डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. आगरा के उद्यमियों ने शानदार पहल की है। आगरा की हजारों महिलाओं को नौकरी दी जाएगी। हाईस्कूल पास से लेकर स्नातक तक की महिलाएं आकर मौके पर ही नौकरी पा सकती हैं। जिन्हें कोई काम नहीं आता है, उन्हें पहले प्रशिक्षण के साथ नौकरी दी जाएगी। प्रशिक्षण के दौरान करीब 10 हजार रुपये मासिक मिलेंगे। महिलाओं को आगरा ट्रेड सेंटर सींगना आना होगा। यहां तक आने के लिए बसों की व्यवस्था की गई है। महिलाओं को जलपान और भोजन भी दिया जाएगा। तारीख है 21 दिसंबर, 2024। उद्यमियों ने अपना काम कर दिया है, अब बारी है महिलाओं की।
यह सराहनीय कदम उठाया है रिया अस्थाना मेमोरियल फाउंडेशन और स्टोनमैन हेल्प फाउंडेशन ने। नाम दिया है महिला रोजगार मेला। फाउंडेशन और हैंडीक्राफ्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रजत अस्थाना ने बताया कि महिलाओं क आगरा ट्रेड सेंटर तक लाने के लिए 12 बसें लगाई जा रही हैं। इनमें महिलाएं निःशुल्क यात्रा कर सकेंगी। महिलाओं की चार श्रेणियां बनाई गई हैं- हाईस्कूल, इंटर, स्नातक और तकनीकी। जो महिलाएं पढ़ना जानती हैं, वे क्यूआर कोड स्कैन करके पंजीकरण कर सकती हैं। बाकी महिलाओं का पंजीकरण मौके पर किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि महिला रोजगार मेला में करीब 1000 महिलाओं के पहुंचने की उम्मीद है। हमने ग्राम प्रधानों से भी संपर्क किया है कि वे ग्रामीण महिलाओं को भेजें। जिन्हें तत्काल नौकरी नहीं मिल पाएगी, उनका डाटा बेस तैयार किया जाएगा।

एफमेक के अध्यक्ष पूरन डावर ने बताया कि हर महिला को कार्यालय में काम नहीं दिया जा सकता है। उन्हें प्रोडक्शन में काम करना चाहिए, जहां कंट्री हेड तक बना जा सकता है।
श्री डावर ने कहा कि आर्थिक स्वतंत्रता के बिना स्वतंत्रता अधूरी है। महिलाओं की पूरी भागीदारी के बिना कोई देश स्वतंत्रत नहीं हो सकता है। विकसित देशों में महिलाओं की भागीदारी 50 प्रतिशत है और हम अभी 23 प्रतिशत पर अटके हुए हैं। महिलाओं के हाथ में जो कला है, वह पुरुषों के हाथ में नहीं हो सकती है। हैंडीक्राफ्ट में 80-90 फीसदी महिलाएं हैं।
उन्होंने बताया कि जूता उद्योग में महिलाएं पहले घरों पर काम करती थीं, फिर फैक्टरी में करने लगीं। उन्हें प्रातः 9 से शाम 6 बजे तक काम करना होता है। चेन्नई में जूता उद्योग में 70-80 फीसदी महिलाएं काम करती हैं और हमारे यहां 10 फीसदी भी नहीं हैं। फैक्टरी में अधिक महिलाएं होती हैं तो उनकी सुरक्षा स्वयमेव हो जाती है और अनुशासन होता है। देश और उद्योग को सशक्त तथा आर्थिक शक्ति बनाना है तो हर कार्य में महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी होनी चाहिए।

किशोर एक्सपोर्ट के दीपक अग्रवाल ने बताया कि उनके यहां फैक्टरी में 80 फीसदी महिलाएं काम करती हैं। संयुक्त राष्ट्र के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि महिलाओं को बराबर की हिस्सेदारी देने में 100 से 130 वर्ष लगेंगे। महिला श्रमिकों के होने से पुरुष श्रमिक अनुशासन में रहते हैं, गाली नहीं देते हैं, बनियान पहनकर काम नहीं करते, यत्र-तत्र थूकते नहीं हैं। महिला के हैंडलिंग में सफाई होती है। महिला की कार्यक्षमता पुरुष से बेहतर है। अगर प्रशिक्षत कर दें तो महिला श्रमिक वंडर कर सकती है।
सामाजिक चिंतक डॉ. मुनीश्वर गुप्ता ने बताया कि नर्सिंग क्षेत्र में 90 फीसदी योगदान महिलाओं का है। अगर महिला घर चला सकती है तो वह कोई सी भी जिम्मेदारी को निभा सकती है। जूता क्षेत्र में महिला आ गई तो क्रांति आ जाएगी।

शिशिर अस्थाना ने बताया कि ग्लोबल कमिटमेंट है कि महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाना है। यह ब्रांड की जरूरत भी है। स्टोनमैन में 30 फीसदी महिला श्रमिक हैं।
प्रदीप वासन, डॉ. सुशील गुप्ता, एफएएफएम के अध्यक्ष कुलदीप सिंह, अशोक अरोड़ा, रानी सरीन, कुसुम महाजन आदि ने इस पहल को सराहा।
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