Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -23: गुरु के दर्शन करने से क्या होता है

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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अपने प्रीतम से प्यार कीजिए, प्यार करना सीखो और यह तो दात है। जैसी-जैसी प्रीत और प्रतीत अपने गुरु के अंदर आपकी बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे आपको उनकी कदर और पहचान अंतर में आवेगी। उनके बाहर के आचरण से भी आपको पता लगेगा कि वह अपने आप में मगन रहते हैं और दुनिया की हालातों में विचलित नहीं होते। एक संतुलन बनाए रखते हैं। यह बिना मालिक के चरनों को प्रेम पैदा हुए नहीं होता। इसलिए सब की प्रीत और प्रतीत राधास्वामी दयाल के चरनों में दृढ़ और मजबूत होनी चाहिए, नंबर एक, और अपने गुरु के साथ जितना हो सके प्रेमभाव कीजिए और वह जो उनसे प्रेम करते हैं या प्यार करने की कोशिश करते हैं उनको भी अपना मित्र समझिए। दुनिया में इसका उल्टा है। दुनिया में ईर्ष्या और विरोध पैदा होता है और वह गंदी प्रवृत्तियों की ओर जाता है, खोट पैदा होता है और खोट जब पैदा होता है, तब उससे नाकिस से नाकिस कर्म बन जाते हैं। इसलिए उन सबको जो राधास्वामी दयाल की चरन शरन में आए हैं और जिनको अपने गुरु से थोड़ी बहुत भी प्रीत हुई है. तो फिर उनको प्रीतम समझिए, सर्व ज्ञान का भंडार समझिए। उनकी नजर तो हमेशा प्रेम भरी है, वह तो प्रेम के साक्षात अवतार हैं। जो उनके साथ प्रीत और प्रतीत लगाएंगे तो फिर स्वयं अपने आप में परिवर्तन महसूस करेंगे। हैवानियत की वृत्तियां धीरे-धीरे नष्ट होती जाएंगी और एक दिन आप निर्मल हो जाएंगे। इसी तरह से संसार की चाहें भी धीरे-धीरे कम होती जाएंगी और एक अपने गुरु के अलावा, उनके दर्शन के अलावा और कोई चाह बाकी नहीं रहेगी। यह सब सतसंग से होगा। भजन सुनने से होगा। सबसे बढ़कर उनके दर्शन करने से होगा। अपने आप को उनके हवाले करने से होगा। जैसा भी कहें उसमें राजी, जैसा वह करें उसमें राजी, रजामंदी आपसे आप पैदा होती है। तो यह दात है और उस दात को पाने के लिए थोड़ा सा उनका डर और अदब जरूरी है। उनका डर, उनके साथ उनके साथ प्रीत और प्रतीत, यह वह गुण हैं जिन्हें एक सतसंगी को सतसंग करने के साथ ग्रहण करना चाहिए।

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चिंता यह करनी है कि राधास्वामी दयाल की नजर-ए इनायत बनी रहे। उनकी प्रसन्नता का हमेशा ख्याल रखना चाहिए,क्योंकि

गुरु राजी तो कर्ता राजी, कालक्रम की चले ना बाजी

इसलिए मैं तो आप लोगों से यही कहना चाहता हूँ कि राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रीत और प्रतीत को मजबूत रखिए और जो होता है उसको मालिक की मौज से होने दीजिए। मौज हमेशा मासिक होती है आप के अंतर में, वह बता देते हैं कि यह काम करो और यह ना करो लेकिन मन उसको दबाता है। आपको मन पर नियंत्रण रखना है और बिना मन पर नियंत्रण रखे हुए सुरत जो दबी हुई है निकलेगी कैसे- राधास्वामी नाम के सुमिरन से सुरत निकलेगी। इसलिए महिमा कीजिए, राधास्वामी नाम लीजिए, चिंता मत कीजिए, गुरु से प्रीत कीजिए, जिससे जितना अभ्यास बन सकता है वह अभ्यास कीजिए, पोथी का पाठ कीजिए, चर्चा कीजिए परमार्थी, इसके लिए जितना समय निकाल सकते हैं निकालिए। राधास्वामी नाम से ज्यादा ताकत की कोई चीज है नहीं। राधास्वामी हमारा मित्र, राधास्वामी हमारा मंत्र, राधास्वामी हमारा सखा है और राधास्वामी ही हमारा सिद्ध है। पहले मुंह से बोलिए राधास्वामी, राधास्वामी कहिए और फिर समझिए कि वह हमेशा आपके साथ हैं, फिर क्या बात है। यही प्रेमी-प्रीतम का मिलन है।

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तुम लोग जानते नहीं हो कि कितनी कैफियत है राधास्वामी नाम की। मैं तो उनसे भी कहता हूं जिनको कि पूरा -पूरा विश्वास नहीं है। अरे नाम लेकर देखो अगर दृढ़ता न आए तो कहना। एक बात और, सतसंगियों में विरोध का भाव कभी नहीं आना चाहिए। हमारा कोई विरोधी नहीं है। इसलिए लड़ाई झगड़ा, व्यर्थ के वाद-विवाद से बचकर रहना चाहिए। इतना समय जो इन चीजों में खर्च किया जाए वह क्यों न पोथी पढ़ने में, अपने मन और इंद्रियों को रोकने का अभ्यास करने में, ध्यान करने में, शब्द का श्रवण करने में और नहीं तो अपने गुरु की किसी बात के ऊपर बातचीत कर सकते हो। कौन ऐसा है कि जिसको अपने-अपने अनुभव नहीं हुए हैं। कुछ न कुछ तो खिंचाव होगा, बिना खिंचे कोई नहीं आता। दुनिया और दुनियादारी में सिवाय धोखे के और असफलता के कुछ नहीं रखा है। जो सफलताएं मिलती हैं वह भी स्थाई नहीं होती। अंत समय पर कोई चीज, न तुम्हारी विद्या, ना तुम्हारा हुनर, न तुम्हारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण काम आएगा, अगर कोई काम आएगा तो मालिक आएगा। काल कर्म से तुमको बचाकर अपनी गोद में मालिक ले जाएंगे। इसका विश्वास कर सकते हो तो मेरी बात को मान लो, अगर आप प्रीत बढ़ाएंगे तो मालिक आपको प्रेम की दात बख्शेंगे।