाराज, विट्ठलनाथ गोस्वामी, अलबेली लाल गोस्वामी, लक्ष्मीनारायण गोस्वामी, ब्रजवल्लभ गोस्वामी, छबीले बल्लभ गोस्वामी आदि के द्वारा संबर्धन हुआ।

       इन सभी से यह कला बिहारी जी के अन्य गोस्वामियों ने भी सीखी। गोस्वामियों के द्वारा बिहारी जी के मंदिर में फूल बंगलों को बनाए जाने के मूल में यह भावना निहित थी कि इससे उनके ठाकुर जी को गर्मियों में फूलों से कुछ ठंडक मिलेगी। अतएवं वह प्रतिवर्ष गर्मियों में उनके मंदिर में अपने निजी खर्चे पर फूलों के बंगले बनाते थे। बाद में इन फूल बंगलों को बाहर के भक्तों के द्वारा बनाए जाने का खर्चा उठाया जाने लगा किंतु इनको बनाने का कार्य आज भी बिहारी जी के गोस्वामियों के द्वारा ही किया जाता है। क्योंक यह कला इनको अपने पूर्वजों से विरासत में प्राप्त हुई हैं, इसलिए वह फूल बंगलों को बनाए जाने का कार्य बगैर किसी पारिश्रमिक के अत्यंत श्रद्धाभाव के साथ करते हैं। बिहारी जी के लगभग डेढ़ सौ गोस्वामी परिवारों में आज कोई भी परिवार ऐसा नहीं है, जिसमें कि कोई न कोई व्यक्ति फूल बंगलों को बनाने का काम न जानता हो और सब अपनी सुविधानुसार फूल बंगले बनाते हैं।

छोटे से छोटे फूल बंगले में पचास क्विंटल तक फूल लग जाते हैं

       एक दिन के छोटे से छोटे फूल बंगले में पचास क्विंटल तक फूल लग जाते हैं। इतनी बड़ी तादात में फूल वृन्दावन में उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, इसके लिये अन्य जनपदों से भी फूल मगांने पड़ते हैं अब कुछ भक्त विदेशों से भी विदेशी फूल मंगवाने लगे हैं। दूरवर्ती स्थानों से फूलों को बर्फ की सिल्लियों पर रखकर वायुयान से दिल्ली, आगरा तक मंगाया जाता है। तत्पश्चात् उन्हें सड़क मार्ग से वृंदावन लाया जाता है। फूल बंगलों में फूलों के अलावा तुलसी दल, केले के पत्तों, सब्जियों, फलों, मेवों, मिठाइयों और रुपयों का भी इस्तेमाल होता है।

       इस वार इतनी भव्यता के साथ फूल बंगले नही सजाये गये। हवाई जहाजों के आवागमन पर रोक और रेल गाड़ियों के व सड़क मार्ग सभी बंद होने के चलते फूलों के यहां तक न पहुंच पाने के कारण भव्यता के साथ फूल बंगले नहीं सजाये जा सके।

फूल बंगला बनाने में पाँच लाख रुपयों से लेकर बीस-पच्चीस लाख रुपये तक का खर्च

       प्रति वर्ष इन दिनों फूल बंगला बनाने में पाँच लाख रुपयों से लेकर बीस-पच्चीस लाख रुपये तक का खर्च श्रद्धालु भक्त किया करते थे। इस सम्बन्ध में ठाकुर बांके बिहारी के अनन्य सेवक व स्वामी हरिदास जी के वंशज सेवायत शेलेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि ठाकुर बांके बिहारी मंदिर में दूर दराज से आए उनके तमाम श्रद्धालु प्रायः मनौतियां पूर्ण होने पर फूल बंगला ठाकुर जी की सेवा में अर्पित करते हैं। मनौतियों के पूरे होने पर श्रद्धालु भक्त यहां अपने खर्चे पर मंदिर के गोस्वामियों के सहयोग से फूल बंगले बनवाते हैं। इस कार्य में सभी जाति संप्रदाय के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते है।

फूल बंगले 03 अप्रैल से 20 जुलाई तक 108 दिन फूल बंगले बनाये जायेंगे

बाँके बिहारी मंदिर के व्यवस्थापक मनीष कुमार शर्मा ने बताया कि यहां प्रतिवर्ष गर्मियों में फूल बंगलों के बनाए जाने के जो लगभग चार महीने होते हैं, उनमें किस दिन किस व्यक्ति के खर्चे पर फूल बंगला बनेगा, इसकी बुकिंग लगभग एक वर्ष पूर्व ही हो जाती है। फिर भी फूल बंगला बनवाने के इच्छुक तमाम लोगों को निराश होना पड़ता है। ठाकुर बांके बिहारी मंदिर पर चैत्र शुक्ल एकादशी से श्रावण कृष्ण हरियाली अमावस्या तक बिना नागा नित्य-प्रति फूलों के बंगले बनते हैं। इस वर्ष यह फूल बंगले 03 अप्रैल से 20 जुलाई तक 108 दिन फूल बंगले बनाये गये और 20 जुलाई तक बनाये जायेंगे। उन्होंने बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण भक्तों का आना नही हो पाया जिसके चलते अधिकांश फूल बंगले भक्तों के द्वारा नहीं बनवाये गये मगर कुछ भक्त श्रीबॉके बिहारी को आस्था के चलते फूल बंगले अर्पित किये। उसी के अनुसार इस वर्ष उतने भव्य बंगले नहीं बन पाये केवल ठाकुर जी को फूल बंगलों में सजाया गया। यही फूल बंगले अन्य वर्षों में अधिक मांग होने के कारण दोनों टाइम सजाये जाते और लगभग 216 फूलबंगले सजाये जाते।

       बाँके बिहारी जी मंदिर प्रबन्ध कमेटी के पूर्व सदस्य व अनन्य भक्त विकास वार्ष्णेय ने इस सम्बन्ध में बताया कि वृंदावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी मंदिर में फूल बंगलों को बनाने का कार्य प्रतिवर्ष बड़े जोर-शोर से होता है। यहां के गोस्वामी कलाकारों का उत्साह व तल्लीनता देखते ही बनती है। मगर उन्होंने बड़े ही निराशा का भाव लिये बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण यह व्यवस्था का पालन ठीक से नहीं हो सका।

लॉकडाउन के चलते फूल बंगलों में भी कमी आई है

            मंदिर के उप प्रबन्धक उमेश सारस्वत ने बताया कि एक बंगले को बनाए जाने में जो फूल प्रयोग में आता है, उसे दूसरा फूल बंगला बनाने हेतु किसी भी हाल में प्रयेग में नहीं लाया जाता है। एक बार प्रयोग में आ चुका फूल बतौर प्रसाद भक्तगणों में वितरित किया जाता है अथवा यमुना में विसर्जित कर दिया जाता है। फूल बंगले बनाने हेतु प्रतिदिन ताजे फूल ही इस्तेमाल होते है। इन बंगलों की लागत चार-पांच लाख से लेकर बीस व पच्चीस लाख रुपयों तक जा पहुंचती है। इन बंगलों में सिक्कों का भी प्रयोग होता है। आजकल गुब्बारों से फल-फूल सब्जियों व अन्य सामग्री से भी बंगले बनने लगे हैं। देश के कौने कौने से श्रद्धालु अपनी मनोकामंना के पूर्ण होने पर भगवान बाँके बिहारी जी को फूल बंगला अर्पित करते हैं। इन फूल बंगलों को देखने के लिए दूर-दराज से अंसख्य दर्शक वृंदावन प्रतिदिन पहुंचते हैं किन्तु इस वर्ष चारों तरफ लॉकडाउन के चलते और रेल गाड़ियों के व सड़क मार्ग पर यातायात उपलब्ध न हो पाने और लोगों का घरों से निकलना ही बंद होने के कारण फूल बंगलों में भी कमी आई है।

20 लाख लोग दर्शन के लिए आते थे अब सिर्फ पुजारी ही मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं

       बांकेबिहारी मंदिर में जहां हर महीने 15 से 20 लाख लोग दर्शन के लिए आते थे, अभी सिर्फ पुजारी ही मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। इस अकेले मंदिर में हर महीने दर्शन के लिए दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उडीसा के अलावा विदेशों से भी यहां आते थे। गोस्वामी कहते हैं कि हमारे पिताजी बताते हैं कि वृन्दावन की गलियां कभी ऐसी सूनी नहीं देखी हैं। मंदिर के सेवायतों का मानना है कि मंदिर में सोशल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन की व्यवस्था की जा सकती हैं लेकिन गली और वृंदावन की जिम्मेदारी प्रशासन ले तब ही मंदिर खोले जा सकते हैं।

मथुरा से सुनील शर्मा, 9319225654

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