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राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -28: प्रत्येक सतसंगी का कर्तव्य क्या है?

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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संत जो बचन जिस समय भी फरमाते हैं वह हर समय के लिए सही होता है क्योंकि संत अपनी देखी कहते हैं। संत सत्त देश से आते हैं और उनका एक उद्देश्य केवल जीवों के उद्धार के अलावा और कोई नहीं है। वह जिस किसी तरह से भी चाहें जीव के उद्धार के निमित्त कार्रवाई करते हैं, चाहे देखने में वह बच्चों का खेल मालूम पड़े, रर उनका उद्देश्य फर्क है कि, वह प्यार करके. बच्चों की तरह उसको खिलौने लाकर, उनका मन बहला कर, उसको अपनी गोद में बैठा कर, उसके ऊपर दया का हाथ रखकर, प्यार की बोली बोलकर उसका उद्धार करते हैं। जरूरत पड़े तो थोड़ी बहुत गढ़त कर देते हैं। वह मां का काम भी करते हैं और पिता का काम भी करते हैं और उस्ताद का काम भी करते हैं और सच्ची सोहबत यानी सामाजिक व्यवहार भी दिखा देते हैं। इसलिए कहा है कि संत दयाल गृहस्थी में रहते हैं। रोजमर्रा की जो तकलीफें साधारण आदमी को होती हैं वह भी धारण करते हैं, ऊपरी चिंता भी दिखा देते हैं लेकिन काल और माया उनसे डरते हैं और उनके हुक्म से घबराते हैं और उनके जीवों के रास्ते में रुकावट पैदा नहीं करते बल्कि उनकी मदद को तैयार रहते हैं। तो संत सतगुरु का मुकाबला किसी से कैसे हो सकता है। उनका उद्देश्य जीव का सच्चा कल्याण करना है। वो आए ङी इसीलिए हैं, इसलिए राधास्वामी दयाल के बचनों को पढ़ना और गौर से उनको समझना हर सत्संगी का कर्तव्य हो जाता है। जब उन्होंने फरमाया कि बानी का रोजमर्रा बिला नागा पाठ करो तो करो, जब उन्होंने कहा कि रोज गुरु स्वरूप का ध्यान करो तो करो, उन्होंने कहा कि राधास्वामी नाम का सुमिरन चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते करो तो करो। जब वो चाहते हैं आओ और जरा रहो हमारे पास तो आओ और फिर रहो न उनके पास, जितना सिखाना चाहते हैं वह सिखा देंगे।

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सतसंगी का चोला छूटता है, उसकी मृत्यु नहीं होती। जो साध और संत हैं वह अपने आप चोला छोड़ते हैं। उनके लिए कहा जाता है चोला छोड़ना और सत्संगी के लिए कहते हैं चोला छूटना। उनके लिए मरने शब्द का इस्तेमाल करना बंद कर दीजिए। कुछ तो फर्क रखिए। वो जन्म-मरन से रहित है। उन्हें एक दिन निजधाम में पहुंचाया जाएगा और ऐसे प्रेमी अभ्यार्थियों का उन लोगों के यहां तो तीन युग में 20 -25 ही हैं और यहां पर राधास्वामी दयाल ने कितने बना दिए हैं और कितनों का काम कर दिया है उसका कोई ठिकाना नहीं है। कितने जीव चरनों में आए, कितने तो पशु पक्षी थे, वह नर बन गए, जो नर थे वह सतसंगी बन गए, जो सत्संगी थे, वह अभ्यासी बन गए, जो अभ्यासी थे वे प्रेमी अभ्यासी बन गए, जो प्रेमी अभ्यासी थे वह साध बन गए, होनहार संत बन गए, मालिक ने उनको अपने धाम में बुला लिया। एकदिन तुम्हारा भी उद्धार होगा लेकिन जरा प्रीत तो करो, प्यार तो करो, थोड़ा सा बड़ा तो मानो, हालांकि उन पर क्या फर्क पड़ता है, फर्क तुम पर पड़ता है। अगर बच्चे बेअदबी से बरताव करते हैं तो बुजुर्गों का कुछ नहीं जाता, उसका खामियाजा, उसका नतीजा उन्हीं को भोगना पड़ता है। इसी तरह से परमार्थ में है, एक परमार्थी की सबसे बड़ी पहचान है कि वह दीनता रखेगा और अपने आप को निहायत छुपाए रखेगा और बहुत साधारण तौर पर दुनिया में बरताव करेगा लेकिन तुम को ऐसी पैनी दृष्टि होनी चाहिए और अगर उस पैनी दृष्टि से जिनको तुम थोड़ा समझ लोगे तो फिर तुम को निहाल कर देंगे। इसलिए चिंतारहित सत्संग किए जाओ। चिंता मत आने दो। यह दुनिया का कारखाना ऐसा ही चलता रहता है लेकिन यह भी कह देना कि चिंता बिल्कुल नहीं होती, यह भी गलत है। कुछ परिस्थितियों में चिंता होती भी है लेकिन फिर हम अगर मालिक का ख्याल करते हैं तो चिंता आपसे आप दूर हो जाती है, क्योंकि करने वाले वह हैं, जैसा करेंगे वह हक में होगा। इसलिए हजूर महाराज राधास्वामी दयाल की चरन सरन की महिमा बहुत से बहुत है। सरन लेने के बाद भी करनी बन सकती है, सरन का दर्जा बहुत ऊंचा है। जो राधास्वामी दयाल की और संत सतगुरु की सरन ग्रहण करेगा, उसका काम तो वह खुद अपने आप बनाएंगे।