Dadaji maharaj agra

शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण कौन होते हैं, पढ़िए राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज की व्याख्या

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 4 अप्रैल 2000 को ग्राम जलबेड़ा, जिला फतेहगढ़ साहिब (पंजाब भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- वह तो दाता दयाल हैं और उनकी गोद इतनी विशाल है कि जो कोई भी सच्चा दीन अधीन होकर उनको एक बार भी पुकारेगा तो वह फौरन एक दिन आपको अपनी गोद में बैठने के काबिल कर लेंगे।

लोगों ने नियमों से रहना बंद कर दिया है

आज समाज के अंदर जो बदबू आ गई है उसका कारण यह है कि आप लोगों ने उन नियमों से रहना बंद कर दिया है जो कि आप की पुरानी परंपरा है। कहने का मतलब यह है कि जब तक व्यक्ति एक नियम से बंधा हुआ नहीं होगा तब तक न तो परिवार में शांति रहेगी, न वह समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकेगा, न उसकी प्रतिबद्धता अपने देश के प्रति संभव होगी और न ही वह मनुष्य जाति के लिए कल्याणकारी हो सकता है। यही वजह है कि आज लोग संकट से गुजर रहे हैं। हर व्यक्ति दुखी और चिंतित है। लोग बातें ज्यादा करते हैं करनी कुछ नहीं करते।

झूठा जाति स्वाभिमान

समाज की यह दुर्दशा है कि इंसान कर्म-धर्म से बिल्कुल अलहदा हो गया है और अंधविश्वास, छुआछूत, महिलाओं पर अत्याचार, धनी निर्धन का भेदभाव और जातीयता का अभिमान आदि बुराइयां आ गई है। यह जातीय अभिमान विशेषकर सैनिक जातियों (लड़ाकू कौमों) में इतना था कि उन्होंने आपस में लड़कर अपने आप को इतना कमजोर कर लिया था कि इस देश में विदेशी ताकतों ने अपना पूरा अधिकार जमा कर गुलाम कर दिया। जातिवाद का जहर आजादी के बाद भी चल रहा है। जो दिमाग एक अच्छे काम में लग सकता था वह केवल झूठे जाति स्वाभिमान, मान बड़ाई और झूठी तारीफ में लग कर बर्बाद हो गया। यही कारण है कि आज तक एक शक्तिशाली समाज का निर्माण नहीं हो सका।

मनु स्मृति में क्या

मैं कहना चाहता हूं कि इस जाति व्यवस्था को छोड़ दीजिए। यह जाति व्यवस्था जन्म से नहीं कर्म से थी। जिस मनु की लोग आलोचना करते हैं उसने ही यह जाति व्यवस्था शुरू की थी तो मालूम होना चाहिए कि उसने अपनी स्मृति में साफ लिखा है इंसान शूद्र के रूप में जन्म लेता है। 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य जीवन व्यतीत करके निकलता है तो जो व्यापार करने लगता है वह वैश्य कहलाएगा। जो परिश्रम या मेहनत का काम करेगा वह शूद्र कहलाएगा और इसका मतलब छुआछूत से नहीं है। कोई तलवार या धनुर्विद्या में निपुण होगा तो वह क्षत्रिय कहलाएगा और उसका कर्तव्य अपने समाज की रक्षा करना था। ब्राह्मण से मतलब उससे था जिसने ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो, स्वाध्याय किया हो, अध्यात्म किया हो और थोड़ी बहुत अंतरमुख उपासना करके कुछ शक्ति प्राप्ति हो। यानी उसके मुंह से निकले हुए मंत्रों के उच्चारण करने मात्र से वातावरण शुद्ध हो सके, खिंचाव पैदा हो सके और अंधकार हट सके। (क्रमशः)