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राधास्वामी मत गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -87: कम बोलने से कई फायदे

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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अव्वल तो फालतू समय में गृहस्थ के अलावा चुप रहने की आदत डालो तो सबसे बेहतर है। थोड़ा बोलने के ऊपर नियंत्रण करना चाहिए। कम बोलने से कई फायदे होते हैं। एक तो कोई अनर्गल बात मुँह से नहीं निकलने पाती, दूसरे खामख्वाह की किसी की निंदा या स्तुति से बचाव हो जाता है, तीसरे बहुत ज्यादा बातचीत करने से खामख्वाह प्रीत या बंधन किसी शख्स में होता है। कभी-कभी ऐसे गंदे लोगों का संग हो जाता है कि उनका असर इतना खतरनाक होता है कि वह न तुम्हारा भजन बनने देगा और न तुम्हारा सुमिरन बनने देगा। आखिर मन को एकाग्र करना इतना आसान नहीं है। हर जगह से खिंचाव होना है। जहां भी सुरत बैठी हुई है वहां से उसके स्थान असली पर पहुंचाना बहुत टेढ़ी खीर है। इसके बाद धुन को सुनना और फिर थोड़ी बहुत चढ़ाई करना यह तो बिना संत सतगुरु की मदद के हो ही नहीं सकता। इसलिए अपने समय का ख्याल रखना चाहिए। ऐसी परमार्थी चर्चा जिसमें किसी की निंदा स्तुति हो वह भी बेकार है। परमार्थी चर्चा का भी ढंग है। परमार्थी चर्चा वह है जिसमें राधास्वामी दयाल की महिमा के सिवाय और कोई दूसरी बात ना हो, जिसमें अपने वक्त के गुरु की महिमा का बखान हो, उसमें भी संत सतगुरु द्वारा स्वयं पर की गई मेहर का बहुत ही कम जिक्र करो क्योंकि तुमको बख्शी गई चीज तुम्हारी है और उसको तुम अपने से अलहदा मत करो। जो सुनने वाले हैं उनका कोई भरोसा नहीं है। वह तुमसे परमार्थी चीज ले जाएंगे और उसका कोई उपयोग भी नहीं करेंगे। इसलिए उमंग और जोश अगर बढ़े तो उसको हजम करने की आदत डालो। जितनी बाहरमुखी बातें हैं उनसे अपना बचाव करो।

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हमको इरादा मजबूत इस बात का रखना है कि एक दिन राधास्वामी धाम मालिक कुल के चरनों में पहुंचा जाए और उसके लिए हमको सतगुरु की खोज करनी है। इसीलिए वक्त के सतगुरु की बात कही गई है। वक्त के सतगुरु से प्रीत होगी तो वक्त का सद्गुरु वही होगा और वही हो सकता है जो पहले आपकी प्रीत और प्रतीत राधास्वामी दयाल के चरनों में दृढ़ करवावे। जो राधास्वामी दयाल के चरनों में आपकी प्रीत और प्रतीत दृढ़ नहीं करवाता, जो अपने गुरु की महिमा नहीं गाता, क्या वह गुरु पदवी के लायक हो सकता है? जो अपने बलबूते चलेगा वह मारा जाएगा। सच्ची दीनता रखनी पड़ेगी। गुरु से प्रेम रखना पड़ेगा। प्रीत और प्रतीत पूरी और पक्की नहीं होगी तब तक काम नहीं चलेगा।

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