dadaji maharaj

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज ने बताया कि मालिक किस तरह की सेवा से प्रसन्न होता है

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हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत  (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ( प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर हैं)  जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university Dr Bhimrov ambedkar university agra) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन ( Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी  (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 12 अप्रैल 2000 को प्राथमिक विदयालय परिसर, ग्राम दुर्गापुर, जिला फरीदाबाद, हरियाणा, भारत में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज )Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा – बहुत से लोग अपनी नामवरी की चाह के लिए बड़े-बड़े धर्मार्थ के कार्य करते हैं जैसे- आश्रम, अनाथालय और अस्पताल खुलवाते हैं, लेकिन उनमें अपना नाम खुदवा देते हैं तो यह जो सेवा समाज की करी उसमें अहंकार की बू आती है।


करने को है दीनता डूबन को अभिमान

मालिक को दीनता पसंद है, अहंकार नहीं। जब तक दीनता और धीरज नहीं आएगा तब तक न यहां सुख मिलेगा और न वहां। कहा है कि-

 लेने को सतनाम है देने को अनदान

करने को है दीनता डूबन को अभिमान

अहंकार बुरी चीज

यह अहंकार बुरी चीज है। किसी को गांव का चौधरी बनने पर पद का अहंकार हो जाता है चाहे उसमें कोई गुण न हो। किसी में पैसे के बल पर सब कुछ पाने का अहंकार हो जाता है। कोई गांव में घी-दूध पीकर पहलवान बन जाते हैं और वे पहलवानी का अहंकार करते हैं। किसी को बुद्धि का अहंकार इतना हो जाता है कि वह अपने आपको आलिम फाजिल समझने लगता है- जैसे किसी गांव वाले ने पढ़ाई लिखाई में बहुत डिग्रियां हासिल कर ली और गांव के लोगों पर रौब झाड़ने लगे। ऐसे ही जितने और हुनर वाले हैं सब अपने आप को बहुत समझते हैं और यह अहंकार उनको ले डूबता है। ऐसे अहंकारी जीवों के पास ज्ञान, बुद्धि, धर्म और मर्म आदि कुछ नहीं ठहरता है।

अगर परमार्थ सीखना है तो ये करें

इसलिए मालिक ने कहा है कि अगर परमार्थ सीखना है और दुनिया में नेकी से चलना है तो अहंकार को पास मत आने दो। अगर किसी के पास चार पैसे हैं और वह चुपके से किसी ऐसे व्यक्ति को दे देता है उसके पास कुछ नहीं है और वह उस दिन की मदद को गाता नहीं फिरता, तब उसका यह कार्य ठीक माना जाएगा। अगर आपने किसी को कुछ दिया और उसे गाया तो यह सही नहीं है। इस तरह मालिक आपसे कभी प्रसन्न नहीं हो सकता। बहुत से लोग अपनी नामवरी की चाह के लिए बड़े-बड़े धर्मार्थ के कार्य करते हैं जैसे- आश्रम, अनाथालय और अस्पताल खुलवाते हैं, लेकिन उनमें अपना नाम खुदवा देते हैं तो यह जो सेवा समाज की करी उसमें अहंकार की बू आती है।

अहंकार रहित सेवा मालिक को मंजूर

मालिक को वह सेवा मंजूर मंजूर है अहंकार रहित हो। जो व्यक्ति शालीनता, दीनता और शांति के साथ अपनी बात कहता है या सेवा करता है तो उसकी हर बात सही मानी जाती है। समाज स्वतः ही उसको प्यार और मान्यता देता है।