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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. संस्कार भारती, आगरा महानगर, बृज प्रान्त द्वारा प्रथम नमन काव्य गोष्ठी प्रसिद्ध होम्योपैथ चिकित्सक डॉ. कैलाश सारस्वत के क्लीनिक, आवास विकास कालोनी (एंथम के पीछे) आगरा पर आयोजित की गई। कार्यक्रम के अध्यक्ष आर्कीटेक्ट राजीव द्विवेदी, डॉ. कैलाश सारस्वत, वरिष्ठ कवि प्रभुदत्त उपाध्याय, शेष पाल सिंह “शेष”, आचार्य यादराम सिंह वर्मा कविकिंकर, नंद नंदन गर्ग आदि ने मां सरस्वती और इंजीनियर जतिन उपाध्याय (पुत्र प्रभुदत्त उपाध्याय) के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ किया।
डॉक्टर राजेंद्र मिलन ने संक्षिप्त काव्यपाठ किया
सूरज की तरह मैं तो उगा और जीया
सागर की तरह कुछ भी मिला है छक कर पिया
वरिष्ठ कवि डा शेष पाल सिंह “शेष” की कविता करतल ध्वनि के साथ सुनी गई
शाश्वत सिद्धांतमयी,निश्छल मन है अपना।
स्वर्गस्थल अंतस्तल,उज्ज्वल मन है अपना
विषभरा यहीं घट है, पीयूष खोज लेंगे,
वसुधा मधुमय करनी,निर्मल मन है अपना।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि रामेंद्र शर्मा “रवि” ने सरस्वती वन्दना की और भारतीय संस्कृति का परचम इन पंक्तियों के माध्यम से फैलाया
‘मेरा भारत देश महान’
ऋषि मुनियों का देश हमारा
प्यारा भारत देश महान।
सत्य सनातन धर्म हमारा,
भारत माँ की हम संतान।
कवि प्रणव कुमार कुलश्रेष्ठ टूण्डला (फिरोजाबाद) ने काव्यपाठ किया
शहर छोड़ गांव को आया प्रकृति सुंदरी बैठी होगी ।
आया जब से ढूंढ़ रहा हूं किसी अहं में ऐंठी होगी ।
बचपन की पोखर को भागा ताल तलैया मेड़ नहीं थी ।
मिष्ठ सिघाड़े खग कुल सा पहली सी पहचान नहीं थी ।।
महिला एक वहां बैठी थी सोचा उस पर गैंटी होगी ।
शहर छोड़ गांव को आया प्रकृति सुंदरी बैठी होगी ।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ. शशि गुप्ता ने काव्यपाठ किया
लहर लहर लहराता चल,
जीवन गीत सुनाता चल,
नादिया सी मस्ती में झूमकर,
रसभीनी बीन बजाता चल॥
घोर तिमिर की हो आँधी,
निशा घनेरी जाय न फाँदी,
आशाओं के दीप सजाकर,
हर मुश्किल को हराता चल॥
कवि एवं पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह को तालियों से सुना गया
जब मेघ बरसते रह-रह कर,
छाता बन जाती थी अम्मा।
बिजली कड़की काँप गया मैं,
गले लगाती थी अम्मा।।
कवि ब्रजबिहारी लाल “बिरजू” के जोशीले काव्यपाठ को करतल ध्वनियों से सुना गया
ख़ुशामद चापलूसी की किरायेदार होती है।
मुहब्बत दिल की पूंजी की बक़ायेदार होती है।।
बहाने लाख कर लो पर सच्चाई छुप नहीं सकती।
नज़र तो प्यार के जलवों की ताबेदार होती है।।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ. शुभदा पाण्डेय ने काव्यपाठ किया
धान अब पकने को है
पक्षी अपना हिस्सा लेना जानते हैं।
झुकी हुई बालियां महक रही
शाम के गदबेले में।
कवि रवीन्द्र वर्मा को खूब मन से सुना गया
कभी अचानक अपने राही,
जाने कहाँ चले जाते हैं ।
जीवन भर का दुख दे जाते,
लौट नहीं फिर आ पाते हैं।
काव्य गोष्ठी में कवि आचार्य यादराम सिंह किंकर ने कहा
कभी न कभी मिल ही जायेंगे स्रोत अमृत के
संजोकर रखना यह अपनी पवित्र प्यास तुम।
जलाये रखना शुभ साधना की अन्तः ज्योति को
हे पथिक सत्य पथ के होना नहीं निराश तुम।।
साक्षात्कार साध्य का तो आधीन है हरि के रहे
साधन सदा पावन करना सत प्रयास तुम ।।
कर देगा सत चित आनन्दमय वह आनन्दघन
रखना निज अन्तःकरण में उसका निवास तुम।।
उपेंद्र चौहान ने कहा
तुम पूछ रहे परिचय मेरा मैं नदिया का एक किनारा हूं
आंधी ने मुझको झकझोरा पानी का नंद दुलारा हूं।
राजीव क्वात्रा ने बचपन की याद कुछ इस तरह से की
रूठना, मनाना, यारियां, कुट्टियां
हमको भाती बहुत कभी छुट्टियां।
डॉ. नूतन अग्रवाल ज्योति ने प्रेरणादायी कविता सुनाकर सबको करतल ध्वनि के लिए विवश कर दिया- यत्न कर प्रयत्न कर।
डॉक्टर हरवीर सिंह तांतपुरिया ने पुलिस- प्रशासन पर व्यंग पूर्ण कविता पाठ कर दिल जीत लिया।
प्रसिद्ध कवि डॉ. यशोयश ने गीत सुनाया
जिस घर में हम जन्मे थे उसे घर को क्यों छोड़ आए।
संचालन करते हुए चंद्रशेखर शर्मा ने व्यंग्यपूर्ण पंक्तियां पढ़ीं
बदलना किसे कहते हैं, यह हाईस्कूल की परीक्षा में प्रश्न आया
मैं मौसम की जगह अपनों का नाम लिख आया।
मेरे घरवाले रोज गाली खाते हैं,
जाने किस-किस से उधार लेता हूं।
डॉ. केशव शर्मा ने कहा
अब किसे दोष दें और करें हम गिला
भीड़ कितनी मिली पर ना इंसा मिला
लोग चेहरे पर चेहरा चढ़ाते रहे
लोग आते रहे लोग जाते रहे।
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प्रभु दत्त उपाध्याय ने पिता की पीर का वर्णन कुछ इस तरह से किया
इंसान की मौत को तमाशा बना देते हैं लोग,
चार दिन की जिंदगी में क्या रंग दिखलाते हैं लोग।
अच्छे को कभी अच्छा कहते नहीं यह सितमगर,
मरने पर सितमगर को मसीहा बना देते हैं लोग।
मौत पर रोते हैं ऐसे साथ ही मर जाएंगे,
चार दिन में गम ये सारे क्यों भुला देते हैं लोग ।
डॉ. अवधेश उपाध्याय संपादक सेवा प्रसून ने भी पिता की पीर का वर्णन कुछ इस तरह से किया
नयन नीर बह रहा है, नमन भाव कह रहा,
हृदय उठी पीर को धरा तुल्य सह रहा।
वरिष्ठ कवि योगेश
घिस गया इतना कि चंदन हो गया
झुक गया हूं इतना कि वंदन हो गया
छू लिया मैंने तो पारस हो गए तुम,
छू लिया तुमने तो कुंदन हो गया
इंजीनियर हरवीर परमार, हरेश अग्रवाल “ढपोरशंख”, डॉ. रमेश आनंद, विनय बंसल, निवेदिता दिनकर, डॉ. असीम आनन्द, आशीष शर्मा, आचार्य निर्मल (मथुरा), योगेश चन्द्र शर्मा “योगी”, सुमन शर्मा, उमाशंकर “आचार्य”, हरिओम यादव “तिरंगा” , मदनलाल अग्रवाल, ने भी काव्यपाठ किया।
कार्यक्रम का संचालन कवि चंद्रशेखर शर्मा और हरीश अग्रवाल “ढपोरशंख ने किया। संयोजन नन्द नन्दन गर्ग प्रांतीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष संस्कार भारती ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. कैलाश सारस्वत ने किया। दीपक गर्ग और मदनलाल अग्रवाल ने व्यवस्थाएं संभाली।
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