dadaji maharaj

राधास्वामी मत गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -89: राधास्वामी नाम जो भी लेगा उसका फायदा होगा

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(89)

राधास्वामी नाम जो भी लेगा उसका फायदा होगा। दुनियादार भी लेंगे तो उनको भी किसी कदर फायदा होगा। इसलिए राधास्वामी नाम लीजिए। आपस में एक दूसरे से मिलिए तो राधास्वामी कहिए और इतनी आवाज जरूर हो कि मालूम पड़े कि आप राधास्वामी कह रहे हैं। जो राधास्वामी नाम का सुमिरन करेगा उसका उद्धार निश्चित होगा। इसलिए पहले राधास्वामी नाम का ध्यान करने का अभ्यास करो फिर राधास्वामी नाम मुँह से लेने का अभ्यास करो। जो मुँह से निकले वह सुनाई देना चाहिए। आपस में सिर हिलाने से काम नहीं चलेगा। मुँह से राधास्वामी कहना होगा। पहले राधास्वामी कहो, फिर राधा कहते ही स्वामी खुद-ब-खुद निकलेगा, लेकिन इस एकता को तब पहचानोगे जब नाम को खूब पका लोगे। इसलिए राधास्वामी नाम का सुमिरन लगातार करो। सतसंग में आओ, कुछ दिन ठहरो. सीखने और रोकने के इरादे से आओ।

(88)

सबको सतसंग करना चाहिए और गुरुद्वारे में सतसंग करने से सब को दोगुना और चौगुना लाभ होता है। जब कभी सुविधा हो गुरुद्वारे आना चाहिए। खासतौर पर भंडारों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। यह इरादा रखना चाहिए कि भंडारे पर हाजिरी जरूर देंगे। ऐसा करने से मालिक और भी अधिक प्रसन्न होते हैं। इसलिए अधिक से अधिक सतसंग करो। बचन या बानी को चित्त लगाकर पढ़ो और सुनो। पाठ पर जोर दिया है। नाम के सिमरन पर जोर दिया है और गुरुद्वारे में जो सतसंग हो रहा है उसके करने पर जोर दिया है। इससे संशय और भ्रम दूर होते हैं। गलतफहमियां दूर होती हैं। यह भी पता लगता है कि आपको कितना काम गृहस्थ का करना चाहिए कितना समय परमार्थी कार्यवाही में लगाना चाहिए। जब सतसंग में गुरुद्वारे में आते हैं तो अधिक से अधिक समय सतसंग में ही खर्च करना चाहिए।