dadaji maharaj agra

उद्धार चाहते हो तो शब्दभेदी गुरु के पास जाकर अभ्यास करोः दादाजी महाराज

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 8 अप्रैल 2000 को ऋषि आश्रम परिसर, पटियाला (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा – स्वामी जी महाराज ने कहा है कि कबीर साहब से लेकर तुलसी साहब तक जितने संत, परम संत हुए हैं सबने यही बात कही है कि अगर अपने जीवन का पूरा और सच्चा उद्धार चाहते हो तो अपने वक्त गुरु को ढूंढो और उनके चरनों में प्रीत-प्रतीत का रिश्ता बांधो।


आप पिछले संतो
के घर के हैं

आज वह दिन आ गया है कि जब आपको यह बताया जाए कि आप पिछले संतों के घर के हैं। स्वामी जी महाराज ने दो बचनों में पिछले संतों के घर की बात कही है। उनका मतलब कबीर साहब, तुलसी साहब. दादू साहब, जगजीवन साहब, पलटू साहब आदि सबके मानने वालों से है जिन्होंने असली रीत सुरत-शब्द -योग की तो त्याग दी और ऊपर का जामा पहन लिया। दुनियादारी में वह बर्ताव और तरह-तरह की वही नीतियां जो कि दुनिया में तथा और मतों में जारी हैं अपना ली।

केवल सुखमनी के पाठ से मुक्ति नहीं होगी

हम संतमत पंथी हैं और वेद मत यानी सनातन मत की आलोचना करते हैं कि वे बिना अंतर का भेद जाने हुए देवी-देवताओं को पूजते हैं, मूर्ति पर जल चढ़ाते हैं, तीर्थ-व्रत और अनेक आचार-नियम करते हैं। इसी प्रकार बिना अंतर्मुखी उपासना के केवल कबीर साहब को साहब-साहब कहकर चिल्लाने से उद्धार नहीं होगा। केवल सुखमनी के पाठ से मुक्ति नहीं होगी।

शब्द भेदी गुरु

गुरु ग्रंथ साहब, संतो, साधों और भक्तों के बचन, पद और उनके शब्द के संग्रह से बनाया गया है ताकि इनके पढ़ने से मालिक का प्रेम जागे, वक्त के संत सतगुरु की खोज के लिए अभिलाषा उठे, तड़प और विरह हो। इसमें शब्द का भेद लिखा है तो यदि किसी शब्दभेदी गुरु के पास जाकर अभ्यास करने का तरीका सीखोगे, कुछ रियाज करोगे, उनके अनुभव से कुछ फायदा उठाओगे, पहचानोगे, परखोगे, निरखोगे तब यह समझोगे कि अनुभव क्या होता है और फिर जानोगे कि वह मालिक कहां बैठा है और उसको कहां तलाश करना चाहिए।

गुरु ग्रंथ साहिब में क्या है

संपूर्ण गुरु ग्रंथ साहिब में शब्द की महिमा गाई गई है पर ग्रंथ को गुरु मानने वाले कितने हैं जो शब्द की खोज करते हैं। उस शब्द का जिसका जिक्र गुरु नानक साहब ने किया है उसको पाने की कभी तलाश भी की है। स्वामी जी महाराज फरमाते हैं कि ग्रंथ से गवाही मिल सकती है पर मार्ग हाथ नहीं आ सकता। मार्ग का भेदी देहधारी गुरु होगा। स्वामी जी महाराज ने कहा है कि कबीर साहब से लेकर तुलसी साहब तक जितने संत, परम संत हुए हैं सबने यही बात कही है कि अगर अपने जीवन का पूरा और सच्चा उद्धार चाहते हो तो अपने वक्त गुरु को ढूंढो और उनके चरनों में प्रीत-प्रतीत का रिश्ता बांधो। किसी ने यह नहीं कहा कि उन्होंने जो ग्रंथ लिखे हैं उनको पोट बांधकर उसी को गुरु मानने लगो। ग्रंथ गुरु नहीं हो सकता, ग्रंथ में गुरु का भेद जरूर मिल सकता है। (क्रमशः)