राधास्वामी नाम का सुमिरन करो और कुछ देर सुमिरन करने के बाद अगर अपने आप में परिवर्तन न पाओ, तब कहना
हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university) रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami) नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 5 अप्रैल 2000 को रेड रोड,रिजोर्ट्स, आसमखास बाग, सरहिन्द, जिला फतेहगढ़ साहिब (पंजाब, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- समझना चाहिए कि यह नाम उन स्थानों के मालिकों के हैं। उन स्थानों की धुन जुदा-जुदा है। जब तक उन धुनों को नहीं सुनोगे तब तक तुम्हारा सुमिरन ध्वन्यात्मक नाम का सुमिरन नहीं कहा जा सकता।
राधास्वामी नाम का सुमिरन करो
कुछ लोग कहते हैं कि मालिक के पन्द्रह सौ नाम हैं, उनमें से एक राधास्वामी भी है। तुमने पन्द्रह सौ नामों की जगह इसे (राधास्वामी को) क्यों जोड़ा। जो नाम मेरे पिता ने, परम पिता ने बताया वह राधास्वामी है। राधास्वामी नाम का सुमिरन करो और कुछ देर सुमिरन करने के बाद अगर अपने आप में परिवर्तन न पाओ, तब कहना।
जोत-निरंकार, ओंकार ररंकार, सोहंग और सत्तनाम
हम लोग पुराण पंक्तियों की टेकी कहती हैं। तुम लोग क्या कम टेकी हो। तुमने सतनाम की टेक मानी हुई है। तुम्हें तो सिर्फ जोत-निरंकार, ओंकार ररंकार, सोहंग और सत्तनाम कहना है। इनमें से एक भी गायब हो गया तो सारी श्रृंखला टूट जाएगी। यह भी तो जानो कि यह सब है क्या। पहले स्थान का मालिक जोत निरंजन ध्वन्यात्मक नाम नहीं है। ओंकार उच्चारण तो ध्वन्यात्मक जरूर है लेकिन ओंकार तो मालिक का नाम है और ओम जाति की विद्या वेद में बताई है। अब या तो वेद मंत्र के हिसाब से उसका उत्तारण करो तब प्रणव पद की प्राप्ति की बात भी कर सकते हो, अन्यथा नहीं। इसी प्रकार से ररंकार का हाल है। ऐसे ही सोहंग का। समझना चाहिए कि यह नाम उन स्थानों के मालिकों के हैं। उन स्थानों की धुन जुदा-जुदा है। जब तक उन धुनों को नहीं सुनोगे तब तक तुम्हारा सुमिरन ध्वन्यात्मक नाम का सुमिरन नहीं कहा जा सकता।
राधास्वामी नाम ध्वन्यात्मक है
अब राधास्वामी दयाल ने राधास्वामी नाम प्रकट किया है जो ध्वन्यात्मक है। यह तर्क से नहीं अनुभव से प्रमाणित होगा। जैसे कुएं में आवाज देते हैं तो उलट कर आवाज आती है, इसी प्रकार यह जो ऊर्धमुखी कुआं है। जब ऊपर से आवाज लगाते हैं तो उधर से आवाज आती है। नकल हम करते हैं आवाज असली आती है। तुम कुएं में जो आवाज देते हो वैसे ही आती है। ऐसे ही जब यहां पुकारते हैं राधास्वामी तो वहां से राधास्वामी नाम की धुन आती है। वह इतनी मीठी और सुरीली है कि जुबान से नहीं कही जा सकती। उसका आनंद तो वही ले सकता है जो शब्द का रसिया हो। कहा है-
सुरतिया चाख रही।
घट शब्द अमी रस सार।।
तेरी दशा और ही होती ।
तेरी सूरत नहीं बहती।।
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