Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -20: इस तरह अपने पूरे परिवार का कल्याण कर सकते हैं

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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मोटी सी बात यह है कि प्रीत और प्रतीत लगानी चाहिए दृढ़ता के साथ। कोई रिश्ता बना लीजिए वह इतना महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन प्रीत लगाइए पक्की। लेकिन जो दुविधा में रहता है कि कभी यह-कभी वो, कभी यहां- कभी वहां, कभी इधर- कभी उधर तो कभी किसी जगह पर ठहराऊ नहीं रहते, क्योंकि वह बुद्धिबिलास करता है और यहां भक्ति में बुद्धिबिलास नहीं है। लेकिन यह लोगों का ख्याल है कि भक्ति निष्क्रिय बनाती है, मैं कहता हूँ कि भक्ति और सक्रिय बनाती है, लेकिन भक्ति किसकी करनी चाहिए यह महत्वपूर्ण है, अपने समकालीन गुरु की भक्ति कीजिए जो कि आपको सच्चा ज्ञान दे सके, उपदेश दे सके, आज की परिस्थिति में यह बता सके कि यह करो या मत करो, जो निर्देश दे सके। इसलिए राधास्वामी मत में समकालीन गुरु का महत्व है कि वह जैसा समय जैसी परिस्थिति देखेंगे और जितनी आपकी क्षमता होगी उसको भी वह तौलते हैं, उसके अनुसार वह आपके दुनियादारी के कामों में भी मददगार हैं और आपके परमार्थी कल्याण का तो उन्होंने ठेका लिया है। एक दिन सबका उद्धार होगा यह तो निश्चय जानिए लेकिन जो कुछ भी कर्जा देना है, कर्जा तो उतारना है, जो काल का कर्जा है, कर्म है, लेकिन उसके लिए कह दिया गया है कि सूली का कांटा करके उतार देंगे, यह कह दिया है कि मन भर का एक छँटाक कर देंगे, कहीं-कहीं एक रत्ती भी कह दिया है। लेकिन मानना अपने गुरु को है, भक्ति मार्ग को दीनता को अपनाना है पहले। अगर आप दृढ़ता कर लें और राधास्वामी नाम का सुमिरन करें और अपने गुरु को पूरे तौर पर मान लें तो आप अपना और अपने पूरे कुटुंब-परिवार का कल्याण करा सकते हैं।

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अगर आपको सच्चा परमार्थ मिल गया है, आपको राधास्वामी दयाल में पूरा विश्वास आ गया है और आप थोड़ी बहुत सी प्रीत और प्रतीत अपने गुरु से करने लगते हैं तो फिर निंदकों और दुनियादारों की चिंता मत कीजिए, क्योंकि जो कुछ भी वह कहते हैं वह कीचड़ से सनी होती है। उसमें उनका अपना स्वार्थ और मतलब होता है। वह समझ नहीं सकते कि भक्ति की रीत कैसी है। यह बात नहीं है कि भक्ति नहीं सिखाई है या भक्ति की रीत उन लोगों ने नहीं पढ़ी है जिन्होंने की रामायण पढ़ी है या जो कथा कहलाते हैं। वह भक्त नहीं हैं तो क्या है, भक्तों की रीत तो समझते हैं लेकिन दिशा बिगड़ी हुई है। मंदिरों- मूर्तियों और तीर्थों की तरफ ध्यान ज्यादा है तो फिर आजकल तो ऐसा युग आ गया है कि जिसमें परमार्थ की कोई अहमियत ही नहीं है। ज्यादातर नवयुवक और युवतियां ऐसे पैदा हो गए हैं कि जो मालिक को नहीं मानते और ना उनका डर तथा खौफ रह गया है, उसकी वजह से फिर क्या होता है- वह करतूतें होती है जो हो रही हैं आजकल। बच्चे आजकल के अनसमझ हैं या कि इस तरह से उनको साम्यवाद जहर की तरह घोट कर दिया गया है कि वह सौम्यवाद को भूल गए हैं, समन्वयवाद बात को भूल गए हैं।