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पीना है तो मेरे पास आओ, प्रेम की मय छक-छक के पिलाऊंगा और मस्त कर दूंगाः दादाजी महाराज

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 7 अप्रैल 2000 को लक्ष्मी पैलेस परिसर सुनाम, जिला संगरूर (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा – वह प्रेम के सागर हैं और इसके लिए स्वामी जी महाराज ने हजूर महाराज को क्या फरमाया- चिट्ठी में लिखा कि तुम्हारे लिए प्रेम के सागर भरे जाते हैं। तुम खूब पियोगे और खूब ही बांटोगे।

जन्म तीसरे मुक्ति पद, चौथे में निज धाम

याद रखो कि स्वामी जी महाराज और हजूर महाराज ने भी एक बात जरूर कही है कि तुम्हारा उद्धार भक्ति के द्वारा ही होगा-

गुरु भक्ति दृढ़ के करो, पीछे और उपाय

बिन गुरु भक्ति मोह जग, कभी न काटा जाए।।

मोटे बंधन जगत के, गुरु भक्ति से काट।

झीने बंधन चित्त के, कटे नाम परताप ।।

मोटे जब लग जाए नहिं, झीने कैसे जायं

ताते सबको चाहिए, नित गुरु भक्त कमायं।।

एक जन्म गुरु भक्ति कर, जन्म दूसरे नाम

जन्म तीसरे मुक्ति पद, चौथे में निज धाम ।।

इसलिए अगर तुम्हारा यह भाव है तो वह गुरु की ओर समर्पित क्यों नहीं होता?

गुरु कौन हो सकता है

अब सवाल है कि गुरु कौन होगा? समझना चाहिए कि जो राधास्वामी दयाल को कुल मालिक माने, राधास्वामी नाम का सुमिरन करता हो,  स्वयं शब्द कमाता होवे, अंतर्मुख भेद बता सके, जो तुम्हें उंगली पकड़ के चला सके और चढ़ा सके वही गुरु हो सकता है। गुरु वह होता है जो नैनों से वार करे और तुम डटे रहो, बचनों से भर-भर के लौट लुटाए और तुम्हारी झोली भर जाए, भूखे आओ और तृप्त हो जाओ, प्यासे आओ और पीके जाओ। पीना है तो मेरे पास आओ। मैं तुम्हें प्रेम की मय छक-छक के पिलाऊंगा और मस्त कर दूंगा।

यहा फैज मैहर के मटके भरे

वह प्रेम के सागर हैं और इसके लिए स्वामी जी महाराज ने हजूर महाराज को क्या फरमाया- चिट्ठी में लिखा कि तुम्हारे लिए प्रेम के सागर भरे जाते हैं। तुम खूब पियोगे और खूब ही बांटोगे। मैं तुम्हें इस देश का पता बताने आया हूं जहां प्रेम की मय खूब पी जाती है और खूब बांटी जाती है। वह मयखाना सतगुरु का द्वारा है। सतगुरु कौन हो सकता है? इसलिए कहा है-

वह मैखाना गुरुद्वारा है

जहां साकी सतगुरु होता ।।

है वह जाम पर जाम पिलाता है

वह प्रेमी पीता जाता है ।।

यहा फैज मैहर के मटके भरे

बड़भागी ही चख पाता है ।।

दाता देता ही जाता है

और मंगता लेता जाता है।।