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राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज किसके हाथ का छुआ खाना नहीं खाते, पढ़िए रोचक जानकारी

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 3 अप्रैल 2000 को पंजोर गार्डन, कालका, पंचकूला (हरियाणा, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- कालका के उन सब वासियों को भी बता देना चाहता हूं जो संतमत की तरफ रुजू नहीं करते हैं कि यदि वह यह आदत है नहीं छोड़ेंगे तो बहुत पिछड़ जाएंगे और उनका हमेशा आर्थिक शोषण ही होता रहेगा, उन्नति और प्रगति नहीं हो सकती।

ये आदतें छोड़ दो

राधास्वामी मत में तुम्हारी घर गृहस्थी नहीं छुड़ाई जाती है। रोजगार नहीं छुड़ाया जाता है। सिर्फ यही तो पाबंदियां लगाई जाती हैं कि गोश्त, अंडा और शराब का सेवन मत करो। एक सत्संगी के घर के होकर तुम लोग यह सब नाजायज काम करते हो तो समझ लेना कि मालिक तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा। जो इस शहर के ऊपर सदमे हो रहे हैं उसका मुख्य कारण यही है कि गंदी सोहबत में तुम लोगों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है और मलीनता आ गई है। यह तो परमार्थी बात है, मैं कहता हूं इससे स्वार्थ भी नहीं बनता। कालका के उन सब वासियों को भी बता देना चाहता हूं जो संतमत की तरफ रुजू नहीं करते हैं कि यदि वह यह आदत है नहीं छोड़ेंगे तो बहुत पिछड़ जाएंगे और उनका हमेशा आर्थिक शोषण ही होता रहेगा, उन्नति और प्रगति नहीं हो सकती।

मैं आऊं तो क्यों, ठहरूं तो क्यों, रुकूं तो क्यों?

अगर मुझ को खाना खिलाना है तो मैं खाना उन्हीं हाथों से खाना चाहता हूं जो इन चीजों को नहीं छूते हैं। एक बात समझ लो कि मैं तुम्हें रग-रग से जानता हूं और तुम्हारी हर धड़कन को समझता हूं। मैं यहां आकर रह सकता था लेकिन किस के बूते, जीर्ण शीर्ण महिलाओं तक की रखवाली और सेवा तो नहीं की तुमने। जब तुम हमारे प्रेमी और प्रेमिनों की सेवा नहीं कर ,सकते उनको आदर और सत्कार नहीं दे सकते और उनको बड़ा मानने के लिए तैयार नहीं हो तो मैं आऊं तो क्यों, ठहरूं तो क्यों, रुकूं तो क्यों?

इस गंदी सोबत से बचना पड़ेगा

मैं यह कहना चाहता हूं कि अगर तुम अपना स्वार्थ संभालना चाहते हो और परमार्थ को वास्तविक तौर पर बनाना चाहते हो तो तुम को इस गंदी सोबत से बचना पड़ेगा। मान लिया कि सुरा का प्रचलन सारे हरियाणा में हो रहा है तो इसमें यह कालका ही सबसे आगे क्यों है। आर्थिक उत्पादन में आगे क्यों नहीं है। बड़े बड़े अफसर यहां से क्यों नहीं निकलते। यहां पर राजनीति में कोई खास काम क्यों नहीं किया। क्यों पिछड़े हुए हो- क्योंकि यहां पर अधिकांश नवयुवक पढ़ना तो बाद में सीखते हैं कि पीना पहले सीख जाते हैं और उससे सारे खानदान की खाना खराबी होती है। (क्रमशः)