Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -18: सतसंगियों के सामने लक्ष्मण रेखा

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(18)

तुम्हारे पास अपार शक्ति होते हुए, तुम्हारे पास राधास्वामी दयाल की खबर होते हुए, तुमको अपने उद्धार का रास्ता मालूम होते हुए भी उस रास्ते से विलग होना शोभा नहीं देता। कितनी बड़ी नियमत हम लोगों की मिली हुई है, रक्षा कवच हम लोगों को मिला हुआ है, रक्षा का साया हमको मिला हुआ है, फिर हम उस साये को छोड़कर क्यों इधर-उधर घूमते हैं। यह अच्छी तरह जान लो कि तुम सुरक्षित हो बशर्ते कि तुम उस सुरक्षा कवच के अंदर रहो बाहर नहीं। तुम्हारे सामने लक्ष्मण रेखा भी है। तुम लोग समझ लो उस लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करने दिया जाएगा। समझना चाहिए कि बेईमानी और मनमानी आधुनिकता मंजूर नहीं है। आधुनिकता आती है विचारों से, आधुनिकता आती है दृष्टिकोण से, आधुनिकता आती है दूसरों के साथ रहम दिली दिखाने से। वास्तविकता यहां की संकीर्णता से निकल भागना है, सत्संग में लगना है और इसी काम के लिए कुल मालिक राधास्वामी दयाल आए हैं और अपनी चरन सरन में ले रहे हैं। धीरे-धीरे सबका उद्धार करने को कहा है। जगत का उद्धार मांगा है तो जगत का उद्धार होगा लेकिन जीव को अपना आचरण सुधारना होगा।

(17)

अपने आप को सुधारने की कोशिश करो। देखो कि क्या कमियां हमारे अंदर मौजूद हैं और उनको दूर करिए। इसके लिए अधिक से अधिक सतसंग करना, बचन सुनना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि बाहर का समाज और खासतौर से उनको जिनको बहुत सफर करना पड़ता है एक जगह से दूसरी और तीसरी जगह, उनको मैं हिदायत देता हूँ कि ठहरने की जगह से लेकर खाने की जगह तक में बड़ा फर्क है। इसलिए सोच -समझकर बाहर खाना -पीना चाहिए। उन मलीन हाथों से खाना खाना, तो वह मलीनता खाने के साथ आपके अंदर आती है और मलीनता सिर्फ गंदगी को नहीं कहते हैं, वह तो सबको चाहिए कि स्वस्थ रहें और स्वच्छ रहें, लेकिन जो भाव से आती है, अगर उसके अंदर गंदे स्वभाव हैं, अगर वह सिर्फ संकीर्ण है तो संकीर्णता आपके अंदर आएगी। प्रार्थना मालिक से करनी चाहिए कि हमारी रोजी-रोटी आपकी दी हुई है और अपने काम को मेहनत से करना चाहिए। कोई काम ऐसा न कीजिए जो नीति विरुद्ध है, किसी भी अनैतिक काम में चाहे कितना ही लालच आपको मिले। मैं सतसंगियों को यह हिदायत देना चाहता हूं कि नित सुमिरन, ध्यान और भजन करो। वक्त के गुरु का संग करो और नई ऊर्जा लेकर जाओ। फिर दिल में जरा भी लालच नहीं आ सकता। अपने काम पर मुस्तैद रहो, जो कुछ तुम पाओगे अपनी मेहनत के बदले में वह हमेशा सुखालू होगा। यह पैसा जो दूसरों का लोग लेते हैं आज तक तो किसी के पास टिका नहीं है। इसलिए मत दीजिए, मत लीजिए। यह समझ लें कि यह जो हरकत कर रहे हैं, उनको मालिक के सामने खड़ा होना पड़ेगा, इसलिए हुक्म है कि हमको अपनी ईमानदारी की खानी है और दूसरों को भी खिलाना है।