- न्यायालयों में हो लागू डिजिटल केस प्रबन्धन व्यवस्था
- टेक्नोलॉजी का उपयोग बनायेगा न्यायिक व्यवस्था को सरल व सुगम
- सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका को विचार के लिए किया स्वीकार
डॉ. भानु प्रताप सिंह
Live Story Time, Agra, Uttar Pradesh, India. टेक्नोलॉजी का उपयोग उच्च न्यायालयों व जनपद न्यायालयों में हो ताकि सामान्य व्यक्ति के लिए न्याय सुलभ हो। इस विषय का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका विचार करने के लिए स्वीकार कर ली और केन्द्र सरकार व 25 उच्च न्यायालयों को नोटिस 08 जुलाई को जारी कर दिये। जनहित याचिका संख्या 324 वर्ष 2024 को वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन द्वारा प्रस्तुत किया गया था। जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा की गयी जिसके समक्ष अधिवक्ता जैन ने अपनी बात को रखा।
इलेक्ट्रोनिक निरीक्षण के लिए बने नियमावली
अधिवक्ता जैन द्वारा याचिका में 9 निर्देशों को चाहा है। जिन मामलों में इलेक्ट्रोनिक फाइलिंग के माध्यम से डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड फाइल किया गया है ऐसे डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड का इलेक्ट्रोनिक निरीक्षण करने के लिए सविस्तार नियमावली उच्च न्यायालयों द्वारा अपने लिए व अपने अधिनस्थ न्यायालयों के लिए बनायी जानी चाहिए। वर्तमान में केवल दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ही डिजिटाइज्ड रिकॉर्डस के निरीक्षण हेतु वर्ष 2023 में नियमावली बनायी गयी है। नियमावली न बनाये जाने के अभाव में डिजिटाइज्ड रिकॉर्डस का निरीक्षण नहीं हो पा रहा है। जिस प्रकार रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज के रिकॉर्ड को घर बैठे शुल्क देकर निरीक्षण किया जा सकता है उसी प्रकार हाई कोर्ट व जनपद न्यायालयों के डिजिटाइज्ड रिकॉर्डस को देखने का नियम होना चाहिए। ऐसा होने पर न तो न्यायालय के चक्कर लगाने होंगे और न ही समय खराब होगा।
डिजिटल केस प्रबन्धन व्यवस्था हो प्रभावी
याचिका में डिजिटल केस प्रबन्धन व्यवस्था के सम्बन्ध में भी निदेशों की मांग की गयी है और यह कहा गया है कि जनपद न्यायालयों व उच्च न्यायालय के डिजिटाइज्ड रिकॉर्डस का एकीकरण होना चाहिए और उच्च न्यायालय को फाईल मंगाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। समस्त डिजिटाइज्ड रिकॉर्ड उच्च न्यायालय क्लीक करके ही देखले ताकि अपील, रिवीजन व रिट आदि का निर्णय सरलता व सुगमता से हो सके और जनपद न्यायालय से उच्च न्यायालय को रिकॉर्ड भेजने की आवश्यकता ही न हो। वादकारियों को भी अपील आदि करने में सुविधा होगी। न्यायिक प्रणालीं में डिजिटल केस प्रबन्धन व्यवस्था एक बड़ा बदलाव ला सकेगी।
केस की तिथि के लिए वादकारी को मिले एसएमएस व ईमेल एलर्ट
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ने जब भी किसी मुकदमे में कोई तिथि नियत होती है, तो वादकारी को एसएमएस व ईमेल के माध्यम से सूचना सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री द्वारा भेजी जाती है। ऐसी ही व्यवस्था उच्च न्यायालयों व जनपद न्यायालयों में हो, इसकी मांग अधिवक्ता जैन ने इस जनहित याचिका में की है।
मुकदमों का न्यूट्रल नम्बर हो
उच्च न्यायालय व जनपद न्यायालयों में मुकदमों के तरह-तरह के नाम हैं जो सामान्य व्यक्ति की समझ के परे हैं। तरह-तरह के नामों के स्थान पर न्यूट्रल नम्बर होने चाहिए जैसे की व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों में निर्णयों के सम्बन्ध में प्रारम्भ की गयी है। ऐसे न्यूट्रल नम्बर होने पर डिजिटल केस प्रबन्धन व्यवस्था भी सरलता से लागू की जा सकेगी।
लम्बित मामलों में डिजिटाइजेशन प्राथमिकता पर हो
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जितेन्द्र कुमार रोडे के वर्ष 2023 के निर्णय में यह आदेश किये जा चुके हैं कि जनपद न्यायालय के सभी सिविल व क्रिमिनल मुकदमों की फाइलों की स्कैनिंग हो। अधिवक्ता जैन ने अपनी याचिका में उक्त आदेश के परिप्रेक्ष्य में यह भी मांग की है कि लम्बित मुकदमों की पत्रावलियों को पहले स्कैन किया जाये ताकि मुकदमों की सुनवाई बिना कागजी पत्रावली के स्कैन फाइल से की जा सके। इलाहाबाद उच्च न्यायालय व अन्य उच्च न्यायालयों ने भी करोड़ों की संख्या में निर्णित मुकदमों की पत्रावलियां स्कैन की जा चुकी हैं।
ई-फाईलिंग के लिए देशव्यापी फोरमेटिंग समान होनी चाहिए। जहां सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त दिल्ली व बोम्बे आदि न्यायालयों में ए-4 कागज के साइज का उपयोग होता है, राजस्थान व इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लीगल साइज के पेपर साइज फॉरमेटिंग के लिए आवश्यक है। सभी न्यायालयों में एकरूपता होनी चाहिए।
अब इस मामले में अगली तिथि 27 अगस्त नियत है। अधिवक्ता जैन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निदेश जारी करने पर उच्च न्यायालयों व जनपद न्यायालयों में वादकारी व अधिवक्ताओं को वादों की पैरवी व सुनवाई में सुविधा हो सकेगी।
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