soamiji maharaj

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -64: सत्संग में आपको शुद्ध किया जाता है

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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एक चीज हर जगह घुसी है और वह है कपट। बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और। बड़ी मुश्किल है एक खोजी के लिए, एक दर्दी के लिए सच और झूठ को पहचानना और फिर झूठ को छोड़कर सच का साथ करना। यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए उन्होंने कह दिया कि यह मेहर और दया उस पर होगी जो सच्चा खोजी है, जिसका सच्चा इरादा अपना उद्धार कराने का है, जो दुनिया से आजिज है, जो यहां के सुख को भी दुख रूप देखता है, उसको जरूर मालिक प्रेरणा भी देते हैं, ठीक जगह पर भी पहुंचा देते हैं। इसके लिए अपने व्यवहार में शालीनता, सद्व्यवहार लाना चाहिए, यह पहली बात है। दूसरी बात यह है कि जब उन्होंने कहा कि सुमिरन, ध्यान और भजन करना होगा तो हमें करना चाहिए। अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण भी रखना पड़ेगा। तीसरी बात, जो काग है वह हंस नहीं हो सकता। कहने का मतलब यह है कि हर तरह के जीव जो सच्चे उद्धार के गाहक हैं, वह चाहे किसी भी जाति के हों. किसी भी वर्ण के हों, उन सबके लिए सत्संग का घाट बनाया गया है। घाट का मतलब क्या है- जहां मैले कपड़े साफ होते हैं, कर्म साफ होते हैं, स्वच्छ किया जाता है। सत्संग में आपको शुद्ध किया जाता है, उससे भी आपको पवित्र किया जाता है। आपको परमार्थी बनाया जाता है।

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पवित्र स्थानों की कितनी महिमा है और उन स्थानों पर जाकर क्या करना चाहिए? वहां मूर्ति की तरह मत्था टेका और चले आए, ऐसे नहीं मत्था टेका जाता है। मन और चित्त को जोड़िए, फिर सहूलियत से चरनों में मत्था टेकिए। जो इबादत की जगह है वहां पर प्रेम के शहंशाह विराजते हैं। वहां पर हमको बहुत अदब से जाना चाहिए। वहां शोरगुल का क्या काम है? ऐसी जगह पर नियम अपने आप बनते हैं और नियम बने हुए हैं। उन नियमों का पालन कीजिए। अभ्यास करिए और फिर जो प्रीत और प्रतीत अंतर में आपको मिले, उसको मानिए, समझिए व विचारिए। नजदीकी वो है जो सुरत से होती है। यहां पर सुरत को जगाने की बात है, जो सोई है, जो मन के अधीन हो रही है, जो माया के जाल में फंसी है, उसको निकालने के लिए राधास्वामी दयाल आए हैं और उसको पूरा करने के लिए भक्ति ही बताई है, दीनता ही सिखाई है। एक सत्संगी की पहचान दीनता से होनी चाहिए।