राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।
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अब अपनी फिक्र करो। राधास्वामी नाम को मानना, स्वामी जी महाराज को मानना, हजूर महाराज को मानना यह एक बात है। उसके बाद अब तुम्हारा काम समकालीन अभ्यासी गुरु से चलेगा। बिना उसके काम नहीं चल सकता। कब तक टेक में पड़े रहोगे। स्वामी जी महाराज ने सेवाबानी में वर्णन किया है तो सेवा किसकी करेंगे? जब तक स्वामी नहीं होगा तब तक सेवा किसकी की जाएगी? भक्ति करने के लिए भगवंत चाहिए और भक्त चाहिए। इसलिए कब तक अटकते रहोगे और भटकते रहोगे? क्या मिला है सिवाय दुख के? लेकिन अब भी नहीं चेतते हैं, टेक बांधे पड़े हैं। कैसे समझाया जाए जो सच्चा मददगार है वह आपसे कोई बात कड़वी कहना नहीं चाहता है जो आपको तकलीफ पहुंचाए। वो तो इशारे में बात करते हैं लेकिन समय पर इशारा समझ लेना चाहिए। कई पीढ़ियां ऐसी निकल गई जिनको कि गुरु देखने को ही नहीं मिला और इस बात पर गर्व करते हैं कि चार वक्त का सत्संग हो रहा है। तुम दिनभर सतसंग करो, किसने मना किया है। दुनियादार भी अखंड पाठ करते हैं तो करते चले जाते हैं, तुम कौन सी अचरज की बात कर रहे हो। तुम दुनियादारों को ढोंगी कहते हो, क्यों? उनके अंदर भाव तो है, भक्ति तो है, सिर्फ यही है कि वह यह नहीं जानते हैं कि भक्ति कहां करनी चाहिए तो वह तुम भी नहीं जानते हो। तुम भी किसी न किसी की टेक बांधे बैठे हुए हो. जिसको आंख से नहीं देखा। क्या विशेषता है तुम्हारे अंदर? हां, जिन्होंने दर्शन किए हैं, जिन्होंने संग किया है, वो तो ठीक है, उनकी तो मदद पूरी और पक्की है, लेकिन जिन्होंने सिर्फ कहानियां सुनी हैं, कथाएं सुनी हैं और संग उन साधों का या भक्तों का नहीं किया है, तो सिर्फ उससे नजीर तो मिल सकती है कि रैल भक्ति करनी है, लेकिन मार्ग हाथ तभी आएगा जबकि अपने समय के गुरु को ढूंढ लेंगे, उनकी सेवा करेंगे, उनके भजन सुनेंगे, अपने संशय और भरम दूर करेंगे।
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यहां सिर्फ मन के अड़ंगे हैं। मन जो है वह आपको कांटो में घसीटता है। वह नहीं चाहता कि सुरत उसके हाथ से निकले। न मन चाहता है, न माया चाहती है, न काल चाहता है। वह घसीटे रखना चाहता है। वह आपको फंसाए रखना चाहता है। यह तो राधास्वामी दयाल ने आकर राधास्वामी नाम प्रकट किया और सुरत-शब्द-योग का मार्ग बताया, यह भी कहा गया कि सिर्फ चंद दिनों का अभ्यास करने से उद्धार का सिलसिला जारी हो जाएगा, एक दिन आप निज घर में पहुंचा दिए जाएंगे। तो इस बात पर क्यों नहीं यकीन किया जाता? दुनियादारों की बात को तरजीह देते हैं, संतों की बात को नहीं मानते हैं और बाद में वही कारगर सिद्ध होती है। तो फिर अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत। अरे समय पर चेतो, जो समय मिला है उसका सदुपयोग करो।
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